हींग के प्रमुख कीट और उनका प्रबंधन (Major pests of asafoetida and their management)
हींग, जिसे आमतौर पर भारतीय व्यंजनों में इस्तेमाल किया जाने वाला मसाला है। यह फेरुला पौधे की राल से प्राप्त होता है। हींग भारत में किसानों के लिए एक मूल्यवान फसल है, लेकिन यह कई कीटों के लिए अतिसंवेदनशील है जो पौधों को महत्वपूर्ण नुकसान पहुंचा सकते हैं और पैदावार कम कर सकते हैं। इस पोस्ट के माध्यम से, हम हींग के कुछ प्रमुख कीटों और उनके प्रबंधन के बारे में जानकारी देंगे।
हींग में लगने वाले मुख्य कीट (Main pests in asafoetida)
सफेद मक्खियां (Whiteflies): सफेद मक्खियां (Whiteflies) छोटे, पंखों वाले कीड़े होते हैं जो पौधों के पत्तों के निचले हिस्से पर फ़ीड करते हैं। उनके स्राव से पत्तियां पीली हो जाती हैं और वे हनीड्यू (कीट मल) उत्पन्न करते हैं, जिससे काले फफूंद (सूटी मोल्ड) का विकास होता है। पत्तियां मुरझा जाती हैं और पौधों का विकास रुक जाता है।
नियंत्रण:
- नीम का तेल 1 लीटर पानी में 5 मिलीलीटर मिलाकर छिड़काव करें।
- नियमित रूप से पत्तियों की जांच करें और संक्रमित पत्तियां हटा दें।
- फसल चक्र का पालन करें ताकि कीट प्रकोप कम हो।
- खेतों में प्रति एकड़ की दर से 4 से 6 पीले स्टिकी ट्रैप लगाएं ताकि मक्खियां इनमें फंस जाएं।
- थियामेथोक्सम 25% WG (DeHaat Asear): 0.3 से 0.5 ग्राम दवा को एक लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
- क्लोरोपाइरीफॉस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी (DeHaat C Square): 2 मिली प्रति लीटर पानी में दवा को मिलाकर छिड़काव करें।
- इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL: 1 से 2 मिली प्रति लीटर पानी में दवा को मिलाकर छिड़काव करें।
कटवर्म (Cutworms): कटवर्म कीट हींग की फसल को नष्ट करने के साथ-साथ उपज में भी काफी नुकसान पहुंचाता है। यह कीट मुख्यतः पौधे के तने पर हमला करता है, जिससे फसल की पूर्ण वृद्धि नहीं हो पाती। कटवर्म का लार्वा पीले धूसर रंग का होता है और व्यस्क कीट भूरे एवं हरे रंग के होते हैं। ये कीट रात में भोजन करते हैं और आमतौर पर मिट्टी में या पौधे के मलबे में पाए जाते हैं। इनका आकार लगभग 1-2 इंच होता है और ये आमतौर पर भूरे या भूरे रंग के होते हैं।
नियंत्रण:
- हींग की बुवाई से पहले खेत में एक बार गहरी जुताई करें। इससे मिट्टी में मौजूद कीट नष्ट हो जाएंगे।
- खेत को खरपतवार से मुक्त रखें।
- कटवर्म सूखी घास एवं फसल के अवशेषों में छिपे रहते हैं, इसलिए खेत की नियमित सफाई करें और फसल के अवशेषों को खेत से बाहर निकाल दें।
- कार्बोफ्यूरान 03% सी.जी. का 13 किलोग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करें।
- डेल्टामेथ्रिन 02.80% ई.सी. कीटनाशक को प्रति एकड़ की दर से 200 मिलीलीटर की दर से प्रयोग करें।
- क्लोरपायरीफॉस 20% ईसी का उपयोग कीटों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। इसे प्रति एकड़ 1 लीटर की दर से प्रयोग करें।
एफिड्स (Aphids): एफिड्स के शिशु और वयस्क दोनों ही रस चूसते हैं। ज्यादातर पुरानी और छोटी पत्तियों को खाते हैं जिससे पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। संक्रमण ज्यादा होने पर पत्तियां किनारों से गलने लगती हैं और इनके संक्रमण से पुष्पगुच्छ बनना कम हो जाता है। एफिड्स एक चिपचिपा पदार्थ छोड़ते हैं जिसके कारण फफूंद जनित रोगों को फैलाने लगते हैं।
नियंत्रण:
- इनको नियंत्रित करने के लिए लाइट ट्रैप लगाएं ताकि संक्रमण की तीव्रता का पता लगाया जा सके।
- प्रति एकड़ की दर से 6 फेरोमोन ट्रैप का प्रयोग करें ताकि नर पतंगों को आकर्षित किया जा सके।
- इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू एस (DeHaat Contropest) दवा से 7 मि.ली प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें।
