मूंगफली : टिक्का रोग से नष्ट न हो जाए फसल, जानें नियंत्रण के सटीक उपाय

टिक्का रोग को पर्ण चित्ती रोग के नाम से भी जाना जाता है। यह एक फफूंद जनित रोग है। छोटे पौधों में इस रोग के होने की संभावना अधिक होती है। तेजी से फैलने के कारण इस रोग से मूंगफली की फसल भारी क्षति पहुंचती है। सही समय इस रोग पर नियंत्रण नहीं करने पर पैदावार में 10 से 50 प्रतिशत तक कमी आ सकती है। अगर आप भी कर रहे हैं मूंगफली की खेती तो फसल को इस रोग से बचाने के लिए इस रोग पर नियंत्रण के तरीकों की जानकारी होना आवश्यक है। आइए मूंगफली की फसल में लगने वाले घातक टिक्का रोग से होने वाले नुकसान एवं नियंत्रण की जानकारी पर विस्तार से चर्चा करें।
टिक्का रोग के लक्षण
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इस रोग के लक्षण सबसे पहले पौधों की पत्तियों पर नजर आते हैं।
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रोग से प्रभावित पत्तियों पर छोटे-छोटे धब्बे बनने लगते हैं।
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यह धब्बे आकार में गोल एवं गहरे कत्थई रंग के होते हैं।
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धब्बों के किनारे पीले रंग की धारियां बनी होती हैं।
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रोग बढ़ने पर पत्तियां पीली होकर झड़ने लगती हैं।
टिक्का रोग पर नियंत्रण के तरीके
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बुवाई के लिए रोग रहित स्वस्थ बीजों का चयन करें।
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इस रोग से बचने के लिए फसल चक्र अपनाएं।
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खेत में खरपतवार को नियंत्रित रखें।
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बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम थीरम 75 प्रतिशत या मैंकोज़ेब 75 प्रतिशत से उपचारित करें।
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जब पत्ते गीलें हो तो खेत में कार्य करने से बचें। रोग से संक्रमित पौधों को खेत से बाहर निकाल कर नष्ट कर दें।
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बुवाई के 40 दिन बाद 15 दिन के अंतराल पर 200 लीटर पानी में 500 ग्राम कार्बेन्डाज़िम 50 प्रतिशत (बाविस्टीन) मिलाकर 2 से 3 बार छिड़काव करें।
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रोग के लक्षण नजर आने पर प्रति एकड़ खेत में 250 लीटर पानी में 800 ग्राम मैंकोज़ेब 75 प्रतिशत (डाइथेन एम 45) या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (ब्लू- कॉपर / ब्लीटोक्स ) 700 ग्राम 250 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
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आवश्यकता होने पर 15 दिनों के अंतराल पर 2 से 3 बार छिड़काव कर सकते हैं।
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मूंगफली की फसल में लगने वाले कीटों पर नियंत्रण की जानकारी यहां से प्राप्त करें।
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