कपास में लगने वाले प्रमुख कीट (Major pests in cotton)

कपास भारत की मुख्य फसलों में से एक है, जिसमें कीटों का हमला उत्पादन को 60 से 70% तक कम कर सकता है। इसमें सफेद मक्खी, अमेरिकन सुंडी, माहू, मिलीबग, मकड़ी, सफेद लट, और थ्रिप्स जैसे कीट प्रमुख हैं। इन कीटों के आक्रमण के खिलाफ उचित प्रबंधन और नियंत्रण के लिए विशेषज्ञ सलाह और उपयुक्त कीटनाशकों का उपयोग किया जाना चाहिए।
कपास के प्रमुख कीटों के लक्षण और नियंत्रण (Symptoms and control of major pests of cotton)
अमेरिकन सुंडी :
- इस कीट के संक्रमण से कपास की फसल में गोल छेद हो जाते हैं।
- इन छेदों के बाहरी ओर सुंडी का मल दिखाई देता है।
- इस कीट का लार्वा अकेले ही 30-40 कपास को नुकसान पहुंचा सकता है।
नियंत्रण :
- इस कीट के नियंत्रण के लिए लाइट ट्रैप और फेरोमोन ट्रैप का प्रयोग करें।
- फसल चक्र अपनाएं कपास की फसल लगातार एक खेत में ना लगाएं , बल्कि बदल बदल कर फसल उगाए।
- कपास की बुवाई से पहले , पहली फसल के बचे हुए खरपतवार को अच्छी तरह निकाल दें।
- पानी का सही मात्रा में प्रयोग करें और नाइट्रोजन खाद का ज्यादा प्रयोग ना करें।
- इस कीट की रोकथाम के लिए कीट प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव करें।
- इमामेक्टिन बेंज़ोएट 5% SG ( DeHaat Illigo) दवा का उपयोग 0.5 ग्राम एक लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
- सायंट्रानिलिप्रोल 10.26% OD दवा का उपयोग 5 मिली प्रति लीटर पानी मिलाकर छिड़काव करें।
- संक्रमण ज्यादा होने पर (DeHaat Ataque) क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5% SC दवा को 0.3 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
सफेद लट :
- मिट्टी में रहकर पौधों की जड़ों को काटते हैं।
- प्रकोप बढ़ने पर पौधों की पत्तियों को खाते हैं, जिससे पौधे सूखने लगते हैं।
- 30 से 80 प्रतिशत तक फसल नष्ट हो सकती है।
नियंत्रण :
- प्रभावित क्षेत्रों में गर्मी के मौसम में गहरी जुताई करें।
- खेत में कच्ची गोबर का प्रयोग न करें।
- क्लोरोपाइरीफॉस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी (DeHaat C Square) दवा को 2 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
मकड़ी :
- लाल और पीली मकड़ी पत्तियों के नीचे छोटे-छोटे जाल बनाती हैं।
- पत्तियों के ऊतकों में प्रवेश करके रस चूसती हैं।
- पत्तियाँ मुड़कर भुरभुरी हो जाती हैं, मुरझाकर झड़ने लगती हैं।
नियंत्रण :
- ओबेरोन कीटनाशक (स्पाइरोमेसिफेन 22.9% SC) 0.3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
- फेनप्रोपेथ्रिन 10% EC 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
मिलीबग :
- मिलीबग कीट पौधों के तने, शाखाओं और पत्तियों का रस चूस कर पौधे को कमजोर बनाता है।
- यह कीट एक चिपचिपा मोम जैसा पदार्थ छोड़ता है, जो काले फंगस का विकास करता है।
- पौधे के वनस्पति विकास की अवस्था में संक्रमित पौधों की पत्तियां टेढ़ी-मेढ़ी या घुमावदार होने लगती हैं इसके साथ ही पौधे बौने दिखाई देते हैं।
नियंत्रण :
- शुरुआती अवस्था में नीम तेल के छिड़काव से इस कीट पर नियंत्रण किया जा सकता है।
- इसके अलावा थियामेथोक्साम 25% WG (DeHaat Asear) दवा को 0.3 से 0.5 ग्राम एक लीटर पानी में मिलकर छिड़काव करने पर कीटों से राहत मिलेगी।
- एसिटामैप्रिड 20% SP दवा को 0.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
- इमिडाक्लोप्रिड 17.8% w/w दवा को 0.75 से 1 मि.ली प्रति लीटर पानी में मिलाकर खेत में स्प्रे करें।
तंबाकू सुंडी :
- इस कीट के लार्वा पत्तियों को समूह में खाकर उन्हें खोखला बना देते हैं जिससे पत्तियाँ कागज़ जैसी दिखाई पड़ती है।
- पत्तिओं में छेंद हो जाता है जिससे संक्रमित पत्तियां जल्दी झड़ जाती हैं।
- धीरे-धीरे संक्रमण पौधे के तनों पर भी दिखने लगता है।
नियंत्रण :
