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किसान डॉक्टर
9 Jan
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मक्का के प्रमुख रोग और उनका प्रबंधन

मोटे अनाजों में धान एवं गेहूं के बाद मक्का की खेती प्रमुखता से की जाती है। जलवायु विविधता के कारण हमारे देश में सभी मौसम में मक्का की खेती की जाती है। बात करें इसमें होने वाले रोगों की तो खरीफ मौसम की तुलना में रबी मौसम में रोगों का प्रकोप कम होता है। रबी मौसम में मक्के की फसल को कवक एवं जीवाणु जनित रोगों का खतरा अधिक होता है।

मक्का के प्रमुख रोग और उनका प्रबंधन

झुलसा रोग: पत्तियों पर इस रोग के प्रारंभिक लक्षण रोपोई या बुवाई के 20 से 25 दिनों बाद नजर आते हैं। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियाों एवं तने पर भूरे रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। शुरुआत में पौधों की निचली पत्तियां सूखने लगती हैं। रोग बढ़ने के साथ ऊपर की पत्तियां भी सूखने लगती हैं। कुछ समय बाद पौधे सूख कर नष्ट हो जाते हैं।

नियंत्रण:

  • इस रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 23% एससी (अदामा- मिराडोर) का छिड़काव करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 300 ग्राम कार्बेन्डाजिम 50% डबल्यूपी (धानुका- धानुस्टिन, डाउ- बेंगार्ड, हाईफील्ड- कार्बोस्टिन, क्रिस्टल- बाविस्टिन) का प्रयोग करें।

मेडिस लीफ ब्लाइट: पत्तियों की शिराओं के बीच में पीले-भूरे अंडाकर धब्बे उभरने लगते हैं। बाद में ये धब्बे लंबे होकर चैकोर हो जाते हैं । प्रभावित पत्तियां जली हुई नजर आती हैं।

नियंत्रण:

  • इस रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 600-800 ग्राम मैंकोजेब 75% डब्ल्यू.पी. (देहात DeM-45, धानुका एम-45, इंडोफिल एम- 45) का प्रयोग करें।

जीवाणु तना गलन रोग: यह रोग इर्विनिया क्राईसेथिमि नामक जीवाणु के कारण होता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की ऊपर की पत्तियां मुरझाने लगती हैं। तने के नीचे की पोरियां नरम एवं बदरंग हो जाती हैं। तना गलने/सड़ने लगता है। तने से गलने की बदबू आने लगती है। कुछ दिनों बाद पूरा पौधा नष्ट हो जाता है।

नियंत्रण:

  • प्रति एकड़ खेत में 450 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (क्रिस्टल- ब्लू कॉपर, बीएसीएफ- बीकॉपर, टाटा- ब्लिटॉक्स, धानुका- धानुकोप 50% डब्ल्यूपी) का ड्रेंचिंग करें।

भूरा धारीदार मृदुरोमिल आसिता रोग: यह एक फफूंद जनित रोग है। इस रोग के लगने से पौधों की पत्तियों पर हल्के हरे या पीले रंग को धारियां उभरने लगती हैं। ये धारियां 3 से 7 मिलीमीटर चौड़ी होती हैं, जो रोग बढ़ने के साथ गहरे लाल रंग में परिवर्तित हो जाती हैं। इस रोग के कारण पैदावार में कम आती है।

नियंत्रण:

  • इस रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात- सीनपैक्ट, बीएसीएफ-एड्रोन, गोदरेज- बिलियर्ड्स) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 300 ग्राम मेटालैक्सिल 8% + मैनकोजेब 64% डब्ल्यूपी (सिंजेंटा- रिडोमिल गोल्ड) का प्रयोग करें।

क्या आपके मक्के की फसल में भी हो रहा है इन रोगों का प्रकोप? आपने मक्के की फसल में रोगों पर नियंत्रण के लिए किन दवाओं का प्रयोग किया है? अपने जवाब हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। फसलों को विभिन्न रोगों एवं कीटोन्स बचाने की अधिक जानकारी के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को तुरंत फॉलो करें। यह जानकारी महत्वपूर्ण लगी हो तो इस पोस्ट को लाइक एवं शेयर करना न भूलें।

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