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मेंथा / पुदीना
कृषि ज्ञान
20 Sep
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मेंथा की खेती | Mentha Cultivation

मेंथा एक औषधीय पौधा है। मेंथा की खेती इसकी पत्तियों से तेल प्राप्त करने के लिए की जाती है। मेंथा के तेल से दवाएं और कई तरह के सौंदर्य प्रसाधन तैयार किए जाते हैं। इसके अलावा बाजार में इसकी हरी पत्तियों की मांग हमेशा बनी रहती है। इसकी खेती करने वाले किसान मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। विश्व में मेंथा से प्राप्त होने वाले तेल की खपत लगभग 9500 मीट्रिक टन है। विश्व में भारत इसके उत्पादन में पहले स्थान पर है। अगर आप भी करना चाहते हैं मेंथा की खेती तो, खेत की तैयारी, बेहतर किस्में, बुवाई का समय, उर्वरक और सिंचाई प्रबंधन, जैसी जानकारियां इस पोस्ट से प्राप्त कर सकते हैं।

मेंथा की खेती कैसे करें? | How to cultivate Mentha?

    • भूमि का चयन: मेंथा की खेती के लिए जीवांश युक्त बलुई दोमट एवं मटियारी दोमट सबसे अच्छी होती है। मिट्टी का पीएच स्तर 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
    • खेत की तैयारी: खेत को तैयार करने के लिए 2 से 3 बार जुताई करें। जुताई के बाद खेत में पाटा लगाकर खेत की मिट्टी को समतल एवं भुरभुरी बना लें। खेत तैयार करते समय प्रति एकड़ खेत में 100 से 120 क्विंटल गोबर की खाद मिलाएं। खेत की अंतिम जुताई के समय प्रति एकड़ खेत में 130 किलोग्राम यूरिया, 80-100 किलोग्राम एसएसपी और 33 किलोग्राम एम.ओ.पी. खाद मिलाएं। खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
    • बेहतरीन किस्में: मेंथा की उपज इसकी किस्मों पर निर्भर करती है। इसकी अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए आप सिम उन्नति, सिम कोशी, सिम क्रांन्ति, कुशल, कालका, कोसी, हिमालय, गोमती, सिम सरयू, सक्षम, संभव, डमरू, आदि किस्मों का चयन कर सकते हैं। इन किस्मों में 75% से 80% तक मेंथॉल  की मात्रा पाई जाती है।
    • बीज की मात्रा एवं बुवाई का समय: इसकी खेती जड़ों या टहनियों की रोपाई के द्वारा की जाती है। प्रति एकड़ खेत के लिए 160 किलोग्राम जड़ों की आवश्यकता होती है। इसकी बुवाई  नवंबर-दिसंबर का समय उपयुक्त है। इसके अलावा जनवरी-फरवरी महीने में भी जड़ों की बुवाई की जा सकती है। भारत के कुछ क्षेत्रों में इसकी खेती मार्च से अप्रैल महीने के पहले सप्ताह तक की जाती है। देर से बुवाई करने पर फसल में तेल की मात्रा में कमी आती है।
    • बुवाई की विधि: बेहतर उपज प्राप्त करने के लिए मेंथा की बुवाई कतारों में करें। सभी कतारों के बीच 12 से 15 इंच की दूरी रखें। पौधों से पौधों के बीच करीब 6 इंच की दूरी होनी चाहिए। रोपाई से पहले जड़ों को 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू.पी (देहात- साबू) से उपचारित करना चाहिए। इससे फसल को कई फफूंदजनित रोगों से बचाया जा सकता है। जड़ों की रोपाई 3 से 5 सेंटीमीटर की गहराई में करें।

  • सिंचाई प्रबंधन: उचित सिंचाई प्रबंध के द्वारा हम मेंथा की उपज में वृद्धि प्राप्त कर सकते हैं। मेंथा की सिंचाई मिट्टी में मौजूद नमी के अनुसार करनी चाहिए। जड़ों की रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें। इसके बाद हर 10 से 12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। खेत में  जल जमाव के कारण फसलों में गलन होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।

