मटर पर उभर रहे नारंगी भूरे फफोलों से समय रहते बरतें सावधानी

सर्दियों में तेजी से बदलता मौसम और कोहरा पौधों पर लगातार नमी बने रहने का एक बड़ा कारण है। ऐसे में मटर की फसल में फफूंद जनित रतुआ रोग का गंभीर संक्रमण फसल में तेज़ी से फ़ैल सकता है। इसे नजरअंदाज किए जाने या समय पर नियंत्रण न किए जाने से फसल में भारी नुकसान को न्योता दे सकते हैं। रतुआ रोग फफूंद जनित रोग है और भारत में विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के उत्तर-पश्चिम भाग में अधिक देखने को मिलता है। मटर के अलावा यह रोग अन्य दलहनी फसलों जैसे मसूर, चना एवं चौड़ी फलियों वाली फसलों को भी संक्रमित करता है।
रोग के लक्षण
रोग के कारण तनों में गंभीर विकृति देखा जा सकता है और आमतौर पर संक्रमित पौधों की मृत्यु का कारण बनता है। रोग के लक्षण आमतौर पर फरवरी के महीने में कई नारंगी रंग के फोड़े के रूप में पौधे के तनों व पत्तों पर दिखाई देते हैं जिसके किनारों पर पीलापन देखने को मिलता है। समय के साथ धब्बे नारंगी से भूरे और भूरे से काले हो जाते हैं और पौधों के अन्य भागों जैसे तनों, डंठलों और यहां तक कि फलियों तक में भी फैल जाते हैं। इसके अलावा पौधों में बौनापन होना भी फसल में रतुआ रोग के लक्षण की पहचान है।
रोग से रोकथाम
-
फसल चक्रीकरण और रोगग्रस्त पौधों के अवशेषों को नष्ट करने जैसी सांस्कृतिक प्रथाएं रोग पर नियंत्रण दे सकती हैं।
-
संक्रमण के रोकथाम के लिए 800 ग्राम डाईथेन एम 45 कवकनाशी, 400 लीटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ की दर से इस्तेमाल करे |
-
रोग के लक्षण दिखने पर प्रति एकड़ 300 लीटर पानी के साथ सल्फर 80% डब्ल्यू पी की 1.25 किलोग्राम मात्रा का छिड़काव भी फसल में रोग के संक्रमण को कम करने में मदद करता है।
यह भी पढ़ें:
इस पोस्ट में बताई गई दवाएं रतुआ रोग पर नियंत्रण के लिए कारगर साबित होंगी। यदि आपको यह जानकारी पसंद आई है तो इस पोस्ट को लाइक करें एवं इसे अन्य किसान मित्रों के साथ साझा भी करें। जिससे अधिक से अधिक किसान इसका लाभ उठा सकें। फसल से जुड़े अपने सवाल बेझिझक कमेंट के माध्यम से पूछें। आप हमारे टोल फ्री नंबर 1800 1036 110 पर सीधा संपर्क कर कृषि विशेषज्ञों से मुफ्त सलाह भी प्राप्त कर सकते हैं।
जारी रखने के लिए कृपया लॉगिन करें

फसल चिकित्सक से मुफ़्त सलाह पाएँ
