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2 Sep
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मैंगोस्टीन की खेती (Mangosteen Farming)


मैंगोस्टीन (Mangosteen) एक उष्णकटिबंधीय फल है, जिसे "फलों की रानी" के रूप में जाना जाता है। मैंगोस्टीन के फल का गूदा सफेद, रसदार, और मीठा होता है। इसकी खेती मुख्य रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया में की जाती है, लेकिन अब इसे भारत के कुछ हिस्सों में केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में उगाया जा रहा है। मैंगोस्टीन फल में एंटीऑक्सीडेंट, एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल गुण होते हैं, और वैज्ञानिक इसका उपयोग स्तन कैंसर, लीवर कैंसर, और ल्यूकेमिया के इलाज में भी कर रहे हैं।

कैसे करें मैंगोस्टीन की खेती? (How to cultivate mangosteen?)

  • मिट्टी: मैंगोस्टीन के पौधों के उचित विकास के लिए रेतीली दोमट और कार्बनिक पदार्थों से भरपूर उपजाऊ मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। इसके लिए मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.5 के बीच होना आदर्श है, जबकि फल की अच्छी पैदावार के लिए पीएच मान 6 से 8 के बीच होना चाहिए।
  • जलवायु: मैंगोस्टीन एक उष्णकटिबंधीय फल है जिसे मध्यम जलवायु की जरूरत होती है। इसे उच्च आर्द्रता और 22 से 35 डिग्री सेल्सियस के बीच का तापमान पसंद है। मैंगोस्टीन को छाए में भी अच्छी तरह से उगाया जा सकता है, इसलिए इसे ऐसे स्थान पर रखें जहां अप्रत्यक्ष या फिल्टर की हुई धूप मिलती है। आमतौर पर, पौधों को हर दिन लगभग 13 घंटे सूरज की रोशनी की जरूरत होती है। इस फल के लिए गर्म और नमीयुक्त जलवायु सबसे उपयुक्त है। पौधे को अत्यधिक पानी, गर्मी या ठंड की ज़रूरत नहीं होती है।
  • बुवाई का समय: मैंगोस्टीन की खेती मानसून के मौसम में की जाती है इसके लिए जून से जुलाई का महीना सबसे उत्तम माना जाता है।
  • खेत की तैयारी: इसकी बुवाई करने से पहले पुरानी फसल के अवशेष हटा दें। खेत की मिट्टी को पलटने वाले हल या कल्टीवेटर से 2-3 बार गहरी जुताई करें। मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए 1-2 बार रोटावेटर से जुताई करें। खेत को समतल करने के लिए पाटा लगाएं, ताकि बारिश के दौरान जलभराव न हो। एक मीटर चौड़े और दो फीट गहरे गड्ढे पंक्तियों में तैयार करें, पंक्ति से पंक्ति के बीच 5-6 मीटर की दूरी रखें। गड्ढे का आकार 3x3x3 फीट का होना चाहिए। गड्ढों में जैविक और रासायनिक खाद डालें। खाद डालने के बाद गहरी सिंचाई करें। गड्ढों की तैयारी पौधों की रोपाई से एक महीने पहले करें।
  • पौधरोपण: मैंगोस्टीन के पेड़ों को बीज, ग्राफ्टिंग या बडिंग से फैलाया जा सकता है। मैंगोस्टीन का बीज लगाना आसान और सस्ता तरीका है, लेकिन बीज निकालने के तुरंत बाद बोना चाहिए क्योंकि वे जल्दी खराब हो जाते हैं। पौधों के बीच 20 x 20 फ़ीट की दूरी रखें। गड्ढे का आकार 60 सेमी x 60 सेमी x 60 सेमी रखें और गड्ढों में कार्बनिक पदार्थ से भरी मिट्टी डालें। बीज से बुवाई कठिन है; नर्सरी से पौधा खरीद कर लगाना बेहतर होता है। नए पेड़ को 12 इंच की लंबाई तक पहुंचने में 2 साल ले सकते हैं। भारत में मैंगोस्टीन के पेड़ों से फलों की फसल जुलाई से अक्टूबर और अप्रैल-जून के महीनों में होती है।
  • खाद एवं उर्वरक प्रबंधन: 1 से 3 साल पुराने मैंगोस्टीन पेड़ों के लिए 110 ग्राम यूरिया, 45 ग्राम डी.ए.पी या 90 ग्राम एम.ओ.पी और 20-25 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद (एफवाईएम) का उपयोग करना चाहिए, जिससे पेड़ों की वृद्धि और विकास में सहायता मिलती है। सूक्ष्म पोषक तत्वों के साथ पत्तियों पर छिड़काव भी फायदेमंद हो सकता है। पौधों की रोपाई करते समय, गड्ढों में 15 किलो सड़ी हुई गोबर की खाद और 100 ग्राम एनपीके खाद मिलाकर भरना चाहिए। पौधे के विकास के साथ उर्वरक की मात्रा बढ़ानी चाहिए। जब पेड़ 15 वर्ष का पूर्ण विकसित हो जाए, तो वर्ष में एक से दो बार 30 किलो जैविक खाद, 3 किलो सुपर फास्फेट खाद, 2 किलो यूरिया और 2 किलो पोटाश देना चाहिए। फूल आने से पहले 500 ग्राम यूरिया प्रति पौधा देना चाहिए और फूल आने के बाद भी 500 ग्राम यूरिया देना चाहिए। फल लगने के बाद 25 किग्रा गोबर की खाद, 830 ग्राम एम.ओ.पी और 550 ग्राम यूरिया प्रति पेड़ देना चाहिए।
  • सिंचाई प्रबंधन: मैंगोस्टीन के पेड़ों को नियमित और पर्याप्त पानी की आवश्यकता होती है, खासकर शुष्क मौसम में। मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए नियमित अंतराल पर सिंचाई करें। पेड़ के आधार के चारों ओर मल्चिंग से नमी बनाए रखने और खरपतवार की वृद्धि रोकने में मदद मिलती है। केवल ताजे पानी का उपयोग करें; खारा पानी पेड़ की वृद्धि को प्रभावित कर सकता है। पूर्ण रूप से विकसित पेड़ों को साल में 10 लीटर पानी देने की आवश्यकता होती है। सर्दियों में 10 से 15 दिन में एक बार सिंचाई करें; गर्मियों में 5 से 6 दिन में एक बार पानी दें। बलुई दोमट मिट्टी में अधिक पानी की आवश्यकता होती है; गर्मियों में सप्ताह में दो बार पानी दें। बारिश के मौसम में, केवल वर्षा की कमी होने पर सिंचाई करें।
  • खरपतवार प्रबंधन: पेड़ के उचित आकार, बेहतर वायु परिसंचरण और आसान कटाई के लिए छंटाई करना आवश्यक है। सुप्त मौसम के दौरान हर साल पेड़ की छंटाई करें। युवा पेड़ों को केंद्रीय लीडर प्रणाली के साथ प्रशिक्षित करें ताकि मजबूत ढांचा बने। खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक तरीकों का उपयोग करें। पौधों की रोपाई के 20 से 25 दिन बाद हल्की निराई-गुड़ाई करें। पूरी तरह से विकसित पौधों के लिए प्रति वर्ष 3 से 4 गुड़ाई पर्याप्त है।
  • रोग एवं कीट: मैंगोस्टीन के पेड़ फल मक्खियों, स्केल और एन्थ्रेक्नोज सहित विभिन्न कीटों और रोगों के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं। प्रभावी कीट और रोग प्रबंधन के लिए नियमित निगरानी और उचित कीटनाशकों और कवकनाशी का समय पर उपयोग महत्वपूर्ण है। एकीकृत कीट प्रबंधन प्रथाओं का पालन किया जाना चाहिए।
  • तुड़ाई एवं उपज: भारत में मैंगोस्टीन के फल दो मौसमों में तैयार होते हैं: पहला जुलाई से अक्टूबर और दूसरा अप्रैल से जून के दौरान। रोपाई के बाद पेड़ों को फल देने में 7-9 साल तक का समय लग सकता है। जब फलों के रंग में परिवर्तन दिखने लगते हैं, तो वे तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। एक पेड़ से 500 से 600 फलों की उपज मिल सकती है।

