पोस्ट विवरण
सुने
रोग
धान
किसान डॉक्टर
1 July
Follow

धान की खेती: प्रमुख रोग, लक्षण, बचाव एवं नियंत्रण | Paddy cultivation: Major Diseases, Symptoms, Prevention and Control

धान की फसल में नर्सरी तैयार करने से ले कर फसल की कटाई तक कई तरह के रोगों का प्रकोप होता है। ये रोग धान के पौधों को कई तरह से क्षति पहुंचाते हैं। जिससे धान की गुणवत्ता कम होने लगती है और फसल के उत्पादन में भी कमी आती है। अब सवाल यह उठता है कि धान में कितने प्रकार के रोग होते हैं? कृषि विशेषज्ञों के अनुसार धान की फसल को बुरी तरह प्रभावित करने वाले रोगों में झुलसा रोग, बकानी रोग, तना गलन रोग, जड़ गलन रोग, खैरा रोग, कंडुआ रोग, टुंग्रो रोग, शीथ ब्लाइट रोग, शामिल है।

धान की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग | Major diseases affecting the Paddy crop

खैरा रोग से होने वाले नुकसान: अक्सर किसान यह सवाल करते हैं कि धान में खैरा रोग किसकी कमी से होता है? धान में खैरा रोग मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्व जिंक की कमी के कारण होता है। इस रोग की विशेषता धान के पौधे की पत्तियों पर पीले-सफेद धब्बे दिखाई देते हैं, जो बाद में भूरे रंग के हो जाते हैं और पत्तियों के मुरझाने और मरने का कारण बनते हैं। कार्बनिक पदार्थों की कमी वाली एवं खराब जल निकासी वाली क्षारीय मिट्टी में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है।

खैरा रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • खेत में उचित जल निकासी की व्यवस्था करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 5 किलोग्राम ज़िंक सल्फेट (देहात न्यूट्रीवन ज़िंक सल्फेट मोनोहाइड्रेट) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 1 किलोग्राम बुझा हुआ चूना मिलाएं।

कंडुआ रोग से होने वाले नुकसान: उमस भरा मौसम और पौधों में फूल आने की अवस्था के दौरान हो रही बारिश धान की फसल में कंडुआ रोग के संक्रमण को बढ़ावा देते हैं। सितम्बर से अक्टूबर के महीने में यह रोग अपनी चरम सीमा पर होता है और पौधों में बालियां बनने के समय फसल को संक्रमित करना शुरू कर देता है। इस रोग के लक्षण सबसे पहले धान की बालियों पर नजर आते हैं। इस रोग की शुरुआत में बालियों पर हल्के पीले-नारंगी रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। धीरे-धीरे ये धब्बे काले रंग में परिवर्तित होने लगते हैं। प्रकोप बढ़ने पर यह रोग धान के दाने को पूरी तरह से काले रंग के बीजाणुओं की एक परत से ढक देता है। जिससे बालियों में भरे दाने खोखले होने लगते हैं। इस रोग के कारण फसल की गुणवत्ता के साथ उपज भी बुरी तरह प्रभावित होती है।

कंडुआ रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • खेत में नियमित रूप से निराई-गुड़ाई करें।
  • धान की अगेती बुवाई करने से भी फसल में कंडुआ रोग के प्रकोप से बचाया जा सकता है।
  • धान की बुवाई के लिए रोग मुक्त बीजों का उपयोग करें।
  • यदि बीज पहले से उपचारित नहीं है तो प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें।
  • फसल में रोग का संक्रमण बढ़ने पर प्रति एकड़ खेत में 400 मिलीलीटर पिकोक्सिस्त्रोबिन 7.05% के साथ प्रोपिकोनाज़ोल 11.7 % एससी का प्रयोग करें।

