लहसुन की खेती | Garlic Cultivation

लहसुन एक ऐसी फसल है जिसका उपयोग सब्जियों एवं विभिन्न व्यंजनों का जायका बढ़ाने के लिए मसलों के तौर पर इसका प्रयोग किया जाता है। कई औषधीय गुणों के कारण इसकी मांग हमेशा बनी रहती है। गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और तमिलनाडु में इसकी खेती प्रमुखता से की जाती है। इसके अलावा इसकी खेती पूरे भारत में की जा सकती है। अगर आप भी करना चाहते हैं इसकी खेती तो खेती का उपयुक्त समय, उपयुक्त मिट्टी एवं जलवायु, खेती की तैयारी, बुवाई की विधि, सिंचाई एवं खरपतवार प्रबंधन, रोग एवं कीट नियंत्रण, फसल की खुदाई सम्बंधित जानकारियों के लिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।
लहसुन की खेती कैसे करें? | How to Cultivate Garlic
- लहसुन की खेती के लिए उपयुक्त समय: लहसुन की बुवाई का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर से नवंबर तक होता है। इस समय तापमान हल्का ठंडा रहता है, जिससे लहसुन की फसल का उचित विकास होता है। कुछ क्षेत्रों में इसकी बुवाई सितंबर के अंत या अक्टूबर की शुरुआत में भी की जा सकती है।
- उपयुक्त जलवायु: लहसुन ठंडे और समशीतोष्ण जलवायु में अच्छी तरह से बढ़ता है। इसकी खेती के लिए 12-24 डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त माना जाता है। अंकुरण के लिए 10-15 डिग्री सेल्सियस और कंद विकास के लिए 15-20 डिग्री सेल्सियस का तापमान सर्वोत्तम होता है। आवश्यकता से अधिक ठंड या पाला फसल के लिए नुकसानदायक हो सकता है। लहसुन को पर्याप्त धूप की आवश्यकता होती है, इसलिए इसकी खेती ऐसी जगह करनी चाहिए जहां प्रतिदिन 6-8 घंटे धूप आती हो।
- उपयुक्त मिट्टी: लहसुन की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली दोमट मिट्टी या रेतीली दोमट मिट्टी में सबसे उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी का पीएच स्तर 6-8 के बीच होना चाहिए। यदि मिट्टी अधिक अम्लीय या क्षारीय है, तो लहसुन की उपज में कमी हो सकती है। खेत की मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा अधिक होनी चाहिए, जिससे पौधों को सभी आवश्यक पोषक तत्व मिल सकें।
- बेहतरीन किस्में: इसकी अच्छी उपज के लिए यमुना सफेद 1 (जी-1), यमुना सफेद 2 (जी-50), यमुना सफेद 3 (जी-282), यमुना सफेद 4 (जी-323), भीमा पर्पल, वीएल गार्लिक 1, पीजी 17, आदि किस्मों का चयन करें।
- बीज की मात्रा: प्रति एकड़ खेत में खेती के लिए 1.5 से 2 क्विंटल कलियों की आवश्यकता होती है। फसल को विभिन्न रोगों से बचाने के लिए रोपाई से पहले कलियों को फफूंदनाशक दवाओं से उपचारित करें।
- खेत तैयार करने की विधि: इसकी खेती के लिए मिट्टी का भुरभुरा होना आवश्यक है। खेत तैयार करते समय खेत में पुराने फसल के अवशेषों को निकालें। खेत में 1 बार गहरी जुताई करें। इसके बाद खेर में 2-3 बार हल्की जुताई करें और मिट्टी को भुरभुरी और समतल बनाएं। आखिरी जुताई के समय प्रति एकड़ खेत में 6 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद का प्रयोग करें। प्रति एकड़ खेत में 52 किलोग्राम यूरिया, 34 किलोग्राम डाई अमोनियम फास्फेट (डीएपी), 26 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश (एमओपी) एवं 16 किलोग्राम सल्फर का प्रयोग करें। कलियों की रोपाई के 30 दिनों बाद, 45 दिनों बाद एवं 60 दिनों बाद प्रति लीटर पानी में 5 ग्राम 'देहात न्यूट्रीवन एनपीके 19:19:19' का प्रयोग करें।
