पपीता: रोग, लक्षण, बचाव एवं नियंत्रण | Papaya: Disease, Symptoms, Prevention and Control
आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, तमिलनाडु, असम, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू एवं कश्मीर में पपीता की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। अन्य फसलों की तरह पपीता की फसल में भी कई तरह के रोगों का प्रकोप होता है। पौधों को इन रोगों की चपेट में आने से बचाने के लिए इन रोगों की पहचान एवं इन पर नियंत्रण की जानकारी होना आवश्यक है। अगर आप कर रहे हैं पपीता की खेती तो पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोगों की जानकारी के लिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।
पपीता के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग | Some major diseases of papaya plants
आर्द्र गलन रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग को डम्पिंग फॉफ डिजीज के नाम से भी जानते हैं। खेत में जल जमाव की समस्या होने पर इस रोग की संभावना बढ़ जाती है। छोटे पौधे इस रोग से जल्दी प्रभावित होते हैं। इसलिए पपीता की नर्सरी में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है। इस रोग से प्रभावित पौधों के तने काले होने लगते हैं। कुछ समय बाद जमीन की सतह से सटे तने गलने लगते हैं। रोग बढ़ने पर पौधे मुरझा कर गिर जाते हैं। पौधों को उंखाड़ कर देखने पर जड़ें भी गली हुई नजर आती हैं।
आर्द्र गलन रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- पपीता के पौधों को इस रोग से बचाने के लिए खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
- बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम 50% डब्लूपी (हाईफील्ड कार्बोस्टिन, डाउ बेंगार्ड) से उपचारित करें।
- प्रति एकड़ खेत में 200-300 ग्राम कार्बेन्डाजिम 50% डब्लूपी (क्रिस्टल बाविस्टिन, धानुका धानुस्टिन, हाईफील्ड कार्बोस्टिन) का प्रयोग करें।
रिंग स्पॉट विषाणु रोग से होने वाले नुकसान: यह एक विषाणु जनित रोग है जो विभिन्न कीट एवं पक्षियों के द्वारा फैलता है। वर्षा के मौसम में इस रोग का प्रकोप अपने चरम पर होता है। इस रोग के होने पर प्रभावित पौधों की पत्तियों पर धब्बे उभरने लगते हैं। प्रभावित पत्तियां आकार में छोटी और कटी-फटी से दिखने लगती हैं। कुछ समय बाद पत्तियों पर गहरे हरे रंग के फफोले उभरने लगते हैं और पत्तियां नीचे की तरफ मुड़ने लगती हैं। धीरे-धीरे ये धब्बे फैलते हुए तने पर भी उभरने लगते हैं। जिससे रोग से ग्रसित पौधों के तने पर गहरे हरे रंग के धब्बे और लंबी धारियां बनने लगते हैं। पौधों में फल आने पर फलों पर भी ये धब्बे देखे जा सकते हैं। फलों के पकने के समय यह धब्बे भूरे रंग में बदल जाते हैं। इस रोग के कारण पौधों के विकास में बाधा आती है। सफेद मक्खी एवं माहु इस रोग को अन्य पौधों में तेजी से फैला सकते हैं।
रिंग स्पॉट विषाणु रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- इस रोग के प्रति सहनशील किस्मों का चयन करें।
- रोग से बुरी तरह प्रभावित पौधों को नष्ट कर दें।
- प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर इंडोक्साकार्ब 14.5% + एसिटामिप्रिड 7.7% एससी (घरदा केमिकल्स लिमिटेड काइट) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्बडासीहैलोथ्रिन 9.5% जेड सी (देहात एन्टोकिल, सिंजेंटा अलिका) की 80-100 मिलीलीटर मात्रा को 200 लीटर पानी में मिला कर प्रयोग करें।
मोजैक वायरस रोग से होने वाले नुकसान: पपीता के पौधों में होने वाले इस रोग को वलय चित्ती विषाणु रोग के नाम से भी जाना जाता है। किसी भी अवस्था की फसल इस रोग से प्रभावित हो सकती है। पौधों की नई पत्तियों पर इस रोग के लक्षण सबसे पहले नजर आते हैं। इस रोग से प्रभावित पत्तियां मुड़ने और सिकुड़ने लगती हैं। पत्तियां हरे-पीले रंग में चितकबरी होने लगती हैं। कभी-कभी पत्तियों पर गहरे हरे रंग के फफोले भी देखे जा सकते हैं। रोग बढ़ने पर पौधों का विकास प्रभावित हो सकता है। सफेद मक्खियां इस रोग को फैलाने का काम करती हैं।
मोजैक वायरस रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- बुवाई के लिए रोग रहित एवं उपचारित बीज का ही प्रयोग करें।
- रोग की प्रारंभिक अवस्था में प्रति लीटर पानी में 2 से 3 मिलीलीटर नीम का तेल मिलाकर छिड़काव करें।
- इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस एल (कॉन्फिडोर) 100 मिली प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 100 मिलीलीटर फ्लूबेंडामाइड 19.92% + थायक्लोप्रीड 19.92% (बेल्ट एक्स्पर्ट बायर) का प्रयोग करें।
- सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए फेनप्रोपॅथ्रीन 30 ईसी (सुमितोमो मेओथ्रिन) की 100 मिलीलीटर मात्रा को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
आपके पपीता के पौधों में किस रोग का प्रकोप अधिक होता है और इन पर नियंत्रण के लिए आप किन दवाओं का प्रयोग करते हैं? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। फसलों को घातक रोगों और कीटों से बचाने की अधिक जानकारियों के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक एवं कमेंट करना न भूलें।
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