कई गुणों से भरपूर है यह पौधा, जाने कैसे करें खेती

कालमेघ एक औषधीय पौधा है, जिसे लीवर संबंधी बीमारियों की दवा एवं ज्वर नाशक के रूप में जाना जाता है। कालमेघ को भारत में कल्पनाथ, हरा चिरायता के नाम से भी जाना जाता है। कैप्सूल, पाउडर और अर्क के रूप में प्रयोग किए जाने पर इसकी मांग बनी हुई होती है। जिसके कारण उत्तर प्रदेश से असम, मध्यप्रदेश, जम्मू, तमिलनाडु, केरल, ओडिशा, आदि स्थानों में मैदानी भागों में भी इसकी खेती धीरे-धीरे प्रचलित हो रही है। कालमेघ के पौधों को बीज से तैयार किया जाता है। यह पौधा छाया युक्त स्थानों पर अधिक होता है। पौधे पर अनेक शाखाएं निकलती हैं और इसके फूल गुलाबी रंग के होते हैं। फूल आने पर पौधों की छंटाई की जाती है एवं बीज के लिए फरवरी से मार्च के मध्य में पौधों की कटाई कर ली जाती है। अगर आप भी कालमेघ की खेती करना चाहते हैं, तो खेती से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए पोस्ट को पूरा पढ़ें।
कालमेघ की खेती का उचित समय
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मई से जून के महीने में नर्सरी में बीज की बुवाई कर लेनी चाहिए।
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जून के दूसरे पखवाड़े से जुलाई तक पौधों के रोपण का उचित समय होता है।
खेती के लिए आवश्यक जलवायु
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पौधों की बुवाई के लिए गर्म तथा नम जलवायु की आवश्यकता होती है।
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मानसून आने के बाद इसकी काफी वृद्धि होती है।
खेती के लिए आवश्यक भूमि
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बलुई दोमट या दोमट भूमि में खेती करें।
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भूमि उचित जल निकास वाली होनी चाहिए।
पौधों के रोपण की विधि
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खेत में अच्छी तरह जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी एवं समतल बनाएं।
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इसके बाद खेत में क्यारियां तैयार करें।
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पौधों का रोपण क्यारियों में करें।
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भूमि की उर्वरता के अनुसार क्यारियों के बीच की दूरी 30 से 60 सेंटीमीटर रखें।
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पौधों के बीच की दूरी 30 सेंटीमीटर रखें।
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रोपाई से एक दिन पहले खेत की सिंचाई करें।
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रोपाई शाम के समय करें।
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रोपण के बाद खेत की सिंचाई कर दें।
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