करेले में वायरस रोगों का प्रबंधन (Management of virus diseases in Bitter Gourd)

करेले की फसल में मोजेक वायरस, पत्ती सिकुड़न और अन्य वायरस जनित रोग तेजी से फैलने वाली बीमारियां हैं, जिनका मुख्य कारण सफेद मक्खी और हरा तेला जैसे रस चूसक कीट होते हैं। यह कीट पौधों का रस चूसकर पत्तियों को पीला और सिकुड़ा देते हैं, जिससे पौधों का विकास रुक जाता है और फसल की गुणवत्ता प्रभावित होती है। वायरस रोगों को नियंत्रित करने के लिए कीटों का प्रभावी नियंत्रण आवश्यक है, साथ ही रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन और बीज उपचार से फसल को बचाया जा सकता है। समय पर कीटनाशक और वायरस-नियंत्रण के लिए उचित उपाय अपनाकर फसल को सुरक्षित रखा जा सकता है।
करेले में कौन से रोग वायरस से होते हैं? (Which diseases of bitter gourd are caused by viruses?)
मोजेक वायरस (Mosaic Virus):
- करेले में यह रोग तेजी से फैलता है, और अगर समय रहते नियंत्रण नहीं किया गया, तो 4-5 दिनों में पूरे खेत की फसल संक्रमित हो सकती है।
- पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। समय के साथ धब्बों का आकार बढ़ता जाता है। ये धब्बे सामान्यतः शिराओं से शुरू होते हैं।
- रोग बढ़ने पर पत्तियां सिकुड़ने लगती हैं। पौधों का विकास रुक जाता है और पुष्प गुच्छों में बदल जाते हैं।
- फलों पर हल्के पीले रंग के धब्बे दिखने लगते हैं।
नियंत्रण:
- रोग के फैलाव को रोकने के लिए प्रभावित पौधों को तुरंत नष्ट कर दें।
- मोजैक वायरस प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव करें।
- रोग की प्रारंभिक अवस्था में प्रति लीटर पानी में 2-3 मिलीलीटर नीम का तेल मिलाकर छिड़काव करें।
- प्रति लीटर पानी में 2 मिलीलीटर डाईमेथोएट 30 ई.सी. मिलाकर छिड़काव करें। यदि आवश्यकता हो, तो 10 दिनों के बाद दोबारा छिड़काव करें।
- डाइमेथोएट 30% ईसी (एफ.एम.सी-रोगोर, टाटा रैलिस टैफगोर) दवा को 264 मिली प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
- इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस.एल. (हाईफील्ड इमिग्रो, धानुका मीडिया, बायर कॉन्फिडोर) कीटनाशक का उपयोग 100 मिली प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें।
- क्विनालफोस 25% ईसी (धानुका धनुलक्स, सिंजेन्टा एकालक्स) दवा को 400 मि.ली एक एकड़ खेत में स्प्रे करें।
पत्ती सिकुड़न (Leaf Curl):
- करेले की खेती में पत्तियों का सिकुड़ना एक गंभीर समस्या हो सकती है, जो विभिन्न विषाणु जनित रोगों और रस चूसक कीटों के कारण उत्पन्न होती है।
- इस समस्या के कारण पत्तियां सिकुड़ने लगती हैं और उनका आकार असामान्य हो जाता है।
- पौधों की वृद्धि रुक जाती है और फल एवं फूल बनने की प्रक्रिया बाधित हो जाती है।
- यदि फल बन भी जाएं, तो उनका आकार छोटा रह जाता है।
- पौधे की वृद्धि धीमी हो जाती है या रुक जाती है।
नियंत्रण:
- कुकड़ा रोग/पत्ती मरोड़ रोग के लक्षण दिखने पर प्रभावित पौधों को तुरंत नष्ट कर दें।
- खेतों में प्रति एकड़ की दर से 4 से 6 पीले स्टिकी ट्रैप ताकि मक्खियां इसमें फंस कर मर जाएं।
- बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम कार्बेंडाजिम से उपचारित करें। इससे पौधे की प्रारंभिक अवस्था में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
- लीफ कर्ल वायरस के नियंत्रण के लिए थियामेथोक्सम 25% WG (देहात Asear, सिन्जेंटा एक्टारा, धानुका अरेवा ) 40 से 80 ग्राम दवा को प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
- इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस.एल. (हाईफील्ड इमिग्रो, धानुका मीडिया, बायर कॉन्फिडोर) कीटनाशक का उपयोग 60 से 70 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें। इससे पौधे की पत्तियों को सुरक्षा मिलती है और वायरस जनित रोगों का खतरा कम होता है।
क्या आप भी करेले में वायरस रोगों से परेशान हैं और इनके नियंत्रण के लिए आप क्या करते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: करेला कितने दिन में फल देने लगता है?
A: करेले के बीज बोने के बाद लगभग 55 से 60 दिनों के भीतर पौधों में फल आना शुरू हो जाता है। हालांकि, यह समय फसल की किस्म, जलवायु और देखभाल पर निर्भर करता है। अच्छे प्रबंधन और सही समय पर आवश्यक पोषक तत्व और पानी मिलने पर, फसल जल्दी से फल देना शुरू कर सकती है। फल आने के बाद नियमित रूप से उनकी कटाई करनी चाहिए ताकि पौधे अधिक उत्पादन कर सकें।
Q: करेले की बुवाई कब करनी चाहिए?
A: करेले की बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त समय मानसून का होता है, जब मौसम में नमी और तापमान फसल के विकास के लिए अनुकूल होते हैं। आमतौर पर बुवाई मई से जून के महीने में की जाती है, ताकि बारिश का पूरा लाभ उठाया जा सके। वहीं, सर्दियों में खेती करनी हो तो जनवरी से फरवरी का समय उपयुक्त माना जाता है।
Q: करेले की खेती में उर्वरक की मात्रा कितनी होनी चाहिए?
A: करेले की अच्छी फसल के लिए उर्वरकों का सही मात्रा में और समय पर उपयोग करना बहुत महत्वपूर्ण है। बुवाई के समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा, सल्फर और पोटाश की पूरी मात्रा मिलानी चाहिए। इसके अलावा, बुवाई के 30-40 दिन बाद बची हुई नाइट्रोजन की मात्रा टॉप ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए। इससे पौधों को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं और फसल का विकास सही तरीके से होता है। सही उर्वरक प्रबंधन से फल का आकार और गुणवत्ता में भी सुधार होता है।
Q: भारत में करेला किस-किस राज्य में उगाया जाता है?
A: भारत में करेला की खेती कई राज्यों में की जाती है। प्रमुख रूप से छत्तीसगढ़, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, उत्तर प्रदेश, और बिहार जैसे राज्यों में करेले की खेती व्यापक रूप से होती है। ये राज्य करेले की फसल के लिए आदर्श जलवायु और मिट्टी प्रदान करते हैं।
Q: करेले के पौधे को कितना पानी देना चाहिए?
A: करेले की फसल के लिए नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है, खासकर बुवाई के तुरंत बाद। गर्मियों में फसल को हर 6-7 दिन में सिंचाई की जरूरत होती है, जबकि बरसात के मौसम में सिंचाई कम करनी पड़ती है, क्योंकि बारिश से प्राकृतिक रूप से नमी मिलती रहती है। कुल मिलाकर फसल के विकास के दौरान 8-10 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है।
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