ऐसे किया कीट उपचार तो भरपूर होगी मेंथा की पैदावार

भारत विश्व में मेंथा का सबसे अधिक उत्पादन करने वाला देश है। हमारे देश में तैयार किए गए मेंथा के तेल के कुल उत्पादन का 75 प्रतिशत निर्यात किया जाता है। हालांकि मेंथा की फसल में अन्य फसलों की तुलना में कीटों का प्रकोप कम होता है। लेकिन फिर भी कई कीट ऐसे हैं जो मेंथा की फसल को बुरी तरह प्रभावित कर सकते हैं। आइए मेंथा की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों के प्रकोप का लक्षण एवं नियंत्रण के तरीकों की जानकारी प्राप्त करें।
मेंथा की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख कीट
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सूंडी : इस कीट का प्रकोप अप्रैल से जून महीने में अधिक होता है। सूंडी का आकार करीब 2.5 से 3 सेंटीमीटर होता है। यह पीले-भूरे रंग की होती हैं। यह पत्तियों को खा कर फसल को नुक्सान पहुंचाती हैं। प्रभावित पत्तियां जाली की तरह नजर आने लगती हैं। कुछ समय बाद पत्तियां गिरने लगती हैं। इस पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 150 लीटर पानी में 50 मिलीलीटर देहात कटर मिला कर छिड़काव करें। यह मात्रा प्रति एकड़ भूमि के अनुसार दी गई है।
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दीमक : यह कीट भूमि की सतह से लगे पौधों के अंदर के हिस्सों को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे पौधों के ऊपरी हिस्सों को आवश्यक पोषक तत्व नहीं मिलता है। परिणामस्वरूप पौधों के विकास में बाधा आती है। प्रकोप बढ़ने पर पौधे सूखने लगते हैं। दीमक से बचने के लिए सही समय पर सिंचाई करें एवं खरपतवार पर नियंत्रण करें। दीमक से निजात पाने के लिए प्रति लीटर पानी में 0.5 मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रिड 200 एसएल मिलाकर पौधों की जड़ों में छिड़काव करें।
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माहू : इस कीट का प्रयोग फरवरी - मार्च महीने में अधिक होता है। यह कीट पौधों के कोमल हिस्सों का रस चूस कर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। समय रहते यदि इस कीट पर नियंत्रण नहीं किया तो पौधों का विकास रुक सकता है। माहू पर नियंत्रण के लिए 150 लीटर पानी में 50 मिलीलीटर देहात हॉक मिला कर छिड़काव करें। ध्यान रहे दवा की मात्रा प्रति एकड़ भूमि के अनुसार दी गई है।
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