खरीफ मौसम के लिए मूंग की किस्में | Moong varieties for Kharif season

मूंग भारत में उगाई जाने वाली एक लोकप्रिय दलहन फसल है। हमारे देश में राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक, तमिलनाडु राज्यों में मुख्य रूप से इसकी खेती की जाती है। यह एक छोटी अवधि की फसल है जिसे रेतीले दोमट से लेकर भारी मिट्टी तक मिट्टी की एक विस्तृत श्रृंखला में उगाया जा सकता है। मूंग को खरीफ, ग्रीष्म और जायद, तीनों मौसमों में उगाया जा सकता है। खरीफ सीजन में इसकी बुवाई जून-जुलाई में की जाती है और फसल की कटाई अक्टूबर-नवंबर महीने में की जाती है। आज के इस पोस्ट के द्वारा आप खरीफ मौसम में खेती की जाने वाली कुछ बेहतरीन किस्मों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
मूंग की कुछ बेहतरीन किस्में | Some of the best varieties of Moong
- श्रीराम विजेता (SRPM-26): यह अधिक उपज देने वाली किस्मों में से एक है। इस किस्म के पौधे येलो मोज़ेक वायरस रोग के प्रति अत्यधिक सहनशील होते हैं। इस किस्म की खेती गर्मी एवं खरीफ दोनों मौसम में की जा सकती है। इस किस्म की एक विशेषता यह भी है कि पकने के बाद फलियां गिरती नहीं हैं। इस किस्म के मूंग के दाने आकार में बड़े, चमकदार और हल्के हरे रंग के होते हैं। पौधों की ऊंचाई करीब 70 से 80 सेंटीमीटर होती है। इसके प्रत्येक फली में 12 से 14 संख्या में दाने होते हैं। यज्ञ गर्मी के मौसम में खेती कर रहे हैं तो फसल को पकने में करीब 62 से 65 दिनों का समय लगता है। वहीं खरीफ मौसम में खेती करने पर फसल 70-75 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। बीज दर की बात करें तो प्रति एकड़ खेत में खेती करने के लिए 10-12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
- स्टार एग्रीसीड स्टार 444 मूंग: खरीफ एवं गर्मी के मौसम में खेती करने के लिए यह उपयुक्त किस्म है। इस किस्म के मूंग के दाने चमकदार हरे रंग के होते हैं। इस किस्म की फलियां लम्बी होती हैं और फलियों में 13-15 की संख्या में दाने होते हैं। बुवाई के बाद फसल को पक कर तैयार होने में करीब 60-65 दिनों का समय लगता है। प्रति एकड़ खेत में करीब 6-8 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। इसकी बेहतर उपज प्राप्त करने के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखें।
- अमृतगोल्ड सुपर पीडीएम 139 मूंग: इस किस्म की खेती गर्मी एवं खरीफ दोनों मौसम में सफलतापूर्वक की जा सकती है। इस किस्म के दानें चमकदार हरे रंग के होते हैं। प्रति एकड़ खेत में इसकी बुवाई के लिए 10-12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। इसकी बेहतर उपज प्राप्त करने के लिए इसकी खेती कतारों में करें। सभी कतारों के बीच 30 सेंटीमीटर और सभी पौधों के बीच करीब 10 सेंटीमीटर की दूरी रखें। बुवाई के बाद फसल करीब 60-65 दिनों में तैयार हो जाती है।
- आइआइएफडीसी एमएच 1142: इस किस्म को चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के द्वारा विकसित किया गया है। इस किस्म की खेती खरीफ के साथ गर्मी एवं जायद मौसम में भी की जा सकती है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल एवं असम में खेती करने के लिए यह एक बेहतरीन किस्म है। इस किस्म के पौधे माध्यम आकार के होते हैं। इसकी फलियां काले रंग की होती हैं और फलियों के अंदर के दानों का रंग हरा होता है। दाने चमकदार होते हैं। इस किस्म के पौधे पाउडरी मिल्ड्यू रोग और एन्थ्रेक्नोज रोग के प्रति सहनशील होते हैं। प्रति एकड़ खेत में खेती के लिए 4-6 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। फसल को पक कर तैयार होने में करीब 63-70 दिनों का समय लगता है।