- कीट नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 5-6 फेरोमोन ट्रैप लगाएं।
- इमामेक्टिन बेंज़ोएट 5% SG ( DeHaat Illigo) दवा का उपयोग 0.5 ग्राम एक लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
- थियामेथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% ZC दवा को 0.4 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
- सायंट्रानिलिप्रोल 10.26% OD दवा को 1.5 मि.ली एक लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
थ्रिप्स / तेला :
- थ्रिप्स कीट छोटे पीले, हरे और भूरे रंग के होते हैं एवं इनके पंख धारीदार होते हैं।
- यह कीट पत्ती के भीतरी भाग से रस चूसते हैं जिससे पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और नीचे की ओर मुड़ने लगती हैं।
- कीट का अधिक प्रकोप होने पर पत्तियां सूख कर नीचे गिर जाती हैं।
- इसके कारण पौधों की बढ़वार रुक जाती है और फूल गिरने लगते हैं। इससे पैदावार कम हो जाती है।
- थ्रिप्स कीट सबसे ज्यादा नुकसान जुलाई से अगस्त के महीने में पहुंचता है।
नियंत्रण :
- थ्रिप्स कीट को नियंत्रित करने के लिए पीले रंग का लाइट ट्रैप 6 से 8 प्रति एकड़ की दर से लगाएं।
- इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू एस (DeHaat Contropest) दवा से 7 मि.ली प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें।
- इसके अलावा थियामेथोक्साम 25% WG (DeHaat Asear) दवा को 0.3 से 0.5 ग्राम एक लीटर पानी में मिलकर छिड़काव करने पर कीटों से राहत मिलेगी।
- क्लोरोपाइरीफॉस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी (DeHaat C Square) दवा को 2 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
सफेद मक्खी :
- यह कीट पत्तियों से रस चूसता है जिससे पत्तियां पीली पड़कर सिकुड़ जाती हैं।
- इस कीट के कारण पत्तियों पर चिपचिपा पदार्थ छोड़ती है जिससे फफूंद लगाते हैं, जिससे पत्तियां काली पड़ जाती हैं।
नियंत्रण :
- कपास की फसल में फसल चक्र अपनाएं।
- खेतों में प्रति एकड़ की दर से 4 से 6 पीले स्टिकी ट्रैप लगाएं।
- 40 ग्राम एसिटामाइप्रिड 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।
- इसके अलावा थियामेथोक्साम 25% WG (DeHaat Asear) दवा को 0.3 से 0.5 ग्राम एक लीटर पानी में मिलकर छिड़काव करने पर कीटों से राहत मिलेगी।
- क्लोरोपाइरीफॉस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी (DeHaat C Square) दवा को 2 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
- इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL दवा को 1 से 2 मि.ली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
क्या आप भी कपास की फसल में कीटों से परेशान हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: कपास का प्रमुख कीट कौन सा है?
A: भारत में कपास का प्रमुख कीट कॉटन बॉलवर्म है। यह एक विनाशकारी कीट है जो कपास के गोलों को खाता है और फसल को काफी नुकसान पहुंचाता है। बॉलवर्म के लार्वा कपास के गोलों को खाते हैं, जिससे पैदावार कम हो जाती है और कपास की गुणवत्ता खराब हो जाती है।
Q: कपास के प्रमुख उत्पादक राज्य कौन-कौन से हैं?
A: भारत में प्रमुख कपास उत्पादक राज्य हैं: गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना, पंजाब, और हरियाणा भारत में प्रमुख कपास उत्पादक राज्य हैं। इसके अलावा भारत के अन्य कपास उत्पादक राज्यों में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तमिलनाडु शामिल हैं।
Q: कपास की खेती के लिए कौन सी मिट्टी उपयुक्त होती है?
A: कपास की खेती के लिए उत्तम मिट्टी का चयन जल निकासी और पोषण क्षमता के संरक्षण में मदद करता है। भारत में, काली मिट्टी या रेगुर मिट्टी को प्रमुखतः उपयोग में लाया जाता है, जो कार्बनिक पदार्थों से भरपूर होती है और पानी को अच्छी तरह से धारण करती है।
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