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12 Aug
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मूली की उन्नत खेती | Radish Cultivation

मूली एक महत्वपूर्ण सब्जी है जो भारतीय रसोईघरों में आमतौर पर खाई जाती है। इसका उपयोग सलाद, परांठे, सब्जी, और अन्य विभिन्न पकवानों में किया जाता है। पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटका, पंजाब, असम में इसे व्यापक रूप से उगाया जाता है। जड़ वाली सब्जियों में मूली की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। मूली की खेती किसानों के लिए एक अच्छा आर्थिक विकल्प है, क्योंकि इसकी खेती कम लागत और मेहनत से की जा सकती है। अगर आप भी करना चाहते हैं मूली की खेती तो इससे जुड़ी अधिक जानकारियों के लिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।

मूली की खेती कैसे करें? | How to cultivate Radish?

  • मूली की खेती के लिए उपयुक्त समय: पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी बुवाई मार्च से अगस्त महीने में की जाती है। मैदानी क्षेत्रों में इसकी खेती अगस्त-सितंबर महीने में की जाती है। इसके अलावा मैदानी क्षेत्रों में जनवरी-फरवरी महीने में भी इसकी बुवाई की जा सकती है।
  • उपयुक्त जलवायु: मूली की उच्च गुणवत्ता की फसल प्राप्त करने के लिए ठंडे जलवायु की आवश्यकता होती है। 10-15 डिग्री सेल्सियस तापमान पौधों एवं जड़ों के विकास के लिए उपयुक्त है। इसके पौधे कम से कम 4 डिग्री और अधिक से अधिक 25 डिग्री सेल्सियस तापमान सहन कर सकते हैं। यदि तापमान इससे अधिक हो जाता है, तो मूली की जड़ें कठोर और कड़वी हो सकती हैं। उच्च तापमान पर मूली की वृद्धि में बाधा आ सकती है और फसल में फूल भी आ सकते हैं, जिससे जड़ का विकास रुक जाता है।
  • उपयुक्त मिट्टी: मूली की खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। इसके अलावा रेतीली दोमट मिट्टी में भी अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है। मिट्टी का पी.एच स्तर 5.5 से 6.8 होना चाहिए। मिट्टी में जैविक पदार्थों की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए, जिससे पौधों को पोषण मिलता रहे। जलभराव वाली भूमि में मूली की खेती नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इससे जड़ों के सड़ने की समस्या हो सकती है।
  • बीज की मात्रा: बीज की मात्रा किस्मों के अनुसार भिन्न हो सकती है। सामान्य तौर पर प्रति एकड़ खेत में मूली की खेती करने के लिए 2 से 4 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। यदि बीज पहले उपचारित नहीं है तो बुवाई से पहले बीज का उपचार करना जरूरी है। इससे फसल को विभिन्न रोगों एवं कीटों से बचाया जा सकता है।
  • विभिन्न किस्में: मूली की पैदावार इसकी किस्मों पर भी निर्भर करती है। इसलिए अपने क्षेत्र की भूमि और जलवायु के अनुसार उपयुक्त किस्मों का चयन करें। मूली की बुवाई के लिए कुछ बेहतरीन किस्मों में ‘देहात डीएस चेतकी लॉन्ग’, ‘देहात डीएस हिल क्वीन’, ‘देहात डीएस मीनो अर्ली’ और ‘देहात डीएस पालक पत्ता’ शामिल हैं। बेहतर पैदावार के लिए आप इनमें से किसी भी किस्म का चयन कर सकते हैं।
  • खेत तैयार करने की विधि: मूली एक जड़ वाली फसल है। जड़ों के बेहतर विकास के लिए मिटटी का भुरभुरा होना आवश्यक है। मिट्टी को भुरभुरी बनाने के लिए सबसे पहले मिट्टी पलटने वाली हल से 1 बार गहरी जुताई करें। इसके बाद खेत में 3 से 4 बार हल्की जुताई करें। हल्की जुताई के लिए देशी हल या कल्टीवेटर का इस्तेमाल कर सकते हैं। बेहतर पैदावार के लिए आखिरी जुताई के समय प्रति एकड़ खेत में 80 से 100 क्विंटल अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाएं। इसके अलावा प्रति एकड़ खेत में 5 से 10 टन रूड़ी की खाद मिलाएं। बीज की बुवाई के समय प्रति एकड़ खेत में 30.5 किलोग्राम यूरिया या 22 किलोग्राम डीएपी और 16 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश मिलाएं। खेत की जुताई के बाद बीज की रोपाई के लिए खेत में 18 इंच की दूरी पर क्यारियां तैयार करें।
  • बुवाई की विधि: खेत में करीब 18 इंच की दूरी पर तैयार की गई क्यारियों में बीज की बुवाई करें। बीज की बुवाई करीब 3 से 4 इंच की दूरी पर करें। बीज की गहराई करीब 1 इंच होनी चाहिए।
  • सिंचाई प्रबंधन: बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए। इससे बीज को नमी मिलती है और उनका अंकुरण जल्दी होता है। मूली की फसल में नमी की निरंतर आवश्यकता होती है। ठंड के मौसम में 7-10 दिनों के अंतराल पर नियमित सिंचाई करें। गर्मी के मौसम में सिंचाई की आवृत्ति बढ़ानी पड़ सकती है। खेत में जलभराव नहीं होने देना चाहिए। इससे मूली की जड़ों का सड़ने का खतरा बना रहता है।
  • खरपतवार नियंत्रण: खरपतवारों की अधिकता से फसल की गुणवत्ता और उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।  बुवाई के 2-3 सप्ताह बाद पहली निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। इसके बाद आवश्यकता के अनुसार निराई-गुड़ाई करते रहें। प्लास्टिक मल्च या जैविक मल्च का उपयोग करके खरपतवार की वृद्धि को नियंत्रित किया जा सकता है। इससे न केवल खरपतवार कम होंगे, बल्कि मिट्टी की नमी भी बनी रहेगी। यदि आवश्यक हो तो रासायनिक खरपतवार नाशकों का उपयोग किया जा सकता है। इनका उपयोग विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार ही करना चाहिए।
  • रोग एवं कीट प्रबंधन: मूली की फसल पत्ती धब्बा रोग, जड़ सड़न रोग, लाही, सफेद मक्खी, कटवर्म, जैसे रोग एवं कीटों के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं। फसल को इन रोगों और कीटों के प्रकोप से बचाने के लिए फसल की नियमित निगरानी करें और किसी भी रोग या कीट के प्रकोप का लक्षण नजर आने पर कृषि विशेषज्ञों की परामर्श के अनुसार  रासायनिक कीटनाशक एवं फफूंदनाशक दवाओं का प्रयोग करें।
  • फलों की तुड़ाई और भंडारण: मूली की कटाई उसके प्रकार और खेती के समय पर निर्भर करती है। आमतौर पर बुवाई के 35 से 40 दिनों बाद फलों की पहली तुड़ाई की जा सकती है। कुछ किस्मों को तैयार होने में 60 दिनों का भी समय लग सकता है। तुड़ाई के बाद फलों को साफ पानी से धोकर उसे ठंडे स्थान पर रखना चाहिए। जिससे फलों में लंबे समय तक ताजगी बनी रहे।
  • उत्पादन: मूली की कटाई उसके प्रकार और खेती के समय पर निर्भर करती है।मूली की उपज विभिन्न किस्मों पर निर्भर करती है। सामान्यतौर पर प्रति एकड़ खेत से 3,200 से 8,000 किलोग्राम तक उपज प्राप्त किया जा सकता है।

