सूरन के प्रमुख रोग एवं उनका प्रबंधन (Major diseases of yam and their management)
सूरन की खेती भारत के कई हिस्सों में की जाती है और इसे ओल के नाम से भी जाना जाता है। यह फसल खाने और औषधीय उपयोग के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन इसे फफूंद और बैक्टीरिया जनित रोगों का खतरा रहता है। इन रोगों से फसल की पैदावार पर बुरा प्रभाव पड़ता है, इसलिए समय पर देखभाल जरूरी है। हम इस लेख में सूरन में लगने वाले प्रमुख रोगों और उनके बचाव के उपायों के बारे में जानकारी देंगे ताकि फसल की उपज और मुनाफा बेहतर हो सके।
सूरन में लगने वाले प्रमुख रोग (Major diseases of yam)
- लीफ स्पॉट रोग (Leaf Spot Disease)
यह रोग अधिकतर गर्म और आर्द्र मौसम में होता है। यह रोग ज्यादातर फरवरी-अप्रैल में गर्मियों की बारिश के साथ दिखाई देता है। पत्तियों पर गोल या अंडाकार धब्बे दिखाई देते हैं जो हल्के भूरे रंग के होते हैं। ये धब्बे पानी से लथपथ होते हैं, जिससे पत्तियां धीरे-धीरे गलने लगती हैं। धब्बे बाद में भूरे या काले हो जाते हैं और धंस जाते हैं। धब्बों के चारों ओर पीला गोलाकार होता है। गंभीर मामलों में, पत्तियां सूख जाती हैं और गिरने लगती है, जिससे पौधे का विकास रुक जाता है।
नियंत्रण:
- सूरन की नर्सरी को स्वच्छ बनाए रखें और संक्रमित पौधों के मलबे को हटाते रहें।
- पौधों के आस-पास उचित दूरी बनाए रखें ताकि हवा का संचालन ठीक से हो सके।
- सूरन की रोग प्रतिरोधी किस्मों का रोपण करें ताकि इस बीमारी के प्रसार को रोका जा सके।
- अगस्त-सितंबर में बीज बोए ताकि पौधे तेजी से बढ़कर रोग के प्रति सहनशील बन सकें।
- कई सालों तक एक ही जगह पर नर्सरी नहीं लगाना चाहिए।
- पौधों को अत्यधिक पानी देने से बचें और जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
- फसल में सही प्रकाश संश्लेषण के लिए सूर्य का प्रकाश सीधे पौधों तक पहुंचाना चाहिए।
- कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्लू.पी दवा को 500 से 600 ग्राम प्रति एकड़ की दर से इस्तेमाल करें।
- एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 4.8% w/w + क्लोरोथालोनिल 40% w/w SC दवा को 1.2 किग्रा प्रति एकड़ इस्तेमाल करें।
- एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 18.2% + डाइफेनोकोनाज़ोल 11.4% w/w SC दवा को 200 एमएल प्रति एकड़ छिड़काव करें।
- मैंकोजेब 75% WP दवा को 600 से 800 ग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करें।
- झुलसा रोग (Blight Disease)
पत्तियों पर हरे, पीले और भूरे रंग के धब्बे बनने लगते हैं। धीरे-धीरे धब्बे पीले या कत्थई रंग की धारियों में बदलने लगते हैं। जिन पत्तियों पर संक्रमण हुआ है, वे सूख कर मुरझा जाती हैं। सूरन के तनों पर भूरे और काले रंग के धब्बे नजर आते हैं। कंद पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाते हैं। मानसून के मौसम में रोग का प्रकोप बढ़ता है। पत्तियों के किनारे जलने के लक्षण दिखते हैं।
नियंत्रण:
- बीजों को रोपाई करने से पहले फफूंदनाशी से उपचारित जरूर करें।
- फसल को जलभराव से बचें और खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था बनाए रखें। झुलसा रोग के लक्षण दिखने पर खेत से पानी निकाल दें।
- नाइट्रोजन युक्त उर्वरक का अधिक प्रयोग न करें।
- प्रति एकड़ 10 किलोग्राम पोटाश का छिड़काव करें।
- रोपाई से पहले फसल के अवशेषों को हटाए और संक्रमित हिस्से को जला दें।
- पायराक्लोस्ट्रोबिन 10% + फिप्रोनिल 5% एस.सी दवा को एक एकड़ में 400 एम.एल स्प्रे करें।
- डिफ़ेनोकोनाज़ोल 25% ईसी दवा को 150 एम.एल प्रति एकड़ उपयोग करके झुलसा रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।
- कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्लू.पी दवा को 500 से 600 ग्राम प्रति एकड़ की दर से इस्तेमाल करें।
