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3 Sep
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लेट्यूस की खेती (Lettuce Cultivation)


लेट्यूस एक ठंडे मौसम की फसल है, जो भारत में सर्दियों के मौसम में उगाई जाती है। इसकी पत्तियां कोमल और रसीली होती हैं, जिनका उपयोग सलाद के रूप में हरी अवस्था में किया जाता है। पत्तियों में खनिज पदार्थ और विटामिन A की प्रचुर मात्रा होती है, जिससे यह पोषक तत्वों से भरपूर होता है।

कैसे करें लेट्यूस की खेती? (How to cultivate Lettuce?)

  • मिट्टी: लेट्यूस की खेती के लिए उचित जल निकास वाली रेतीली दोमट भूमि उपयुक्त मानी जाती है, जिसका pH मान 6.0 से 6.8 के बीच होना चाहिए। यह फसल अम्लीय मृदाओं के लिए सहिष्णु होती है, लेकिन बहुत कम (5 से कम) या बहुत अधिक (7 से अधिक) pH मान वाली मृदा में इसकी उपज कम हो जाती है।
  • जलवायु: लेट्यूस की खेती के लिए ठंडी जलवायु उपयुक्त रहती है, और इसकी अच्छी वृद्धि के लिए 21-24°C तापमान की आवश्यकता होती है। पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जाती है, लेकिन गर्म और आर्द्र मौसम में यह फसल तेजी से खराब हो सकती है, जिससे पत्तियों का स्वाद कड़वा हो जाता है और पौधे सड़ सकते हैं।
  • बुवाई का समय: लेट्यूस की बुवाई के लिए सितंबर से नवंबर का समय सबसे अच्छा माना जाता है। इस अवधि में नर्सरी में बीज बोए जाते हैं, जिन्हें अंकुरित होने में 3-4 दिन लगते हैं। बीज अंकुरण के बाद 4 से 6 सप्ताह के बाद खेत में रोपण किया जा सकता है।
  • किस्में: लेट्यूस की किस्मों को उनके रंग-रूप और बनावट के आधार पर विभाजित किया गया है, हेड प्रकार के लेट्यूस में न्यूयॉर्क 515, इम्पीरियल 44, 152, 456, 615 और 847, बरो वंडर, कॉबहम ग्रीन और एवोंडिफायंस जैसे किस्में शामिल हैं। ये किस्में ठोस और कड़क पत्तों वाले लेट्यूस होते हैं, जिनका उपयोग सलाद और सजावट के रूप में किया जाता है। वहीं, लीफ प्रकार के लेट्यूस में सिम्पसन, प्राइज़ हेड, पंजाब लेट्यूस नं. 1, ग्रेट लेक्स और अलामो-1 जैसी किस्में प्रमुख हैं। ये किस्में मुलायम और बड़ी पत्तियों वाली होती हैं, जिन्हें सलाद और सैंडविच में उपयोग किया जाता है।
  • बीज दर: लेट्यूस की प्रति एकड़ खेती के लिए 160-200 ग्राम बीज पर्याप्त होता है।
  • बीज बोने की विधि: पत्तियों वाली किस्मों को सीधे खेत में अगस्त-सितंबर के दौरान बोया जाता है। कुछ किस्मों को नर्सरी में सितंबर-अक्टूबर के बीच बुवाई करके 5 से 6 सप्ताह बाद मुख्य खेत में रोप दिया जाता है। पर्वतीय क्षेत्रों में लेट्यूस की बुवाई का उपयुक्त समय फरवरी से जून है। सीधी बुवाई के लिए पंक्तियों की दूरी 45 सेमी और पौधों की दूरी 30 सेमी रखी जाती है। रोपाई वाली फसलों में पंक्तियों की दूरी 45 सेमी और पौधों की दूरी 25-35 सेमी होती है। बीज को 2-4 सेमी गहराई में बोना चाहिए।
  • खेत की तैयारी: लेट्यूस एक उथली जड़ वाली और अल्प प्रचलित सब्जी है, इसलिए इसकी खेती के लिए अधिक जुताई की आवश्यकता नहीं होती है। खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए ताकि मिट्टी की गहरी परतें खुल सकें। इसके बाद 2 बार जुताई कल्टीवेटर या हैरो से करनी चाहिए। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाना जरूरी होता है, ताकि मिट्टी की सतह समतल हो जाए और नमी बनाए रखी जा सके।
  • खाद एवं उर्वरक: आमतौर पर, लेट्यूस की खेती भारत में बड़े पैमाने पर नहीं की जाती है, लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों में इसे सफलतापूर्वक उगाया जाता है। व्यावसायिक खेती के लिए, प्रति एकड़ 40-60 क्विंटल गोबर की खाद, इसके अलावा यूरिया 44 किलोग्राम, DAP खाद 78 किलोग्राम, MOP 60 किलोग्राम और स्टार्टर 4 किलोग्राम प्रति एकड़ खेत में डालना चाहिए। गोबर की खाद को खेत की तैयारी से पहले समान रूप से बिखेर देना चाहिए। फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा के साथ नाइट्रोजन की आधी मात्रा का मिश्रण बनाकर अंतिम जुताई के समय खेत में डालें। बाकी नाइट्रोजन की मात्रा को टॉप ड्रेसिंग के रूप में दो बार डालना चाहिए: पहली बार रोपाई के एक महीने बाद और दूसरी बार 45-60 दिन बाद।
  • सिंचाई प्रबंधन: बुवाई से पहले पलेवा करना आवश्यक है। रोपाई के बाद भी हल्की सिंचाई करनी चाहिए ताकि पौधे अच्छी तरह स्थापित हो सके। नमी की कमी होने पर लेट्यूस की फसल में बोल्टिंग की समस्या हो सकती है।
  • कटाई: कटाई की विधि किस्म पर निर्भर करती है। अगर पत्तियों वाली किस्म है तो उसकी कटाई 50 से 60 दिन और शीर्ष टाइप वाली अन्य किस्मों को 60 से 70 दिन लगते हैं।
  • उपज: लेट्यूस की उपज मिट्टी की उर्वरता, किस्म, उगाने की विधि, और देखभाल पर निर्भर करती है। आमतौर पर प्रति पौधा 12-14 पत्तियाँ मिलती है, और प्रति एकड़ उत्पादन 40-55 क्विंटल प्राप्त होता है।