क्या आप भी मैंगोस्टीन की खेती करना चाहते हैं ? अगर हाँ तो हमें कमेंट करके बताएं। ऐसी ही रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'बागवानी फसलें' चैनल को अभी फॉलो करें। अगर आपको यह पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान मित्रों के साथ साझा करें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (Frequently Asked Questions - FAQs)

Q: मैंगोस्टीन को भारत में क्या कहते हैं?

A: मैंगोस्टीन फल में एक मीठा, खट्टा स्वाद होता है जिसे लीची, आड़ू, स्ट्रॉबेरी और अनानास के स्वाद के मिश्रण के रूप में बताया जाता है। भारत में, मैंगोस्टीन फल को अलग-अलग नामों से जाना जाता है – हिंदी में मंगुस्तान, मलयालम में कट्टम्पी, मराठी में कोकम, कन्नड़ में हन्नू और बंगाली में काओ।

Q: क्या हम भारत में मैंगोस्टीन उगा सकते हैं?

A: बिल्कुल, मैंगोस्टीन को भारत में उगाया जा सकता है। यह मुख्य रूप से भारत के दक्षिणी राज्यों जैसे केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक में उगाया जाता है। हालांकि, मैंगोस्टीन की खेती के लिए मिट्टी की गुणवत्ता, सिंचाई और कीट प्रबंधन पर सावधानीपूर्वक ध्यान देने की आवश्यकता होती है।

Q: मैंगोस्टीन के पेड़ को फल पैदा करने में कितने साल लगते हैं?

A: एक मैंगोस्टीन के पेड़ को फल देना शुरू करने में लगभग 7-10 साल लग सकते हैं, और पेड़ को अपनी पूरी फल देने की क्षमता तक पहुंचने में 15 साल तक का समय लग सकता है। पेड़ को फल देने में लगने वाला समय विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है जैसे कि पेड़ की उम्र, बढ़ती स्थिति और प्रबंधन प्रथाएं।

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