- कॉलर रोट (Collar Rot)
- भूरे रंग के घाव पूरे पौधे पर दिखाई देते हैं, जो बाद में पूरे तने को घेर लेते हैं और पौधों की वृद्धि को रोक देते हैं।
- यह रोग अधिकतर जलभराव वाले स्थानों पर देखा जाता है, जहां गिलासी मृदा और खराब जल निकासी होती है।
नियंत्रण:
- रोग प्रतिरोधी किस्मों का ही चुनाव करें।
- नीम केक 10% नीम केक और 90% खाद के साथ मिलाकर के प्रति एकड़ उपयोग करें।
- बायोकंट्रोल एजेंट ट्राइकोडर्मा विरिडे 2.5 किलोग्राम को 50 किलोग्राम एफवाईएम (FYM) के साथ मिलाकर पौधों के आसपास प्रयोग करें।
- प्रोक्लोराज़ 5.7% + टेबुकोनाज़ोल 1.4% w/w ES दवा को सूरन को बुवाई या रोपाई करने से पहले 3 एम.एल में भिगो दें।
- मैंकोजेब 63% + कार्बेन्डाजिम 12% WS दवा 2.5 ग्राम सूरन को बुवाई या रोपाई करने से पहले उसे भिगो कर रखें, और उसके बाद खेतों में रोपित करें।
- टेबुकोनाज़ोल 5.4% w/w FS दवा को सूरन को बुवाई या रोपाई करने से पहले 0.24 ग्राम में मिला कर ही रोपित करें।
- तना गलन (Stem Rot)
- इस रोग में पौधे के तने में गलन का लक्षण देखा जाता है, जिसके कारण पौधे कमजोर हो जाते हैं और गिर सकते हैं।
- यह रोग ज्यादातर बरसाती इलाकों में होता है, जहां जलभराव अधिक होता है। इस रोग का प्रकोप अगस्त-सितंबर माह में अधिक होता है।
- यह मृदा जनित रोग होता है और इसके लक्षण कॉलर भाग पर दिखाई देते हैं।
- पौधे के कॉलर हिस्से पर भूरे रंग के घाव बनते हैं। पौधे पीले पड़ने लगते हैं और अंततः जमीन पर गिर जाते हैं।
नियंत्रण:
- फसल को जलभराव से बचें और खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था बनाए रखें।
- सूरन में रोग नियंत्रण के लिए फसल चक्र अपनाएं, विभिन्न फसलों को बदल-बदल कर लगाएं।
- संक्रमित हिस्से को जला दें और खेत में उचित साफ़ सफाई रखें।
- रोग प्रतिरोधी किस्मों का ही चुनाव करें।
- सूरन को बुवाई या रोपाई करने से पहले 3 ग्राम दवा को 1 लीटर पानी में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को मिलाकर कुछ समय के लिए भिगोकर रखना चाहिए।
- प्रोक्लोराज़ 5.7% + टेबुकोनाज़ोल 1.4% w/w ES दवा को सूरन को बुवाई या रोपाई करने से पहले 3 एम.एल में भिगो दें।
- मैंकोजेब 63% + कार्बेन्डाजिम 12% WS दवा 2.5 ग्राम सूरन को बुवाई या रोपाई करने से पहले उसे भिगो कर रखें, और उसके बाद खेतों में रोपित करें।
- टेबुकोनाज़ोल 5.4% w/w FS दवा को सूरन को बुवाई या रोपाई करने से पहले 0.24 ग्राम में मिला कर ही रोपित करें।
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: जिमीकंद की खेती कब करें?
A: जिमीकंद की खेती अप्रैल से अगस्त के महीने में करते हैं। जब मिट्टी नम और तापमान गर्म होता है।
Q: जिमीकंद कितने महीने में तैयार हो जाता है?
A: जिमीकंद बुआई के सात से आठ महीने के बाद, जब पत्तियाँ पीली पड़ कर सूखने लगती हैं, तब फसल खुदाई के लिए तैयार हो जाती है।
Q: जिमीकंद का दूसरा नाम क्या है?
A: जिमीकंद को आमतौर पर एलीफैंट याम, सूरन या जिमीकंद नाम से जाना जाता है।
Q: सूरन की फसल में कौन-कौन से पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है?
A: सूरन की फसल को अच्छी तरह से विकसित करने के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, और सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करें।
Q: सूरन की फसल के लिए जल प्रबंधन कैसे करें?
A: सूरन की फसल को नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है, खासकर सूखे के मौसम में। पानी के जलभराव से बचें और अच्छी जल निकासी की व्यवस्था सुनिश्चित करें। पौधों को सूखा या जलभराव से बचाने के लिए ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग करना फायदेमंद होता है।
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