मीठा विष कहा जाने वाले इस पौधे में है कई औषधीय गुणों का खजाना

वत्सनाभ विश्व में पाए जाने वाले सबसे जहरीले पौधों में से एक है। यह पौधा इतना विषैला होता है कि इसको केवल सूंघने मात्र से व्यक्ति बेहोश हो जाता है और यदि शोधित किए बिना ही इसका सेवन कर लिया जाए तो व्यक्ति की मृत्यु तक हो सकती है। अब यहां पर सोचने वाली बात यह है कि यदि यह पौधा इतने ही खतरनाक विष से भरा हुआ है, तो इसे औषधीय पौधों में आखिर क्यों गिना जाता है।
वत्सनाभ विष के साथ कई औषधीय गुणों का मिश्रण भी है बस आवश्यक है इसका आवश्यकता के अनुसार और किसी जानकार व्यक्ति की देखरेख में सेवन करना। भारत में यह औषधी उत्तरी पश्चिमी हिमालय क्षेत्रों में पाई जाती है। वत्सनाभ के पौधे 3 से 6 इंच तक लंबे हो सकते हैं इसके अलावा हिमालय क्षेत्रों में इस पौधे की आप 26 से अधिक प्रजातियां देख सकते हैं। इनमें से कुछ प्रजातियां विष रहित भी होती हैं।
वत्सनाभ की पहचान
वस्तनाभ सामान्यतः हिमालय की ऊंची चोटियों पर देखने को ही मिलता है। यह एक एक झाड़ीनुमा पौधा होता है और प्रजातियों के अनुसार 2 से 7 फुट तक लंबे हो सकता है। इसके अलावा विभिन्न प्रजाति के अनुसार फूलों का रंग भी नीले से पीले एवं गुलाबी रंग में पाया जा सकता है। वत्सनाभ की सबसे बड़ी पहचान यह है कि इसकी जड़ की आकृति बछड़े की नाभि के समान दिखाई देती एवं इसके आसपास कोई वृक्ष नहीं उगता है।
वत्सनाभ के औषधीय गुण
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वत्सनाभ का सेवन शरीर में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मददगार होता है।
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वत्सनाभ ज्वर रोधक की तरह भी कार्य करता है।
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शुगर लेवल कंट्रोल एवं सिर दर्द जैसी समस्याओं में भी वत्सनाभ का उपयोग कारगर है।
वत्सनाभ की खेती
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वत्सनाभ की खेती के लिए रेतीली एवं अम्लीय मिट्टी की आवश्यकता होती है।
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वत्सनाभ को सामान्य तौर पर समुद्र तल से 3000 से 4000 मीटर की ऊंचाई पर ही उगाया जाना संभव है।
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पौधों को बीज, कंद, तना किसी भी भाग का प्रयोग कर उगाया जा सकता है।
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पौधों में 20 से 30 दिन के अंतराल पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए।
खेत की तैयारी
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सर्दियों में खेत की जुताई कर खेत को समतल किया जाता है।
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बुवाई/रोपाई से 15 दिन पहले खेत में गोबर की खाद डालें।
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सर्दियों में पौधे आने से पहले मल्चिंग की प्रक्रिया को जरूर पूरा कर लें।
बुवाई
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निचले एवं कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बीज की बुवाई फरवरी माह से शुरू कर दी जाती है।
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कटिंग के द्वारा पौधों की रोपाई के लिए मई-जून माह का समय उपयुक्त होता है।
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प्रति एकड़ भूमि के लिए 250 ग्राम बीज मात्रा पर्याप्त होती है।
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बुवाई से पहले बीजों को उपचारित करना एवं धूप में सुखाना आवश्यक होता है।
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बीज बुवाई के लिए दूरी 20 से 30 सेंटीमीटर तक होनी चाहिए।
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