- बुवाई की विधि: लहसुन की खेती कलियों की बुवाई के द्वारा की जाती है। कलियों की रोपाई कतारों में करें। सभी कतारों के बीच 6 इंच की दूरी होनी चाहिए। वहीं पौधों से पौधों के बीच 4 इंच की दूरी होनी चाहिए। कलियों की रोपाई करीब 1 इंच की गहराई में करें।
- सिंचाई प्रबंधन: अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए कलियों की रोपाई के तुरंत बाद खेत में हल्की सिंचाई करें। इससे बीज आवश्यकता के अनुसार 8 से 12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। कंद के विकास के समय अधिक नमी की आवश्यकता होती है, इसलिए इस दौरान सिंचाई की आवृत्ति बढ़ा सकते हैं। फसल की कटाई के समय जब पत्तियां सूखने लगे तब सिंचाई का कार्य बंद कर दें, जिससे कंद अच्छी तरह सूख सकें।
- खरपतवार नियंत्रण: खेत में खरपतवार होने के कारण लहसुन की कलियों एवं कंदों का उचित विकास नहीं हो पाता है। इसलिए खरपतवारों को नियंत्रित करना बहुत जरूरी है। इसके लिए बुवाई के करीब 30-40 दिनों बाद पहली बार निराई-गुड़ाई करें। पहली निराई-गुड़ाई के करीब 15-20 दिनों बाद दोबारा निराई-गुड़ाई करें। खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए जैविक मल्चिंग का प्रयोग करें। इसके लिए सभी कतारों के बीच पुआल बिछाएं। समस्या बढ़ने पर आप कृषि विशेषज्ञों की परामर्श के अनुसार रासायनिक खरपतवार नाशक दवाओं का प्रयोग कर सकते हैं।
- रोग एवं कीट नियंत्रण: लहसुन की फसल में चूर्णिल, जड़ सड़न रोग, आर्द्र गलन रोग, झुलसा रोग, पर्ण धब्बा रोग, थ्रिप्स, माहू और नेमाटोड जैसे रोग एवं कीटों का प्रकोप अधिक होता है। फसल को इन रोगों एवं कीटों से बचाने के लिए उपयुक्त फफूंद नाशक दवाओं एवं कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करें। रासायनिक दवाओं के प्रयोग के समय उसकी मात्रा का विशेष ध्यान रखें। इससे पौधों को किसी भी तरह की क्षति से बचाया जा सकता है।
- फसल की खुदाई: लहसुन की बुवाई के करीब 120-150 दिनों बाद फसल खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। जब पौधों की पत्तियां पीली होने लगे और नीचे झुकने लगे तब फसल की खुदाई करें। कंदों में नमी बनाए रखने के लिए फसल की कटाई सुबह या शाम के समय करें। खुदाई के बाद कंदों को सूखी पत्तियों को काट कर अलग करें और 3-5 दिनों तक सूखाएं। सूखने के बाद लहसुन के कंदों को पत्तियों से अलग करके भंडारित करें।
लहसुन की खेती में किन उर्वरकों का प्रयोग करते हैं? अपने जवाब हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को तुरंत फॉलो करें। यह जानकारी महत्वपूर्ण लगी हो तो इस पोस्ट को लाइक एवं शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: लहसुन को मोटा करने के लिए क्या करना चाहिए?
A: लहसुन की कलियों या बल्ब को मोटा या आकार में बड़ा करने के लिए नियमित रूप से सिंचाई करें। सही समय पर उचित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करें। फसल को खरपतवारों, रोग एवं कीटों से बचा कर रखें।
Q: लहसुन कितने दिन में जम जाता है?
A: लहसुन को अंकुरित होने में करीब 7-10 दिनों का समय लगता है।
Q: लहसुन की खुदाई कब करनी चाहिए?
A: लहसुन को तब खोदा जाना चाहिए जब पत्तियां पीली होने लगें और सूखने लगें। पत्तियां पीली होने और सूखने के बाद फसल को लम्बे समय तक मिट्टी में न रहने दें। लहसुन के बल्ब को विभाजित होने से बचाने के लिए समय पर खुदाई करें।
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