आप मूली की किस किस्म की खेती करते हैं और इससे आपको कितनी उपज प्राप्त होती है? अपने जवाब हमें कमेंट के द्वारा बताएं। कृषि संबंधी अधिक जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक एवं कमेंट करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: मूली बोने का सही समय कौन सा है?

A: भारत में, मूली लगाने का सबसे अच्छा समय सर्दियों के मौसम के दौरान अक्टूबर से फरवरी तक होता है। मूली ठंडे मौसम में अच्छी तरह से बढ़ती है और बेहतर विकास के लिए 10-25 डिग्री सेल्सियस के तापमान की आवश्यकता होती है।

Q: मूली को कितना पानी चाहिए?

A: मूली के पौधों को लगातार मिट्टी की नमी के स्तर को बनाए रखने के लिए नियमित रूप से पानी देने की आवश्यकता होती है। आवश्यक पानी की मात्रा मिट्टी के प्रकार, तापमान, आर्द्रता और वर्षा जैसे विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है। सामान्य तौर पर ठंड के मौसम में 7-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जाती है।

Q: मूली का बीज कितने दिन में अंकुरित होता है?

A: मूली के बीज आमतौर पर बुवाई के बाद 3-7 दिनों के भीतर अंकुरित हो जाते हैं, जो मिट्टी के तापमान और नमी के स्तर पर निर्भर करता है। मूली के बीज के अंकुरण के लिए आदर्श तापमान सीमा 15-25 डिग्री सेल्सियस के बीच है। मिट्टी की तैयारी और पर्याप्त नमी होना मूली के पौधों की अच्छी अंकुरण दर और स्वस्थ विकास सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है।

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