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6 Jan
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मखाना की खेती (Makhana Farming)


मखाना की खेती भारतीय कृषि में महत्वपूर्ण स्थान रखती है और यह न केवल घरेलू बाजारों में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी लोकप्रिय हो रही है। बिहार में मखाना की खेती प्रमुख कृषि गतिविधि बन चुकी है, जिससे किसानों को अच्छा लाभ मिल रहा है। मखाना पोषक तत्वों से भरपूर एक सुपरफूड है, जो प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और मिनरल्स से भरपूर होता है। इसकी बढ़ती मांग के कारण, मखाना की खेती अब देशभर में फैल रही है। इस लेख में हम मखाना की खेती के प्रमुख पहलुओं पर चर्चा करेंगे, जैसे उपयुक्त मिट्टी, जलवायु, बीज दर, किस्में, खेत की तैयारी, खाद-उर्वरक प्रबंधन, सिंचाई, खरपतवार नियंत्रण, रोग और कीट नियंत्रण, और उत्पादन प्रक्रिया।

मखाना की खेती कैसे करें? (How to Grow Makhana?)

मिट्टी (Soil): मखाना की खेती के लिए सबसे उपयुक्त मिट्टी गहरी, बलुई और चिकनी होती है। मिट्टी में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए, क्योंकि मखाना जलाशयों या तालाबों में उगता है। मखाना के लिए आदर्श मिट्टी का पीएच स्तर 6.5 से 7.5 तक होता है। ऐसी मिट्टी जिसमें जैविक पदार्थ और पोषक तत्व अधिक होते हैं, मखाना की अच्छी वृद्धि के लिए आवश्यक होती है।

जलवायु (Climate): मखाना की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु सर्वोत्तम होती है। यह मुख्य रूप से गर्मियों में उगने वाली फसल है और इसके लिए 20°C-35°C तापमान तक की आवश्यकता होती है। मखाना को पानी और नमी की आवश्यकता होती है, इसलिए इसे तालाबों, झीलों या जलाशयों में उगाया जाता है। ठंडी जलवायु में इसकी पैदावार कम होती है।

बीज दर और किस्म (Seed Rate and Variety): मखाना की बुवाई दिसंबर से जनवरी में होती है। एक एकड़ में 36-40 किलो बीज चाहिए। प्रमुख किस्में: बिहार मखाना, स्वर्ण वैदेही, सबौर मखाना-1, आसाम मखाना। इनकी विशेषताएँ आकार, गुणवत्ता और उत्पादन क्षमता में अलग-अलग होती हैं। किसानों को मिट्टी और जलवायु के अनुसार उपयुक्त किस्म का चयन करना चाहिए।

खेत की तैयारी (Field Preparation): मखाना की खेती के लिए खेत की अच्छी तैयारी जरूरी है। तालाबों और जलाशयों की खुदाई से पानी का सही प्रबंधन किया जाता है। जल स्तर नियंत्रित करने के लिए पानी की सही व्यवस्था होनी चाहिए। खुले खेतों में खेती करने पर सिंचाई की भी आवश्यकता होती है। बुवाई दिसंबर में की जाती है, जब मौसम मखाना के लिए आदर्श होता है। मखाना के बीज का अंकुरण हाइपोजीयल होता है, यानी बीज के पत्ते जमीन के नीचे रहते हैं। पौधों की घनता सही रखने के लिए थिनिंग की जाती है, और पौधों के बीच एक मीटर की दूरी रखी जाती है, ताकि वे अच्छे से बढ़ सकें।

बीज का चयन और अंकुरण (Seed Selection and Germination): मखाना की बुआई के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का चयन बेहद जरूरी है। बीजों को अच्छे से भिगोकर रखा जाता है ताकि उनका अंकुरण सही तरीके से हो सके। बीजों को गर्म पानी में 2-3 दिन तक भिगोने से उनकी बाहरी परत नरम हो जाती है, जिससे अंकुरण जल्दी और अच्छे से होता है।

मखाना की बुवाई विधियाँ:

  • तालाब विधि: यह मखाना की पारंपरिक खेती का तरीका है, जहां बीज पहले वर्ष में बचे हुए होते हैं और नए वर्ष में इन बीजों से बुआई की जाती है। तालाब में पानी की गहराई 4 से 6 फीट तक होनी चाहिए और पौधों के बीच 1 से 1.5 मीटर की दूरी रखनी चाहिए।
  • सीधी बुवाई: इस विधि में मखाना के स्वस्थ बीज को दिसंबर में तालाब में बिखेर दिया जाता है। लगभग 35-40 दिनों में मखाना के पौधे पानी की सतह पर उगने लगते हैं।
  • रोपाई विधि: इसमें नर्सरी से पौधों को उखाड़कर खेतों में रोपा जाता है। पौधों के बीच की दूरी 1.2 मीटर से 1.25 मीटर रखी जाती है, ताकि पौधे अच्छी तरह से बढ़ सकें।
  • खेत प्रणाली: यह मखाना की खेती की एक नई विधि है, जिसमें मखाना 1 फीट गहरे पानी में उगाया जाता है और इसमें अन्य फसलें जैसे धान भी उगाई जाती हैं। इस विधि से मखाना की पैदावार चार महीने में होती है।

