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26 Sep
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लाल चौलाई की खेती की सम्पूर्ण जानकारी | Amaranth Cultivation

लाल चौलाई को आम भाषा में लाल साग भी कहते हैं। इसके अलावा इसे अमरंथस के नाम से भी जाना जाता है। पत्तेदार सब्जियों में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में इसे व्यापक रूप से उगाया जाता है। इसके अलावा इसकी खेती दक्षिण अमेरिका, दक्षिण-पूर्वी एशिया, पश्चिम एवं पूर्वी अफ्रीका में भी की जाती है। इसकी खेती के लिए गर्म एवं वर्षा का मौसम उपयुक्त है। आइए इस पोस्ट के माध्यम से हम लाल साग की खेती का उपयुक्त समय, जलवायु, मिट्टी, खेत की तैयारी, सिंचाई प्रबंधन, खरपतवार नियंत्रण, रोग और कीट नियंत्रण, जैसी महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त करें।

कैसे करें चौलाई की खेती? How to Cultivate Amaranth

  • लाल साग की खेती के लिए उपयुक्त समय: लाल साग की खेती के लिए सर्वोत्तम समय गर्मियों और बरसात के मौसम के बीच होता है। यह फसल गर्म मौसम में अच्छी तरह से पनपती है, इसलिए इसे जून-सितंबर महीने में प्रमुखता से लगाया जाता है। कुछ क्षेत्रों में इसकी बुवाई फरवरी-मार्च महीने में भी की जाती है। अलग-अलग क्षेत्रों में इसे विभिन्न मौसमों में उगाया जा सकता है, लेकिन अत्यधिक ठंड और पाला इसकी वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। गर्म जलवायु में इसके पौधे तेजी से बढ़ते हैं, और लगभग 25 से 30 दिनों के भीतर इसकी पत्तियां कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं।
  • उपयुक्त जलवायु: चौलाई की खेती के लिए शीतोष्ण और समशीतोष्ण दोनों तरह की जलवायु उपयुक्त मानी जाती है। इसके अलावा इसे सामान्य से लेकर उष्णकटिबंधीय जलवायु में उगाया जा सकता है। पौधों के विकास के लिए 18 डिग्री सेंटीग्रेड से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तक का तापमान उपयुक्त होता है। इसकी खेती के लिए ऐसे स्थान का चयन करें जहां प्रतिदिन पर्याप्त मात्रा में धूप आती हो।
  • उपयुक्त मिट्टी: लाल साग की खेती लगभग हर प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन सबसे अच्छी उपज के लिए दोमट मिट्टी या अच्छी जल निकासी वाली हल्की मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी का पीएच स्तर 5.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। इसे क्षारीय और अम्लीय दोनों प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन अच्छी उपज के लिए मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भूमि की जल निकासी क्षमता भी अच्छी होनी चाहिए, क्योंकि जल जमाव से पौधों की जड़ों को नुकसान हो सकता है।
  • बेहतरीन किस्में: बेहतर पैदावार के लिए बेहतरीन किस्मों का चयन करना आवश्यक है। अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए आप सरपण सीड्स राजगिरा अमरंथस रेड, आइरिस रेड अमरंथस C01, सिरुकीराय, पूसा छोटी चौलाई, पूसा कीर्ति, पूसा किरण, अर्का सुगुआना एवं अर्का अरुणिमा, आदि किस्मों का चयन कर सकते हैं।
  • बीज की मात्रा: बीज की मात्रा बीज की बुवाई के तरीकों पर निर्भर करती है। यदि खेत में इसकी सीधी बुवाई कर रहे हैं तो प्रति एकड़ खेत में 800 ग्राम से 1 किलोग्राम तक बीज की आवश्यकता होती है। वहीं अगर आप नर्सरी में पौधों को तैयार करके इसकी खेती कर रहे हैं तो प्रति एकड़ खेत में 200 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
  • खेत तैयार करने की विधि: सबसे पहले मिट्टी पलटने वाली हल से खेत में एक बार गहरी जुताई करें। इसके बाद 2-3 बार हल्की जुताई करें तो। हल्की जुताई के लिए कल्टीवेटर या हैरो का प्रयोग कर सकते हैं। चौलाई की अच्छी पैदावार के लिए प्रति एकड़ खेत में 8 से 10 टन गोबर की खाद मिलाएं। इसके साथ ही प्रति एकड़ खेत में 35 किलोग्राम यूरिया, 22 किलोग्राम डीएपी और 14 किलोग्राम एमओपी का भी प्रयोग करें। खाद मिलाने के बाद खेत में पानी चला कर पलेवा करें। पलेवा करने के तीन-चार दिनों बाद जब भूमि की ऊपरी सतह सूखी हुई नजर आए तब खेत में अच्छी तरह जुताई करें। जुताई के बाद खेत में रोटावेटर चला कर मिट्टी को भुरभुरी बना लें। इसके बाद खेत में पाटा लगाएं। इस तरह खेत तैयार करने से वर्षा के मौसम में जल जमाव की स्थिति उत्पन्न नहीं होगी।
  • बुवाई की विधि: इसकी बुवाई कतारों में करें। सभी कतारों के बीच 8-10 इंच की दूरी होनी चाहिए। वहीं पौधों से पौधों के बीच 4-6 इंच की दूरी बनाए रखें।
  • सिंचाई प्रबंधन: यदि रोपाई के समय भूमि में उचित मात्रा में नमी है तो बुराई के तुरंत बाद सिंचाई न करें। यदि सूखी भूमि में बुवाई कर रहे हैं तो बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें। इससे बीज के अंकुरण में आसानी होती है। पौधों में आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए। गर्मी के मौसम में 7-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। वर्षा होने पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। सिंचाई के समय जल जमाव की स्थिति उत्पन्न न होने दें। इससे जड़ों के सड़ने की समाया हो सकती है।
  • खरपतवार नियंत्रण: लाल साग की फसल में खरपतवार नियंत्रण करना बहुत जरूरी है। खरपतवार आवश्यक पोषक तत्वों को ग्रहण कर लेते हैं। जिससे पौधों के विकास में बाधा आती है। छोटे क्षेत्रों में हाथ से निराई-गुड़ाई करके खरपतवार को हटाया जा सकता है। यह एक प्राचीन और प्रभावी तरीका है, लेकिन इसमें श्रम एवं समय की आवश्यकता अधिक होती है। रासायनिक खरपतवार नाशक दवाओं का प्रयोग करने से पहले कृषि विशेषज्ञों से अवश्य परामर्श करें।
  • रोग एवं कीट नियंत्रण: चौलाई की फसल में कई तरह के रोग एवं कीटों का प्रकोप होता है। जिनमें पत्ती धब्बा रोग, सफेद मक्खी और जड़ गलन रोग की समस्या अधिक होती है। फसल को इन रोगों से एवं कीटों से बचाने के लिए खेत में लगातार निगरानी रखें। इसे किसी भी रोग एवं कीट के लक्षण नजर आते ही तुरंत उचित दवाओं का प्रयोग करें।
  • फसल की कटाई: बुवाई के 30 दिनों बाद फसल की पहली कटाई की जा सकती है। बुवाई के 45 दिनों बाद दूसरी एवं बुवाई के 55 दिनों बाद इसकी तीसरी कटाई की जा सकती है। लाल साग के पौधे जब भूमि की सतह से 25-30 सेंटीमीटर ऊंचे हो जाएं तब पौधों की कटाई करें। कटाई के समय इस बात का ध्यान रखें कि पौधों की जड़ों को नुकसान न पहुंचे।