- नीम का तेल या कीटनाशक साबुन का स्प्रे करें। पौधों की नियमित निगरानी करें और संक्रमित हिस्सों को तुरंत हटाएं।
- क्लोरोपाइरीफॉस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी (DeHaat C Square) दवा को 2 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
लीफ माइनर (Leaf Miner): यह छोटे, फ्लाई लार्वा होते हैं जो पत्तियों में सुरंग बनाते हैं। पत्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे विकास और उपज कम हो सकती है। छोटी मक्खी जो पौधे की पत्तियों पर अंडे देती है। अंडों से निकलकर पत्तियों में दब जाते हैं, जहां वे भोजन करते हैं और विकसित होते हैं। लीफ माइनर से होने वाली क्षति पौधे की प्रकाश संश्लेषण की क्षमता को कम कर सकती है, जिससे विकास अवरुद्ध हो जाता है और उपज कम हो जाती है।
नियंत्रण:
- हींग की प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें।
- कीट नियंत्रण के लिए फसल चक्र अपनाएं।
- खेत से संक्रमित पत्तियों और कचरे को हटाए।
- (क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 8.8 + थायोमेथोक्जाम 17.5 एससी) दवा को 150 मि.ली. प्रति एकड़ छिड़काव करने से इस कीट को नियंत्रित किया जा सकता है।
- डेल्टामेथ्रिन 02.80% ई.सी. को प्रति एकड़ 200 मिलीलीटर की दर से प्रयोग किया जाता है।
- इमिडाक्लोप्रिड 17.80% एस.एल. को प्रति एकड़ 40 मिलीलीटर की मात्रा में छिड़काव किया जाता है।
- लैंब्डा-साइहैलोथ्रिन 05% ई.सी. कीटनाशक को प्रति एकड़ 80-120 मिली लीटर की दर से उपयोग किया जाता है।
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: हींग की खेती भारत में कहाँ होती है?
A: भारत में हींग की खेती मुख्य रूप से पश्चिमी क्षेत्र में की जाती है, विशेषकर गुजरात और राजस्थान राज्यों में। इन राज्यों की शुष्क जलवायु और मिट्टी की स्थितियां हींग के पौधों के विकास के लिए अनुकूल होती हैं। राजस्थान में जोधपुर क्षेत्र अपने उच्च गुणवत्ता वाले हींग उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त, हिमाचल प्रदेश के कुछ गाँवों में भी अफगानी और ईरानी हींग की खेती हो रही है।
Q: हींग के पेड़ से हींग कैसे निकलती है?
A: हींग के पेड़ से हींग प्राप्त नहीं किया जा सकता है, बल्कि पौधों की जड़ों से इसे टीआय किया जाता है। हींग के पौधे जब 5-6 वर्ष के हो जाते हैं तब जड़ों और तने की कटाई की जाती है। पौधों की जड़ों और तने से दूध की तरह राल निकलता है। इस राल को सूखाया जाता है और उसमें स्टार्च मिला कर उसे प्रोसेस किया जाता है। इसके बाद उसे छोटे-छोटे टुकड़े में करके इस्तेमाल किया जाता है।
Q: हींग की पहचान कैसे करें?
A: हींग की गुणवत्ता जांचने के लिए उसे जलाकर देखा जा सकता है। असली हींग जल जाती है जबकि नकली नहीं जलती। असली हींग आमतौर पर भूरे रंग की होती है और इसे घी के साथ सब्जी में तड़का लगाने पर यह फूलने लगती है। गर्म घी या तेल में डालने के बाद इसका रंग लाल हो जाता है, जो इसकी शुद्धता का संकेत है।
Q: भारत में कौन सा राज्य हींग के लिए प्रसिद्ध है?
A: राजस्थान राज्य हींग के लिए प्रसिद्ध है। राजस्थान के जोधपुर शहर को "भारत की हींग राजधानी" के रूप में जाना जाता है और यह हींग के उत्पादन और व्यापार का एक प्रमुख केंद्र है। राजस्थान में शुष्क जलवायु और मिट्टी की स्थिति फेरुला पौधे की खेती के लिए आदर्श है, जो हींग का स्रोत है।
Q: हींग में लगने वाले प्रमुख कीट कौन से हैं?
A: हींग को प्रभावित करने वाला प्रमुख कीट हींग फ्लाई (Pegohylemyia setosa) है। इस मक्खी के लार्वा हींग के पौधे की जड़ों को खाते हैं, जिससे फसल को काफी नुकसान हो सकता है। अन्य कीट जो हींग को प्रभावित कर सकते हैं, उनमें एफिड्स, माइट, और थ्रिप्स शामिल हैं।
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