नींबू: रोग, लक्षण, बचाव एवं नियंत्रण | Lemon: Disease, Symptoms Prevention and Treatment
नींबू के पौधे हमारे बगीचों और खेतों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, लेकिन इनकी खेती में कई तरह के कीटों का सामना करना पड़ता है। ये कीट न केवल पौधों की वृद्धि को प्रभावित करते हैं बल्कि उत्पादन पर भी नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। नींबू के पौधों में लगने वाले कीटों की पहचान और उनके प्रभावों को समझना, उनके नियंत्रण के लिए आवश्यक है। इस पोस्ट में हम नींबू के पौधों में लगने वाले प्रमुख कीटों, उनके लक्षण और उनके प्रबंधन के उपायों पर जानकारी प्राप्त करेंगे, जिससे किसान अपनी फसलों की बेहतर सुरक्षा और उत्पादन सुनिश्चित कर सकें।
नींबू के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग | Some Major Diseases Affecting Lemon Plants
कैंकर रोग से होने वाले नुकसान: नींबू के पौधों में कैंकर रोग एक गंभीर समस्या है। यह पौधों को काफी नुकसान पहुंचा सकता है और फलों की उपज को कम कर सकता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों, तनों, शाखाओं और फलों पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। ये धब्बे उभरे हुए होते हैं। प्रभावित फलों की गुणवत्ता कम हो जाती है, जिससे इसकी बिक्री से उचित मूल्य नहीं मिल पाता है।
कैंकर रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- इस रोग के प्रति सहनशील किस्मों का चयन करें।
- खेती के लिए रोग मुक्त पौधों का चयन करें।
- कैंकर रोग से प्रभावित सूखी टहनियों को काटकर जला देना चाहिए।
- प्रति एकड़ खेत में 15 ग्राम स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90% + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10% एसपी (जेयू स्ट्रेप्टो, कात्यायनी KMYCIN) का प्रयोग करें।
- पौधों की नई वृद्धि के दिखने के बाद 15 से 20 दिनों के अंतराल पर स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 50 से 100 पीपीएम घोल का प्रयोग करें।
एन्थ्रेक्नोज रोग से होने वाले नुकसान: नए पौधों और कोमल पत्तियों के साथ फलों पर भी इस रोग के लक्षण देखे जा सकते हैं। यह एक फफूंद जनित रोग है। इस रोग से प्रभावित पत्तियों पर छोटे गहरे भूरे रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। ये धब्बे अनियमित आकार के होते हैं। इन धब्बों के बीच का भाग धूसर और इसके किनारे भूरे रंग के हो जाते हैं। रोग का प्रकोप बढ़ने पर पौधों के विकास में बाधा उत्पन्न होती है। गर्म तापमान और ज्यादा नमी वाले क्षेत्रों में यह रोग तेजी से फैल सकता है।
एन्थ्रेक्नोज रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- पौधों को इस रोग से बचाने के लिए फसल चक्र अपनाएं।
- आवश्यकता से अधिक सिंचाई या जल जमाव की स्थिति से बचने के लिए जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
- संक्रमित पौधों के मलबे को खेत से बाहर निकाल कर नष्ट कर दें।
- प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिनपैक्ट) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 300 ग्राम कासुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% डब्ल्यूपी (धानुका कोनिका) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 450 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्लूपी (देहात साबू) का प्रयोग करें।
डाइबैक रोग से होने वाले नुकसान: इन रोगों के कारण नींबू की फसल को काफी नुकसान होता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की वृद्धि रुक जाती है। फलों के उत्पादन में कमी आती है। पौधों की पत्तियां पीली होने लगती हैं। पौधों की ऊपर की शाखाएं सूखने लगती हैं। फल तैयार होने से पहले ही गिरने लगते हैं। प्रभावित पौधों की जडें काले रंग की हो जाती हैं।
