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फसलों के लिए घातक जड़ ग्रंथि सूत्रकृमि, जानें नियंत्रण के तरीके
फसलों के लिए घातक जड़ ग्रंथि सूत्रकृमि, जानें नियंत्रण के तरीके
जड़ ग्रंथि सूत्रकृमि को जड़ गांठ सूत्रकृमि, मूल ग्रंथि या निमेटोड के नाम से भी जाना जाता है। यह कीट धागे की तरह पतले होते हैं। इस कीट को खुली आंखों से देख पाना बहुत कठीन है। इस कीट का सबसे अधिक प्रकोप सब्जियों वाली फसलों में होता है। इसके अलावा फल, तिलहन, दलहन, धान, रेशे वाली फसलें, औषधीय पौधे और सजावटी पौधों में भी इसका प्रकोप होता है। आइए फसलों के लिए घातक जड़ ग्रंथि सूत्रकृमि के प्रकोप का लक्षण एवं नियंत्रण के तरीकों पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।
जड़ ग्रंथि सूत्रकृमि के प्रकोप का लक्षण
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इस कीट का प्रकोप होने पर पौधों के ऊपरी भाग की पत्तियां पीली हो कर मुरझाने लगती हैं।
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प्रभावित पौधों में फूल एवं फल कम आते हैं।
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प्रभावित पौधों की जड़ों में गांठे बन जाती हैं। इन गांठो पर छोटी-छोटी कई जड़ें निकलने लगती हैं।
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पौधों की जड़ें मिट्टी से उचित मात्रा में पोषक तत्व ग्रहण नहीं कर पाती हैं।
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जिससे पौधों के विकास में बाधा आती है।
जड़ ग्रंथि सूत्रकृमि पर नियंत्रण के तरीके
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गर्मी के मौसम में फसलों की रोपाई से पहले 15 दिनों के अंतराल पर खेत में 2 बार गहरी जुताई करें। इससे तेज धूप के कारण मिट्टी में पहले से मौजूद सूत्रकृमि नष्ट हो जाएंगे।
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सूत्रकृमि से प्रभावित खेत में प्रति एकड़ भूमि में 4 क्विंटल नीम एवं करंज की खली मिलाएं।
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प्रति एकड़ भूमि में करीब 10 किलोग्राम फिप्रोनिल 0.3 प्रतिशत जी डालने से सूत्रकृमि पर नियंत्रण किया जा सकता है।
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इस कीट पर नियंत्रण के लिए खेत तैयार करते समय या बुवाई के 15 से 20 दिनों बाद प्रति एकड़ भूमि में 250 ग्राम रूटगार्ड का प्रयोग करें।
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जैविक विधि से नियंत्रण के लिए खेत में नीम, धतूरा एवं गेंदा की पत्तियों के अर्क का प्रयोग करें। इससे सूत्रकृमि की संख्या में कमी आती है।
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