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कृषि ज्ञान
19 Feb
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खीरा की खेती | Cucumber Farming

खीरा का उपयोग सलाद, सैंडविच, रायता, और कई व्यंजनों में होता है। यह न केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि यह हमारे स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। इसका सेवन हमारे शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है। इसलिए गर्मी के मौसम में इसकी मांग बढ़ने लगती है। इसकी खेती की बात करें तो पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, और महाराष्ट्र के किसान में बड़े पैमाने पर खीरा की खेती करते हैं। खीरा की उन्नत फसल प्राप्त करने के लिए इसकी बारीकियों की जानकारी होना बहुत जरूरी है। इस पोस्ट के माध्यम से हम खीरा की खेती के लिए उन्नत किस्में, उपयुक्त मिट्टी, उर्वरक प्रबंधन, सिंचाई प्रबंधन, आदि जानकारियां प्राप्त करें।

खीरा की खेती कैसे करें? | How to cultivate Cucumber?

  • भूमि का चयन: खीरा की खेती रेतीली दोमट मिट्टी से ले कर भारी मिट्टी तक अलग-अलग तरह की मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन इसकी बेहतर पैदावार के लिए जैविक तत्वों से भरपूर दोमट मिट्टी सर्वोत्तम है। मिट्टी का पीएच स्तर 6 से 7 के बीच होना चाहिए।
  • बीज की मात्रा एवं बीज उपचार: बीज की मात्रा किस्मों पर निर्भर करती है। सामान्यतः प्रति एकड़ खेत के लिए करीब 300-350 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम कप्तान से उपचारित करें।
  • बीज का चयन: खीरा की खेती के लिए सही बीज का चयन करना महत्वपूर्ण है। खीरे की पैदावार को बेहतर बनाने के लिए, सही बीज का चयन महत्वपूर्ण है। उच्च गुणवत्ता वाले और बीमारियों के प्रति सहनशील बीजों का उपयोग करें। उच्च उत्पादन और भिंडी की अच्छी गुणवत्ता के लिए विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए हाइब्रिड बीजों का उपयोग करें।
  • किस्में: खीरा की बेहतर पैदावार के लिए शाइन- वंडर स्ट्राइक एफ1, आइरिस- दावत F1, वीएनआर- कुमुद एफ1, नामधारी- एनएस 404, ऊर्जा- मास्टर एफ1 हाइब्रिड, सिंजेंटा- काफ्का, सेमिनिस- मालिनी, शाइन- वंडर स्ट्राइक एफ1, आइरिस- इंद्रा F1 हाइब्रिड, वीएनआर- सीयू 2, सेमिनिस- पद्मिनी, किस्मों का चयन कर सकते हैं।
  • खेत की तैयारी: खीरे के खेत की उचित तैयारी भी पैदावार को बढ़ावा देती है। खेत को तैयार करने के लिए 3-4 बार जुताई करें। जुताई के बाद खेत में पाटा लगाकर खेत की मिट्टी को समतल एवं भुरभुरी बना लें।
  • उर्वरक प्रबंधन: फसल में उर्वरकों का प्रयोग करने से पौधों को सभी पोषक तत्व एवं सूक्ष्म पोषक मिलते हैं। जिससे पौधों के विकास के साथ खीरे की बेहतर पैदावार प्राप्त होती है। खेत तैयार करते समय प्रति एकड़ खेत में 100 क्विंटल गोबर की खाद मिलाएं। खेत की अंतिम जुताई के समय प्रति एकड़ खेत में 90 किलोग्राम यूरिया, 125 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) और 35 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) के साथ 4 किलोग्राम देहात स्टार्टर का प्रयोग करें। इसकी अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए खेत में खाद का प्रयोग करने से पहले मिट्टी की जांच अवश्य कराएं। खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
  • समय पर बुआई: खीरे की बुआई को समय पर करना भी महत्वपूर्ण है। विभिन्न क्षेत्रों के अनुसार इसकी बुवाई अलग-अलग समय की जाती है। ग्रीष्म ऋतु की फसल के लिए इसकी बुवाई फरवरी-मार्च के महीने में करें। वर्षा ऋतु की फसल के लिए जून-जुलाई महीने में बुवाई करें। वहीं पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी बुवाई मार्च एवं अप्रैल महीने में की जाती है।
  • बुवाई की विधि: अच्छी तरह से तैयार खेत में 1.5 मीटर की दूरी पर मेड़ बना लें और बीजों के बीच  23 से 35 इंच की दूरी होना चाहिए। बीज की बुवाई 1-2 सेंटीमीटर गहराई पर करें। मेड़ों पर बीज बोने के लिए गढ्ढे बना लें और प्रत्येक गड्डे में 2 बीजों की बुआई करें।
  • सिंचाई: सही समय पर सिंचाई करने से खीरे की पैदावार में वृद्धि होती है। सिंचाई के समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि खेत में जल जमाव की स्थिति उत्पन्न न हो। इस समस्या से बचने के लिए जल निकासी की उचित व्यवस्था करें। खीरा की फसल में मिट्टी में मौजूद नमी के आधार पर सिंचाई करें। बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें। गर्मी के मौसम में हर 2 से 3 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। वर्षा होने पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
  • खरपतवार प्रबंधन: खेत में खरपतवार की समस्या से निजात पाने के लिए आवश्यकता के अनुसार निराई-गुड़ाई करें। बुवाई के 20-25 दिनों बाद पहली एवं बुवाई के 40-45 दिनों बाद दूसरी बार निराई-गुड़ाई करें।
  • रोग और कीट नियंत्रण: खीरा की फसल में फल मक्खी, कद्दू का लाल कीट, पत्ती सुरंगी कीट, खीरा मोजेक वायरस रोग, चूर्णिल आसिता रोग जैसे रोग एवं कीटों का प्रकोप अधिक होता है। फसल को रोगों और कीटों से बचाने के लिए समय-समय पर रोग प्रबंधन और कीट प्रबंधन के उपायों का उपयोग करें। किसी भी रोग एवं कीट के लक्षण नजर आने पर तुरंत कीटनाशक एवं फफूंदनाशक दवाओं का प्रयोग करें।
  • प्रुनिंग और स्टेकिंग: प्रुनिंग और स्टेकिंग तकनीकों का उपयोग करके पौधों को बेहतर रूप से विकसित किया जा सकता है। इसके साथ ही उपज को भी बढ़ाया जा सकता है।
  • फलों की तुड़ाई एवं पैदावार: खीरा की बुवाई के 45 से 60 दिनों के बाद फलों की पहली तुड़ाई की जा सकती है। प्रति एकड़ खेत से औसतन 40 से 80 क्विंटल तक उपज प्राप्त होती है। हालांकि, इसकी उपज विभिन्न किस्मों, मौसम एवं क्षेत्रों के अनुसार कम या अधिक हो सकती है।

