फ्रेंच बीन के प्रमुख रोग एवं उनका प्रबंधन (Main diseases of French bean and their management)
फ्रेंच बीन, जिसे हरी बीन या स्नैप बीन के रूप में भी जाना जाता है, भारत में उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण सब्जी फसल है। यह पौष्टिकता में भरपूर होती है और इसके सेवन से कई स्वास्थ्य लाभ होते हैं। हालांकि, फ्रेंच बीन विभिन्न बीमारियों के लिए अतिसंवेदनशील है, जो महत्वपूर्ण उपज हानि का कारण बन सकते हैं। यहाँ हम फ्रेंच बीन के कुछ प्रमुख रोगों और उनके प्रबंधन के तरीकों के बारे में बताएँगे।
फ्रेंच बीन्स में रोगों पर नियंत्रण कैसे करें? (How to control diseases in French beans?)
- एन्थ्रेक्नोज (Anthracnose)
लक्षण : यह एक कवक रोग है जो पौधे की फली और पत्तियों पर काले, धंसे हुए घावों का कारण बनता है। घावों के किनारे भूरे रंग के होते हैं और वे धीरे-धीरे बड़े होते जाते हैं। पत्तियां गिरने लगती है और फली विकृत हो जाती है।
प्रबंधन :
- रोग मुक्त बीजों का उपयोग : सुनिश्चित करें कि आप रोग मुक्त और प्रमाणित बीजों का उपयोग कर रहे हैं।
- फसल चक्र : फसल चक्र अपनाकर मिट्टी में रहने वाले कवक को नष्ट किया जा सकता है।
- संक्रमित पौधों के मलबे को हटाना : खेत में पड़े संक्रमित पौधों के अवशेषों को हटाकर जला देना चाहिए।
- कवकनाशी का उपयोग : एन्थ्रेक्नोज को नियंत्रित करने के लिए कवकनाशी का प्रयोग करें। इसके लिए मान्यता प्राप्त कवकनाशी का चयन करें और उसे अनुशंसित मात्रा में प्रयोग करें।
- जंग (Rust)
लक्षण : जंग एक कवक रोग है जो पौधे की पत्तियों और तनों पर पीले-नारंगी दाने का कारण बनता है। ये दाने धीरे-धीरे गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं और पत्तियां सूखने लगती है।
प्रबंधन :
- संक्रमित पौधों के मलबे को हटाना : खेत में पड़े संक्रमित पौधों के अवशेषों को हटाकर नष्ट कर देना चाहिए।
- ऊपरी सिंचाई से बचना : ऊपरी सिंचाई करने से पत्तियों पर नमी बनी रहती है, जिससे जंग फैलता है। इसलिए ड्रिप या अन्य पद्धतियों का उपयोग करें।
- प्रोपिनेब 70% WP (जिनेक्टो-देहात) 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
- अझॉक्सीस्ट्रोबिन 18.2% + डिफेन्कोनाझोल 11.4% SC (सिम्पैक्ट-देहात) 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
- अवतार हेक्साकोनाज़ोल 4% + ज़िनेब 68% WP दवा को 400 ग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करें।
- टेबुकोनाज़ोल 6.7% + कैप्टन 26.9% एससी दवा को 400 मिली प्रति एकड़ छिड़काव करें।
- ख़स्ता फफूंदी (Powdery Mildew)
लक्षण : यह एक कवक रोग है जो पौधे की पत्तियों और फलों पर एक सफेद पाउडर जैसी परत का कारण बनता है। इसके पौधे की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और फली विकृत हो जाती है।
प्रबंधन :
- संक्रमित पौधों के मलबे को हटाना : खेत में पड़े संक्रमित पौधों के अवशेषों को हटाकर नष्ट कर देना चाहिए।
- ऊपरी सिंचाई से बचना : पत्तियों पर पानी ना डालें ताकि फफूंदी का प्रसार ना हो।
- DeM-45 (मैंकोजेब 75% WP) दवा 600-800 ग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करें।
- डनफी (टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG) दवा को 500 ग्राम प्रति एकड़ इस्तेमाल करें।
- साबू (कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP) 300-600 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- बैक्टीरियल ब्लाइट (Bacterial Blight)
