जीवामृत: फसलों के लिए बेहतरीन उर्वरक

हानिकारक रसायनों के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए बाजार में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ने लगी है। जैविक उत्पादों में जीवामृत का उपयोग करना एक बेहतरीन विकल्प है। यह गाय के गोबर एवं गौमूत्र से तैयार किया जाने वाला एक प्रभावशाली उर्वरक है। आइए इस पोस्ट द्वारा इसके लाभ एवं इसे तैयार करने की विधि की जानकारी प्राप्त करें।
जीवामृत के प्रकार एवं इसे तैयार करने की विधि
जीवामृत मुख्यतः 3 प्रकार के होते हैं।
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तरल जीवामृत: इसे गाय के गोबर एवं गौमूत्र में मिट्टी, गुड़ और बेसन मिला कर तैयार किया जाता है। इसे तैयार करने के लिए एक प्लास्टिक के कंटेनर में 10 लीटर गौमूत्र, ३ किलोग्राम गुड़, 5 किलोग्राम गाय का गोबर और 2 किलोग्राम बेसन मिला कर घोल बनाएं। इस मिश्रण को 7 दिनों तक ढक कर रखें और बीच-बीच में मिलाते रहें। 7 दिनों बाद इस मिश्रण को कीटनाशक एवं उर्वरक के तौर पर इस्तेमाल करें।
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अर्द्ध ठोस जीवामृत: इसे तैयार करने के लिए 50 किलोग्राम गाय के गोबर में 2 लीटर गौमूत्र, आधा किलोग्राम गुड़, आधा किलोग्राम बेसन, थोड़ी से उपजाऊ मिट्टी में थोड़ा पानी मिला कर मिश्रण तैयार करें। इस मिश्रण से छोटे-छोटे गोले बना कर धूप में सूखाएं। इसे आवश्यकता के अनुसार इस्तेमाल करें।
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सूखा जीवामृत: इसे तैयार करने के लिए पानी की आवश्यकता नहीं होती है। इसे बनाने के लिए 50 किलोग्राम गोबर को जमीन पर फैला कर इसमें 5 लीटर तरल जीवामृत मिलाएं। इसके बाद गोबर को इकट्ठा कर के जूट के बोरी से ढकें। दो दिनों बाद इसमें खमीर (फेरमेंटशन) होने लगेगा। अब इसे धूप में फैला कर अच्छी तरह सूखाएं और भंडारित करें। फसलों में आवश्यकता के अनुसार इसे इस्तेमाल करें।
जीवामृत इस्तेमाल करने फायदे
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फसलों में नाइट्रोजन, पोटैशियम फॉस्फोरस की पूर्ति होती है।
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मिट्टी के पी.एच. स्तर में सुधार होता है।
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इसके इस्तेमाल से पौधों की जड़ों को ऑक्सीजन लेने में सहायता मिलती है।
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पौधों में पोषक तत्वों की कमी दूर होती है।
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मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ती है।
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इसके इस्तेमाल से मिट्टी नरम हो जाती है, जिससे जड़ों का बेहतर विकास होता है।
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बीज का अंकुरण एवं पौधों का विकास बेहतर होता है।
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जीवामृत में बंजर भूमि को भी उपजाऊ बनाने की क्षमता है।
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