आप खीरे की किस किस्म की खेती कर रहे हैं? अपने जवाब हमें कमेंट के द्वारा बताएं। कृषि संबंधी जानकारियों के लिए देहात के टोल फ्री नंबर 1800-1036-110 पर सम्पर्क करके विशेषज्ञों से परामर्श भी कर सकते हैं। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक एवं कमेंट करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Question

Q: खीरा कौन से महीने में बोया जाता है?

A: मैदानी क्षेत्रों में खीरा की बुवाई वर्ष में 2 बार की जा सकती है। ग्रीष्म ऋतु की फसल के लिए फरवरी-मार्च के महीने में बुवाई की जाती है। वर्षा ऋतु की फसल के लिए जून-जुलाई महीने में बुवाई की जाती है। पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी बुवाई मार्च एवं अप्रैल महीने में की जाती है।

Q: खीरा कितने दिन में फल देने लगता है?

A: बुवाई के 40 से 60 दिनों के बाद खीरा के फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं।

Q: खीरा में कौन सी खाद डालें?

A: खीरा की फसल में 90 किलोग्राम यूरिया, 125 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट एवं 35 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश की आवश्यकता होती है। खेत तैयार करते समय यूरिया को 3 भागों में बांट कर 1 भाग यानी 30 किलोग्राम यूरिया के साथ सिंगल सुपर फास्फेट एवं म्यूरेट ऑफ पोटाश की पूरी मात्रा मिलाएं।

Q: एक पौधा कितने खीरे पैदा कर सकता है?

A: खीरा के एक पौधे से करीब 4 से 5 किलोग्राम तक फल प्राप्त किए जा सकते हैं। इस बात का ध्यान रखें कि खीरा की उपज उसकी किस्मों, मौसम, मिट्टी, उर्वरक, सिंचाई, आदि पर भी निर्भर करती है।

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