लक्षण : यह एक जीवाणु रोग है जो पौधे की पत्तियों और फलों पर पानी से लथपथ घावों का कारण बनता है। ये घाव धीरे-धीरे भूरे और काले हो जाते हैं और पत्तियां सूखने लगती हैं।
प्रबंधन :
- रोग मुक्त बीजों का उपयोग : रोग मुक्त और प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- फसल चक्र : फसल चक्र अपनाकर मिट्टी में रहने वाले जीवाणुओं को नष्ट किया जा सकता है।
- ऊपरी सिंचाई से बचना : ऊपरी सिंचाई करने से पत्तियों पर नमी बनी रहती है, जिससे जीवाणु फैलते हैं। इसलिए ड्रिप या अन्य पद्धतियों का उपयोग करें।
- धनुकोप (कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% WP) दवा को
- बीन कॉमन मोज़ेक वायरस (Bean Common Mosaic Virus)
लक्षण : यह एक वायरल बीमारी है जो पौधे की पत्तियों पर धब्बेदार पत्तियां और अवरुद्ध विकास का कारण बनती है। पत्तियाँ मोज़ेक जैसे पैटर्न में विकृत हो जाती हैं और पौधे का विकास रुक जाता है।
प्रबंधन :
- रोग मुक्त बीज का उपयोग : रोग मुक्त और प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- एफिड्स को नियंत्रित करना : एफिड्स वायरस के वाहक होते हैं। इसको नियंत्रित करने के लिए उचित कीटनाशक का प्रयोग करें।
- संक्रमित पौधों को हटाना : संक्रमित पौधों को तुरंत हटाकर नष्ट कर दें ताकि रोग का प्रसार न हो।
- रूट रोट :
लक्षण : यह रोग जड़ों को सड़ा देता है और पौधे मुरझा जाते हैं।
प्रबंधन : इसके नियंत्रण के लिए अच्छी जल निकासी सुनिश्चित करें और संक्रमित पौधों को हटाएं।
- डैम्पिंग-ऑफ :
लक्षण : यह रोग नवांकुरों को प्रभावित करता है और वे गिर जाते हैं।
प्रबंधन : इसके लिए अच्छी जल निकासी और सही तापमान का ध्यान रखें।
- बैक्टीरियल विल्ट :
लक्षण : यह रोग पौधों को अचानक मुरझा देता है।
प्रबंधन : इसके लिए रोग मुक्त बीजों का उपयोग करें और फसल चक्र अपनाएं।
क्या आप फ्रेंच बीन की फसल में रोगों से परेशान हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान मित्रों के साथ साझा करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: फ्रेंच बीन में कौन कौन सी बीमारी आती है?
A: फ्रेंच बीन्स कई बीमारियों से प्रभावित होती है, जैसे एन्थ्रेक्नोज, जंग, पाउडर फफूंदी, बैक्टीरियल ब्लाइट और बीन कॉमन मोज़ेक वायरस। इनसे बचाव के लिए किसान फसल रोटेशन, स्वच्छता, रोग प्रतिरोधी किस्में, और रासायनिक उपचार का उपयोग कर सकते हैं। नियमित निगरानी और त्वरित कार्रवाई से स्वस्थ फसल सुनिश्चित होती है।
Q: फ्रेंच बीन्स की कटाई कब करें?
A: फूल आने के दो से तीन सप्ताह के बाद शुरू कर दी जाती है। फलियों की तुड़ाई नियमित रूप से जब फलियां नर्म व कच्ची अवस्था में हो तब उसकी तुड़ाई करनी चाहिए।
Q: बींस कौन से महीने में बोया जाता है?
A: बींस की बुवाई विभिन्न क्षेत्रों और मौसमों के अनुसार की जाती है जैसे उत्तर भारत में अक्टूबर और फरवरी के महीने में बुवाई होती है। हल्की ठंड वाले स्थानों में नवंबर के महीने में और पहाड़ी क्षेत्रों में फरवरी, मार्च, और जून के महीने में बुवाई की जाती है।
Q: बुवाई का सही समय क्या है?
A: बींस की बुवाई का सही समय ऋतु और क्षेत्र के आधार पर अलग-अलग होता है जैसे : खरीफ में जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक, रबी मौसम में अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े तक और बसंत मौसम में मार्च के दूसरे पखवाड़े तक बुवाई की जा सकती है।
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