क्या आपके क्षेत्र में लाल साग की खेती की जाती है? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट में दी गई जानकारी को अधिक किसानों तक पहुंचाने के लिए इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: चौलाई की खेती कब की जाती है?

A: भारत में आमतौर पर वर्षा के मौसम में चौलाई की खेती की जाती है, जो जून से सितंबर तक रहता है। इसे देश के कुछ क्षेत्रों में सर्दियों के मौसम में भी उगाया जा सकता है। खेती का सटीक समय विशिष्ट स्थान और जलवायु परिस्थितियों के आधार पर भिन्न हो सकता है।

Q: चौलाई की खेती कैसे की जाती है?

A: चौलाई की खेती आमतौर पर मिट्टी में सीधे बीज की बुवाई के द्वारा की जाती है। मिट्टी अच्छी तरह से सूखी और उपजाऊ होनी चाहिए और मिट्टी का पीएच स्तर 6.0 और 7.5 के बीच होना चाहिए। फसल को नियमित रूप से सिंचाई और निराई की आवश्यकता होती है।

Q: क्या चौलाई और राजगीरा एक ही है?

A: हां, चौलाई और राजगिरा एक ही हैं। राजगिरा अमरंथस का हिंदी नाम है, इसकी खेती खाने योग्य बीज और पत्तियों के लिए की जाती है। कई पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण भारतीय व्यंजनों में इसका विशेष स्थान है।

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