- पूसा 0672: खरीफ मौसम में बुवाई के लिए यह उपयुक्त किस्म है। इस किस्म के पौधे पीला मोजैक रोग के प्रति सहनशील होते हैं। इस किस्म के दाने मध्यम आकार के, आकर्षक, हरे एवं चमकीले होते हैं। फसल करीब 70 से 72 दिनों में तैयार हो जाता है।
- पूसा रत्ना: इस किस्म की बुवाई करने पर 65 से 70 दिनों में फसल तैयार हो जाते हैं। यह किस्म पीला मोजैक रोग के प्रति सहनशील है। बुवाई के बाद फसल को तैयार होने में करीब 65-70 दिनों का समय लगता है। खरीफ मौसम में खेती के लिए एक बेहतरीन किस्म है।
- पूसा 9531: इस किस्म की खेती मुख्यतः पंजाब, हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में की जाती है। इस किस्म के पौधे पीला मोजैक रोग के प्रति सहनशील होते हैं। फसल को पकने में 65 से 70 दिनों का समय लगता है।
- नरेन्द्र मूंग 1: उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में खेती करने के लिए यह उपयुक्त किस्मों में से एक है। इसके अलावा असम में भी इस किस्म की खेती की जा सकती है। यह किस्म पीला मोजैक रोग के प्रति सहनशील है। धूमिल दानों वाली इस किस्म की फसल को पकने में करीब 65-70 दिनों का समय लगता है।
- गंगा 8 : इस किस्म की खेती खरीफ और जायद दोनों में की जा सकती है। यह पीला मोजेक वायरस रोग के प्रति मध्यम रूप से प्रतिरोधक किस्म है। इस किस्म की बुवाई करने पर बैक्टीरियल ब्लाइट रोग का प्रकोप भी कम होता है। फसल को तैयार होने में करीब 72 दिन समय लगता है।
इसके अलावा खरीफ मौसम में मूंग की कई अन्य किस्मों जैसे पंत मूंग- 2, पंत मूंग- 4, पंत मूंग- 5, मेहा, आई पी एम- 2-3, शालीमार मूंग- 1, हम- 1, मधिरा- 429, एस एम एल 668, टी 44 आदि किस्मों की खेती भी प्रमुखता से की जाती है।
आप किस मौसम में मूंग की खेती करते हैं? अपने जवाब हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए ‘ कृषि ज्ञान’ चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और शटर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: मूंग की बुवाई का सही समय क्या है?
A: भारत में मूंग बोने का सही समय क्षेत्र और जलवायु परिस्थितियों पर निर्भर करता है। आमतौर पर, मूंग गर्मियों के मौसम की फसल है और रबी फसलों की कटाई के बाद इसकी बुवाई की जाती है। इसके अलावा इसकी खेती खरीफ एवं जायद मौसम भी की जाती है। उत्तर भारत में मूंग की बुवाई मार्च से अप्रैल महीने में की जाती है, जबकि मध्य एवं और दक्षिणी भारत में इसकी बुवाई अप्रैल से मई महीने में की जाती है। मानसून की बारिश की शुरुआत और सिंचाई सुविधाओं की उपलब्धता के आधार पर बुवाई का समय भिन्न हो सकता है।
Q: मूंग की खेती में कौन सी खाद डाली जाती है?
A: मूंग की फसल में नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों की आवश्यकता नहीं होती है। मूंग के पौधों की वृद्धि और विकास के लिए फास्फोरस और पोटेशियम की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, कुछ मिट्टी में जस्ता, बोरान और लोहे जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की भी आवश्यकता हो सकती है। मृदा परीक्षण मिट्टी और फसल की सटीक पोषक आवश्यकताओं को निर्धारित करने में मदद कर सकता है।
Q: मूंग में पहला पानी कितने दिन में देना चाहिए?
A: मूंग की फसल में पहली सिंचाई बीज बोने के तुरंत बाद करनी चाहिए। इससे बीजों को अंकुरित होने और मिट्टी में खुद को स्थापित करने के लिए नमी की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई के बाद, मिट्टी के प्रकार, मौसम की स्थिति और फसल के विकास के चरण के आधार पर 7-10 दिनों के अंतराल पर बाद की सिंचाई दी जानी चाहिए। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि मिट्टी नम हो लेकिन जलभराव न हो, क्योंकि अतिरिक्त पानी से मूंग के पौधों में जलभराव और जड़ गलन की समस्या हो सकती है।
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