टुंग्रो रोग से होने वाले नुकसान: यह एक वायरस जनित रोग है जो दो प्रकार के वायरस के संयोजन के कारण होता है। फुदका कीट इस वायरस को अन्य पौधों में फैलाने का काम करते हैं। पौधों के विकास की किसी भी अवस्था में इस रोग का प्रकोप हो सकता है। गंभीर मामलों एवं अतिसंवेदनशील किस्मों की उपज में इस रोग के कारण 100% तक की क्षति भी देखी जा सकती है। इस रोग से प्रभावित पौधों का विकास अवरुद्ध हो जाता है, जिससे पौधों की लम्बाई कम हो जाती है। पत्तियां पीली होने लगती हैं और नई पत्तियों की शिराओं पर सफेद से हल्की पीली धारियां या धब्बे उभरने लगते हैं। प्रभावित पौधों की पुरानी पत्तियों पर जंग के समान धारियां बनने लगती हैं। संक्रमित पत्तियां पेंसिल की तरह यानी सामान्य पत्तियों से अधिक पतली एवं नुकीली दिखने लगती हैं। पौधों में बालियां देर से आती हैं। पौधों में कल्ले निकलने की अवस्था में यह रोग अपने चरम पर होता है।

टुंग्रो रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • टुंग्रो रोग को फैलाने वाले फुदका कीट पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 10 किलोग्राम फिप्रोनिल 0.3 जीआर (देहात स्लेमाइट) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 40 ग्राम थियामेथोक्साम 25% डब्लूजी (देहात एसियर) का प्रयोग करें।

शीथ ब्लाइट रोग से होने वाले नुकसान: शीथ ब्लाइट यानी पर्ण झुलसा रोग एक फफूंदीजनित रोग है। यह धान की फसल में होने वाला एक प्रमुख रोग है। इस रोग के कारण धान की पैदावार में 50 प्रतिशत तक कमी आ सकती है। अगस्त-सितम्बर महीने में इस रोग का प्रकोप अपने चरम पर होता है। इस रोग का संक्रमण नर्सरी से ही नजर आने लगते हैं। प्रभावित पौधे नीचे से सड़ने लगते हैं। मुख्य खेत में इस रोग के लक्षण कल्ले बनने की अंतिम अवस्था में नजर आते हैं। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों की सतह पर अनियमित आकार के धब्बे उभरने लगते हैं। इन धब्बों का किनारा गहरा भूरा एवं बीच का भाग हल्के रंग का होता है। संक्रमित पौधों में बालियां कम निकलती हैं और बालियों में दाने भी नहीं बनते हैं। रोग बढ़ने पर पौधे नष्ट हो जाते हैं।

शीथ ब्लाइट रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • धान की फसल को इस रोग से बचाने के लिए खरपतवार एवं फसल के अवशेषों को बाहर निकालें।
  • संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करें और आवश्यकता से अधिक नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों (यूरिया) के प्रयोग से बचें।
  • बुवाई के लिए रोग रहित बीज का चयन करें।
  • धान के बीज को स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस की 10 ग्राम या ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बुवाई करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिनपैक्ट) मिला कर छिड़काव करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 300 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाजोल 18.3% एस.सी. (देहात एजीटॉप) मिला कर छिड़काव करने से इस रोग पर आसानी से नियंत्रण किया जा सकता है।
  • रोग के लक्षण नजर आने पर प्रति एकड़ खेत में 200-240 लीटर पानी में 400 ग्राम कार्बेन्डाजिम या 200 मिलीलीटर प्रोपिकोनाजोल मिला कर छिड़काव करें।

आप धान के रोग एवं उनसे बचाव के लिए क्या करते हैं? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। खरपतवारों पर नियंत्रण की अधिक जानकारी के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: धान में प्रमुख रोग कौन सा है?

A: धान की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख रोगों में झुलसा रोग, बकानी रोग, तना गलन रोग, जड़ गलन रोग, खैरा रोग, कंडुआ रोग, टुंग्रो रोग, शीथ ब्लाइट रोग, शामिल है।

Q: धान में खैरा रोग क्यों होता है?

A: धान की फसल में  जिंक की कमी होना खैरा रोग होने का मुख्य कारण है।

Q: धान में झुलसा रोग क्यों लगता है?

A: धान में झुलसा रोग फफूंदों के प्रकोप के कारण होता है। यह धान की फसल में होने वाला एक प्रमुख रोग है, जो धान की उपज को 50 प्रतिशत तक कम कर सकता है।

54 Likes
Like
Comment
Share
फसल चिकित्सक से मुफ़्त सलाह पाएँ

फसल चिकित्सक से मुफ़्त सलाह पाएँ