पान की खेती
पान के पत्तों का उपयोग खाने के साथ पूजा-पाठ में भी किया जाता है। पान में कई औषधीय गुण भी पाए जाते हैं। पान में विटामिन ए ,बी,सी के साथ पौटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस, कॉपर और जिंक भी पाए जाते हैं। हमारे देश में पान की खेती लगभग 50,000 हेक्टेयर में की जाती है।
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पान की खेती लगभग हर प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है।
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इसकी खेती के लिए उच्च कार्बनिक स्तर से भरपूर जीवांश युक्त बलुई दोमट या बलुई मटियार मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है।
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मिट्टी का पी.एच स्तर 5.6 से 8.2 के बीच रहना चाहिए।
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बरेजा बनाने के लिए बांस काट लें। जिससे मजबूत बरेजा बनाने में आसानी होती है।
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खेत में प्रति एक मीटर की दूरी पर लम्बे बांस लगाएं और इसके ऊपर बांस का एक छप्पर तैयार कर के मजबूती से बांधें।
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छप्पर के ऊपर पुवाल या फिर सुखी घास डालें। इससे तेज धूप और अधिक ठंड से पौधों का बचाव होता है। इसके साथ ही वर्षा का पानी भी छन कर गिरता है।
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पान के पौधों की रोपाई का उपयुक्त समय मध्य फरवरी- मार्च तथा जून- जुलाई रहता है ।
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पान के पौधों को सिंचाई की अधिक आवश्यकता होती है।
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रोपाई के 10 दिनों तक प्रति दिन हल्की सिंचाई करें।
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गर्मियों में 5-7 दिनों के अंतराल पर और ठंड में 10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
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आमतौर पर वर्षा के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। फिर भी अगर आवश्यकता लगे तो वर्षा के मौसम में भी हल्की सिंचाई कर सकते हैं।
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रोपाई के करीब 20 से 30 दिनों बाद बांस की पतली छड़ी लगा कर पान के बेलों को सहारा दें।
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प्रति वर्ष एक पौधे से 60 से 70 पत्ते प्राप्त किए जा सकते हैं।
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पान की पत्तियों की तुड़ाई करते समय डंठल भी साथ तोड़ें। इससे पान के पत्ते जल्दी खराब नहीं होंगे।
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तुड़ाई के बाद करीब 10 से 15 दिनों तक पान के पत्तों का उपयोग किया जा सकता है।
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