खाद और उर्वरक प्रबंधन (Fertilizer and Manure Management): मखाना की पैदावार बढ़ाने के लिए खाद और उर्वरकों का उचित प्रयोग महत्वपूर्ण है। गोबर की खाद, कंपोस्ट और हरी खाद का प्रयोग किया जा सकता है। रासायनिक उर्वरकों के रूप में 54 किलो यूरिया, 74 किलो डी.ए.पी और 30 किलो एम.ओ.पी का उपयोग प्रति एकड़ करें इसकी संतुलित मात्रा का प्रयोग फसल को बेहतर बनाता है। बुवाई के समय 25-30 क्विंटल गोबर की खाद प्रति एकड़ डाली जाती है, इसके बाद फास्फोरस और पोटाश का उपयोग किया जा सकता है।

सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management): मखाना की फसल को जल की निरंतर आपूर्ति की आवश्यकता होती है। इसे तालाबों और जलाशयों में उगाया जाता है, जहां पानी की ऊंचाई 1 से 1.5 मीटर तक होनी चाहिए। मखाना को ज्यादातर वर्षा के पानी से सिंचाई मिलती है, लेकिन शुष्क मौसम में अतिरिक्त सिंचाई की आवश्यकता हो सकती है।

खरपतवार नियंत्रण (Weed Management): मखाना के खेतों में खरपतवारों का नियंत्रण बहुत आवश्यक है, क्योंकि ये मखाना की वृद्धि को प्रभावित कर सकते हैं। खरपतवारों की रोकथाम के लिए हाथ से निराई-गुड़ाई की जाती है। पानी के स्तर को नियंत्रित करने से भी खरपतवारों की वृद्धि को कम किया जा सकता है। जैविक विधियां जैसे बायो-न्यूट्रिएंट्स का प्रयोग भी खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता है।

रोग और कीट नियंत्रण (Disease and Pest Control): मखाना के पौधों में कई प्रकार के कीट और रोग लग सकते हैं। प्रमुख कीटों में मच्छर और बीजों पर घुन लगना शामिल है। इसके नियंत्रण के लिए जैविक कीटनाशकों का प्रयोग किया जा सकता है। पानी की सतह पर बीज फोड़ने से पहले उन्हें अच्छे से धूप में सुखाना चाहिए।

उत्पादन (Production): मखाना की फसल में उत्पादन समय के साथ बढ़ता जा रहा है। बीज बुआई के 35 से 40 दिनों बाद पौधे पानी की सतह पर उगने लगते हैं। 1 से 2 महीनों में मखाना के बीज पकने लगते हैं और फल पानी की सतह पर तैरने लगते हैं। फल के कांटों के गलने के बाद, मखाना के बीजों को पानी के नीचे से निकालकर प्रोसेसिंग किया जाता है। इसके बाद बीजों को धूप में सुखाकर ग्रेडिंग की जाती है और फिर इन्हें फोड़ा जाता है।

कटाई (Harvesting): मखाना की फसल की कटाई अक्टूबर से नवंबर के महीने में की जाती है, जब बीज पूरी तरह से पके होते हैं और उनका आकार बढ़ चुका होता है। कटाई के बाद बीजों को धूप में सुखाया जाता है। जुलाई-अगस्त में पके फल फटकर बीज तालाब के तल में जमा हो जाते हैं, और बीजों का संग्रह अगस्त से शुरू होता है।

भंडारण (Storage): मखाना को सुखाकर सही तरीके से भंडारित करना जरूरी है, ताकि वह खराब न हो और अधिक समय तक ताजगी बनाए रखें। मखाना को सही तापमान और नमी के स्तर पर भंडारण करना चाहिए।

क्या आप भी मखाना की खेती करना चाहते हैं ? अगर हाँ तो हमें कमेंट करके बताएं। ऐसी ही रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'बागवानी फसलें' चैनल को अभी फॉलो करें। अगर आपको यह पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान मित्रों के साथ साझा करें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: मखाने की खेती कहाँ होती है?

A: मखाने की खेती मुख्य रूप से भारत के बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और मध्य प्रदेश राज्यों में होती है। विशेष रूप से बिहार में मखाने की खेती प्रमुख कृषि गतिविधि बन चुकी है। यहां के तालाबों और जलाशयों में इसकी खेती की जाती है, जहां मखाना सबसे अच्छी गुणवत्ता में उगता है।

Q: 1 एकड़ मखाने की खेती में कितना खर्च आता है?

A: 1 एकड़ मखाने की खेती में लगभग ₹30,000 से ₹40,000 का खर्च आता है। इस खर्च में खेत की तैयारी, बीज, खाद, सिंचाई, श्रमिक शुल्क और अन्य जरूरी खर्च शामिल होते हैं। यह खर्च खेती की विधि और क्षेत्रीय परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

Q: 1 एकड़ में कितना मखाना होता है?

A: 1 एकड़ मखाने की खेती में लगभग 100-150 किलो मखाना उत्पादित हो सकता है। यह उत्पादन खेत की गुणवत्ता, जलवायु और खेती के तरीके पर निर्भर करता है। यदि खेत की तैयारी और देखभाल ठीक से की जाए तो उत्पादन बढ़ सकता है।

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