  • खरपतवार प्रबंधन: मेंथा की फसल में खरपतवारों का अधिक प्रकोप होता है। खरपतवारों को पनपने से रोकने के लिए बुवाई से पहले खेत में गहरी जुताई करें। इससे खेत में पहले से मौजूद खरपतवार नष्ट हो जाएंगे। इसके साथ ही फसल चक्र अपनाएं। मेंथा में खरपतवार नियंत्रण करने के लिए बुवाई के 48 घंटे के अंदर 600 मिलीलीटर पेंडिमेथालिन 38.7% सीएस (बीएएसएफ- स्टॉम्प एक्स्ट्रा, यूपीएल- दोस्त सुपर, टाटा रैलिस- पैनिडा ग्रांडे, SWAL- पैंडोरा) की मात्रा प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें। 25-30 दिनों की फसल में निराई गुड़ाई करें।
  • रोग एवं कीट प्रबंधन: मेंथा की फसल में बालों वाली सुंडी, पत्ती लपेटक कीट, झुलस रोग, तना गलन, जड़ गलन जैसे कीटों एवं रोगों का प्रकोप अधिक होता है। इन कीट एवं रोगों के कारण मेंथा की पैदावार में भारी कमी हो सकती है। इसके साथ ही फसल की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। फसल में लगने वाले रोग और कीट मेंथा में तेल की मात्रा में कमी का भी कारण बनते हैं। किसी भी रोग या कीट के लक्षण नजर आने पर उचित दवाओं का प्रयोग करें।
  • फसल की कटाई: मेंथा की कटाई सामान्यतः दो बार की जाती है। पहली कटाई बुवाई के लगभग 100-120 दिनों बाद पौधों में कलियां आने पर जमीन की सतह से 4-5 सेंटीमीटर की ऊंचाई से कटाई करें। पहली कटाई के लगभग 70-80 दिनों बाद दूसरी कटाई करें। कटाई के बाद पौधों को 2-3 घंटे तक खुली धूप में रखें। इसके बाद फसल को छांव में हल्का सूखाकर आसवन विधि के द्वारा यंत्र से तेल निकालें।

मेंथा के साथ आप अन्य किन फसलों की खेती करते हैं? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। कृषि संबंधी जानकारियों के लिए देहात के टोल फ्री नंबर 1800-1036-110 पर सम्पर्क करके विशेषज्ञों से परामर्श भी कर सकते हैं। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक एवं कमेंट करना न भूलें। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को अभी फॉलो करें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: मेंथा की अधिक पैदावार के लिए क्या करें?

A: मेंथा की पैदावार कई बातों पर निर्भर करती है। इसकी बेहतरीन किस्मों का चयन करने के साथ, खेत की तैयारी, उरवर्कों की मात्रा, सिंचाई एवं खरपतवार प्रबंधन, रोग एवं कीट नियंत्रण, आदि बातों को ध्यान में रख कर खेती करने पर आप इसकी अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।

Q: पिपरमेंट कितने दिन में तैयार हो जाता है?

A: सामान्यतः पिपरमेंट यानी मेंथा की फसल को तैयार होने में 100-120 दिनों का समय लगता है। इसकी कुछ किस्में 90 दिनों में भी तैयार हो जाती हैं।

Q: मेंथा का पौधा कैसे लगाएं?

A: मेंथा के जड़ों या टहनियों की रोपाई करके इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। ज्यादातर जड़ों के टुकड़ों की रोपाई के द्वारा इसकी खेती की जाती है। जड़ों की रोपाई मिट्टी में 3 से 5 सेंटीमीटर की गहराई में की जाती है।

Q: भारत के किन राज्यों में मेंथा की खेती की जाती है?

A: मेंथा की खेती भारत के कई राज्यों में की जाती है। जिनमें उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात एवं बिहार कुछ प्रमुख मेंथा उत्पादक राज्यों में शामिल हैं।

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