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25 July
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करेले के प्रमुख रोग और उनका प्रबंधन (Major diseases of bitter gourd and their management)


करेले की खेती में रोग प्रबंधन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि ये फसल की वृद्धि और उपज पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। करेला के प्रमुख रोगों में मोज़ेक वायरस, पत्तियों की सिकुड़न, मृदुरोमिल आसिता रोग, और एन्थ्रेक्नोज शामिल हैं। इन रोगों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के लिए सांस्कृतिक, जैविक, और रासायनिक प्रबंधन के उपायों को अपनाना चाहिए।

करेले में लगने वाले प्रमुख रोग (Major diseases of bitter gourd)

एन्थ्रेक्नोज (श्याम वर्ण) रोग:

  • एन्थ्रेक्नोज एक आम फफूंद जनित रोग है जो करेला के साथ अन्य कई फसलों को प्रभावित करता है। यह रोग पत्तियों, तनों और फलों को नुकसान पहुंचाता है।
  • इसके संक्रमण से पत्तियों पर गोलाकार या अनियमित आकार के धब्बे या घाव दिखाई देते हैं, जो समय के साथ बड़े और भूरे या काले हो जाते हैं।
  • तनों पर धंसे हुए, गहरे रंग के घाव बनते हैं।
  • फलों पर दबे हुए केंद्र वाले धब्बे बनते हैं, जो तेजी से सड़ सकते हैं।
  • जब रोग का संक्रमण ज्यादा हो जाता है तो करेले के पौधे झड़ जाते हैं।

नियंत्रण:

  1. फसल चक्र अपनाएं, हर मौसम में एक ही स्थान पर करेला न लगाएं।
  2. गिरे हुए पत्तियों और फलों को हटा दें और नष्ट कर दें।
  3. ज्यादा सिंचाई करने से बचें और मुमकिन हो तो ड्रिप सिंचाई का उपयोग करें।
  4. एन्थ्रेक्नोज रोग से बचने के लिए प्रतिरोधी किस्में जैसे कोहिनूर, चैतन्य, शाही और फर्टिल का चयन करें, जो उच्च उत्पादन और रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करती हैं।
  5. बीजों को बोने से पहले 3 ग्राम कार्बेंडाजिम फफूंदनाशक से उपचारित करना चाहिए।
  6. DeM-45 (मैन्कोजेब 75% WP) दवा को प्रति एकड़ 600-800 ग्राम की मात्रा में छिड़काव करें।
  7. साबु (कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP) दवा को प्रति एकड़ 300-600 ग्राम की मात्रा में छिड़काव करें।

मोजेक वायरस:

  • मोजेक वायरस से प्रभावित पौधों की पत्तियों में पीले रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं।
  • समय के साथ धब्बों का आकार बढ़ता जाता है और यह सामान्यत: शिराओं से शुरू होते हैं।
  • जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, करेले की पत्तियां सिकुड़ने लगती है।
  • पौधों के विकास में बाधा आती है और फूल बनने में भी दिक्कत होती है।
  • यदि पौधों में फल आ गए हैं, तो फलों पर भी हल्के पीले रंग के धब्बे उभरने लगते हैं।

नियंत्रण:

  1. इस रोग को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित पौधों को नष्ट कर दें।
  2. मोजैक वायरस प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।
  3. रोग की शुरुआती अवस्था में प्रति लीटर पानी में 2 से 3 मिलीलीटर नीम का तेल मिलाकर छिड़काव करें।
  4. डाईमेथोएट 30 ई.सी. दवा को प्रति एकड़ 264 से 792 मिलीलीटर की मात्रा में छिड़काव करें।
  5. इमिडाक्लोप्रिड 200 एस.एल. दवा को प्रति एकड़ 100 मिलीलीटर की मात्रा में छिड़काव करें।

फल सड़न रोग

  • फल सड़न रोग के कारण फल की सतह पर काले, धंसे हुए धब्बे दिखाई देते हैं।
  • यह धब्बे धीरे-धीरे बड़े हो जाते हैं और सफेद या भूरे रंग के फफूंद से ढक जाते हैं।
  • प्रभावित फल एक दुर्गंध भी उत्पन्न कर सकते हैं।
  • इस रोग से फसल की पैदावार 30 से 50 प्रतिशत तक कम हो जाती है।