डाइबैक रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- रोग से प्रभावित शाखाओं को काट कर पौधे से अलग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 300 मिलीलीटर एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 11%+ टेबुकोनाजोल 18.3% एससी (देहात एजीटॉप) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 600 से 800 ग्राम प्रोपीनेब 70% डब्लू.पी (देहात जिनेक्टो) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 300-600 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू . पी (देहात साबू, धानुका सिक्सर) का प्रयोग करें।
गमोसिस रोग से होने वाले नुकसान: यह रोग फाइटोप्थोरा नामक कवक के कारण होता है। इस कवक का बीजाणु मिट्टी में लंबे समय तक जीवित रहता है। इस रोग के होने पर पौधों के तने से गोंद निकलने लगती है। पौधों की जड़ें एवं तना सड़ने लगता है और पत्तियां पीली होकर सूखने लगती हैं।
गमोसिस रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- प्रति एकड़ खेत में 500-600 ग्राम मेटालैक्सिल 4% + मैनकोज़ेब 64% सिंजेंटा रिडोमिल गोल्ड) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 400 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्लूपी (टाटा ब्लिटॉक्स) का प्रयोग करें।
नींबू की फसल में रोगों पर नियंत्रण के लिए क्या आप लगातार खेत की निगरानी करते हैं और रोगों के लक्षण नजर आने पर आप क्या तरीका अपनाते हैं? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। फसलों को विभिन्न रोगों एवं कीटों से बचाने की अधिक जानकारी के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इस जानकारी को अधिक किसानों तक पहुंचाने के लिए इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: नींबू के पौधे में कौन सा रोग होता है?
A: भारत में नींबू के पौधों में होने वाली आम बीमारियों में से एक साइट्रस कैंकर रोग है। यह एक जीवाणु रोग है जो पौधे की पत्तियों, तनों और फलों को प्रभावित करता है। इसके अलावा नींबू के पौधे में एन्थ्रेक्नोज रोग, डाइबैक रोग, गमोसिस रोग, चूर्णिल आसिता रोग, आदि का प्रकोप भी अधिक होता है।
Q: नींबू के पौधे में कौन सी दवाई डालनी चाहिए?
A: नींबू के पौधे में इस्तेमाल की जाने वाली दवाएं पौधों में लगने वाले निर्भर करती हैं। पौधों का निरीक्षण करें और रोगों के लक्षण को पहचानें। यदि लक्षण की पहचान में कठिनाई हो रही है तो कृषि विशेषज्ञों से संपर्क करें और उनके परामर्श के अनुसार दवाओं का प्रयोग करें।
Q: नींबू का पेड़ क्यों सूख जाता है?
A: नींबू का पेड़ सूखने के कई कारण हो सकते हैं। सबसे आम कारणों में से एक पानी की कमी या अधिक पानी है। अन्य कारणों में पोषक तत्वों की कमी, कीट या रोग, अत्यधिक तापमान और खराब मिट्टी की गुणवत्ता शामिल हो सकती है। इस समस्या से बचने के लिए सिंचाई की आवृत्ति एवं मात्रा का विशेष ध्यान रखें। खेत में जल निकासी की व्यवस्था करें। इसके साथ ही पौधों को विभिन्न रोगों से बचाने के लिए उचित प्रबंध करें।
Q: नींबू के पत्ते पीले क्यों पड़ जाते हैं?
A: नींबू की पत्तियां कई कारणों से पीली पड़ सकती हैं। सबसे आम कारणों में से एक पोषक तत्वों की कमी है, विशेष रूप से नाइट्रोजन। अन्य कारणों में अधिक पानी देना या पानी के नीचे, कीट या बीमारियां, और अत्यधिक तापमान या धूप के संपर्क में आना शामिल हो सकते हैं। ऐसे में सही समय पर एवं उचित मात्रा में पोषक तत्वों का प्रयोग करें। पौधों को रोग एवं कीटों से बचाएं।
जारी रखने के लिए कृपया लॉगिन करें
फसल चिकित्सक से मुफ़्त सलाह पाएँ