लेट्यूस की सबसे अच्छी वैरायटी कौन-सी है? अपने जवाब और अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक और महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आई हो, तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: लेट्यूस कब लगाएं?

A: लेट्यूस की खेती के लिए वसंत और शरद ऋतु सबसे उपयुक्त समय होते हैं। सामान्यतः, भारत में लेट्यूस को फरवरी से अप्रैल और सितंबर से नवंबर के बीच लगाया जाता है। इन समय अवधियों में मौसम और तापमान लेट्यूस की वृद्धि के लिए अनुकूल होते हैं। हालांकि, यदि आप एक नियंत्रित वातावरण में (जैसे ग्रीन हाउस) लेट्यूस उगा रहे हैं, तो आप इसे पूरे वर्ष भी उगा सकते हैं।

Q: क्या हम भारत में लेट्यूस उगा सकते हैं?

A: भारत में लेट्यूस की खेती संभव है, लेकिन यह आपके क्षेत्र की जलवायु पर निर्भर करता है। ठंडे और अर्ध-ठंडे क्षेत्रों में जैसे उत्तर भारत और पश्चिमी भारत, लेट्यूस आसानी से उगाया जा सकता है। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में, जहां गर्मी अधिक होती है, लेट्यूस को ग्रीन हाउस या शेडनेट में उगाना बेहतर होता है ताकि उसे आदर्श तापमान और आर्द्रता मिल सके।

Q: लेट्यूस किस प्रकार की मिट्टी में सबसे अच्छा बढ़ता है?

A: लेट्यूस की सर्वोत्तम वृद्धि के लिए, ऐसी मिट्टी की आवश्यकता होती है जो अच्छी जल निकासी वाली और उपजाऊ हो। हल्की मिट्टी जैसे संदर्भित मिट्टी या काले मिट्टी, लेट्यूस के लिए आदर्श मानी जाती है। मिट्टी का pH स्तर 6.0 से 7.0 के बीच होना चाहिए। सही जल निकासी महत्वपूर्ण है, क्योंकि जलभराव लेट्यूस की जड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है और फंगल बीमारियों को जन्म दे सकता है।

Q: क्या मैं साल भर लेट्यूस उगा सकता हूं?

A: भारत में, यदि आप उपयुक्त परिस्थितियों का ध्यान रखें, तो आप साल भर लेट्यूस उगा सकते हैं। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में लेट्यूस की खेती को नियंत्रित वातावरण में (जैसे ग्रीन हाउस या शेडनेट) किया जा सकता है, जहां तापमान और आर्द्रता को नियंत्रित किया जा सके। इससे आपको पूरे वर्ष लेट्यूस की ताजगी और गुणवत्ता को बनाए रखने में मदद मिलती है।

Q: लेट्यूस की खेती कहाँ-कहाँ होती है?

A: लेट्यूस की खेती मुख्य रूप से ठंडे और समशीतोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाती है। यह हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, और जम्मू-कश्मीर जैसे उत्तरी राज्यों में प्रमुखता से उगाया जाता है। इसके अलावा, महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में भी ग्रीन हाउस तकनीक के माध्यम से लेट्यूस की खेती की जा रही है, जहां तापमान और आर्द्रता को नियंत्रित कर इसकी सफलतापूर्वक खेती की जाती है।

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