नियंत्रण:

  • अच्छी स्वच्छता बनाए रखें और संक्रमित फलों और पौधों के मलबे को तुरंत हटा दें।
  • अधिक सिंचाई से बचें, क्योंकि अतिरिक्त नमी फफूंद के विकास को प्रोत्साहित कर सकती है।
  • रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।
  • DeM-45 (मैन्कोजेब 75% WP) दवा को प्रति एकड़ 600-800 ग्राम की मात्रा में छिड़काव करें।

मृदुरोमिल आसिता रोग (डाउनी मिल्ड्यू):

  • करेला की पत्तियों की ऊपरी सतह पर पीले रंग के धब्बे बनते हैं।
  • पत्तियों के निचले हिस्से पर सफेद या भूरे रंग के धब्बे और पानी से भरे दाग देखे जाते हैं।
  • पत्तियां मर जाती हैं और बेल का विकास रुक जाता है।

नियंत्रण:

  • प्रभावित पत्तियों को तोड़ कर अलग कर दें।
  • सिनपैक्ट (एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 18.2% + डाइफ़ेनोकोनाज़ोल 11.4% एससी) प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर।
  • DeM-45 (मैन्कोजेब 75% WP) दवा को प्रति एकड़ 600-800 ग्राम की मात्रा में छिड़काव करें।
  • देहात जिनैक्टो (Propineb 70% WP) प्रति एकड़ खेत में 600-800 ग्राम प्रयोग करें।

पत्ती सिकुड़न:

  • करेले की खेती में पत्तियों का सिकुड़ना एक गंभीर समस्या हो सकती है, जो कई विषाणु जनित रोगों और रस चूसक कीटों के कारण हो सकता है।
  • पौधे में फूल और फल नहीं आते हैं और अगर फल आ गए हैं, तो उनका आकार छोटा रह जाता है।
  • पौधों के वृद्धि-विकास में रुक जाता है।

नियंत्रण:

  • बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम कार्बेंडाजिम से उपचारित करें।
  • एसियर (थायामेथोक्साम 25% WG) कीटनाशक दवा को 40 से 80 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
  • इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस.एल. दवा को 60 से 70 मिली लीटर प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।

क्या आप भी करेला की फसल में कीटों से परेशान हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: करेला कितने दिन में फल देने लगता है?

A: करेले के बीज बोने के लगभग 55 से 60 दिनों के भीतर पौधों में फल आने लगते हैं। फल के आकार और रंग के अनुसार यह समय भिन्न हो सकता है, लेकिन सामान्यतः यह अवधि होती है।

Q: करेले की बुवाई कब करनी चाहिए?

A: करेले की बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त समय बरसात के मौसम का होता है, इसलिए मई से जून के महीने में बुवाई करनी चाहिए। यदि सर्दियों में करेले की खेती करनी हो, तो जनवरी से फरवरी का समय सही रहेगा।

Q: करेले की खेती में उर्वरक की मात्रा कितनी होनी चाहिए?

A: बुवाई के समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा, सल्फर और पोटाश की पूरी मात्रा देना चाहिए। बुवाई के 30-40 दिन बाद, बची हुई नाइट्रोजन की आधी मात्रा टॉप ड्रेसिंग के रूप में दी जानी चाहिए।

Q: भारत में करेला किस-किस राज्य में उगाया जाता है?

A: भारत में करेला की खेती प्रमुख रूप से छत्तीसगढ़, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, उत्तर प्रदेश, और बिहार में की जाती है।

Q: करेले के पौधे को कितना पानी देना चाहिए?

A: बुवाई के तुरंत बाद सिंचाई करें। गर्मियों में हर 6-7 दिन में और बारिश के समय केवल जरूरत के अनुसार सिंचाई करें। कुल मिलाकर 8-10 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। सिंचाई करते समय जलजमाव से बचें और मिट्टी की नमी बनाए रखें ताकि फसल की वृद्धि और उत्पादन में सुधार हो सके।

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