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कृषि ज्ञान
15 Nov
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मटर में उचित खाद प्रबंधन (Proper fertilizer management in peas)


मटर की फसल को स्वस्थ और उच्च गुणवत्ता वाली पैदावार देने के लिए सही तरीके से उर्वरक का उपयोग करना जरूरी है। नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का संतुलित प्रयोग पौधों के विकास और फलियों के निर्माण में सहायक होता है। नाइट्रोजन से हरे पत्तों का विकास होता है, फास्फोरस से जड़ें मजबूत होती हैं, और पोटाश से पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इसके साथ ही जैविक खाद का उपयोग मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखता है, जिससे फसल को प्राकृतिक पोषक तत्व मिलते हैं। सही खाद प्रबंधन से मटर की फसल में अच्छे परिणाम मिलते हैं।

कैसे करें मटर में उचित उर्वरक प्रबंधन? (How to manage proper fertilizer in peas?)

  • जैविक खाद (Organic Manure): मटर की फसल को मजबूत और स्वस्थ बनाए रखने के लिए प्रति एकड़ 10 टन सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग करें। जैविक खाद से मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ती है और पौधों की जड़ें मजबूत होती हैं, जिससे मटर की फसल में बेहतर वृद्धि होती है।
  • बुवाई के समय उर्वरक प्रबंधन: बुवाई के समय प्रति एकड़ 44 किलोग्राम डीएपी, 5 किलोग्राम यूरिया और 33 किलोग्राम एम.ओ.पी का उपयोग करें। डी.ए.पी से फास्फोरस की पूर्ति होती है, जो जड़ विकास और फूलों की वृद्धि में सहायक है, जबकि यूरिया नाइट्रोजन प्रदान करता है, जो पौधों की पत्तियों और कुल विकास को बढ़ाता है। एम.ओ.पी से पोटेशियम मिलता है, जो पौधों को स्वस्थ और मजबूत बनाए रखने में मदद करता है।
  • बूस्ट मास्टर (boost Master): बूस्ट मास्टर में सी-वीड एक्सट्रेक्ट, एल-अमीनो एसिड, एनपीके और सूक्ष्म पोषक तत्व होते हैं, जो मटर की वानस्पतिक वृद्धि में सहायक हैं। यह फसल में पोषण का बेहतर अवशोषण, हरियाली, और तनाव सहन करने की क्षमता को बढ़ाता है। मटर की फसल पर 2 से 3 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
  • देहात स्टार्टर: मटर की फसल में बेहतर उपज के लिए प्रति एकड़ 4 किलोग्राम ‘देहात स्टार्टर’ का प्रयोग करें। यह पौधों को अतिरिक्त पोषक तत्व देकर शुरुआती बढ़त में मदद करता है, जिससे जड़ें मजबूत होती हैं और पोषक तत्वों का अवशोषण बेहतर होता है।
  • पोटैशियम नाइट्रेट (KNO₃ - 13:00:45): फूल और फल आने के समय इस उर्वरक का 5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। यह फसल को पर्याप्त पोटेशियम और नाइट्रोजन प्रदान करता है, जिससे विकास में सुधार होता है।
  • पोटैशियम सल्फेट (SOP - 00:00:50 + 17.5% S): फल आने के समय SOP का 5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। यह पौधों में पोटैशियम और सल्फर की कमी को पूरा कर उत्पादन बढ़ता है।
  • कैल्शियम नाइट्रेट विद बोरॉन (N-14.5%, Ca 17%, Boron 0.3%): पौधों की वृद्धि और स्वास्थ्य के लिए इसे 5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। इससे फूल और फल गिरने की समस्या कम होती है।
  • बोरॉन (DOT - B-20%): बोरॉन की कमी को दूर करने के लिए 150-200 लीटर पानी में मिलाकर इसका छिड़काव करें। यह मटर के पौधों में बोरॉन की पूर्ति करता है और स्वस्थ वृद्धि में सहायक होता है।

क्या आप मटर की खेती करते हैं? साथ ही आप कौन-कौन से खाद एवं उर्वरकों का उपयोग करते हैं? अपना जवाब और अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। ऐसी ही अन्य जानकारियों के लिए ' कृषि ज्ञान ' चैनल को अभी फॉलो करें। इस जानकारी को अधिक किसानों तक पहुंचाने के लिए इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: 1 एकड़ में कितना मटर बोया जाता है?

A: मटर की बुवाई के लिए एक एकड़ में लगभग 25-30 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीज की मात्रा फसल की किस्म, मिट्टी की गुणवत्ता और क्षेत्र की जलवायु पर निर्भर करती है। बीज का उचित मात्रा में प्रयोग पौधों के विकास और उपज में सहायक होता है। अधिक मात्रा में बीज बोने से पौधों की वृद्धि प्रभावित हो सकती है, इसलिए अनुशंसित मात्रा में ही बीज का उपयोग करें। यदि बुवाई से पहले बीजों का उपचार कर लिया जाए तो यह रोगों और कीटों से बचाव में मदद करता है और पैदावार अच्छी होती है।

Q: मटर बोने का सही समय क्या है?

A: मटर की बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर से दिसंबर का मध्य है। ठंडा मौसम मटर के अंकुरण और विकास के लिए अनुकूल होता है। उत्तर भारत में इसे अक्टूबर से दिसंबर के बीच और दक्षिण भारत में नवंबर से फरवरी के बीच बोया जा सकता है। मटर के अंकुरण के लिए आदर्श तापमान 10-25°C है, और बुवाई के समय मिट्टी में नमी संतुलित होनी चाहिए। मानसून के बाद बुवाई से मिट्टी में पर्याप्त नमी बनी रहती है, जिससे पौधों की अच्छी वृद्धि होती है। सही समय पर बुवाई करने से फसल में रोगों का प्रकोप कम होता है और पैदावार बेहतर होती है।

Q: मटर में कितने दिन में पानी देना चाहिए?

A: मटर की फसल में पानी देने का अंतराल लगभग 7-10 दिन का होता है, जो मौसम और मिट्टी की नमी पर निर्भर करता है। खासकर फूल आने और फली बनने के समय नियमित सिंचाई जरूरी होती है। ठंड के मौसम में मिट्टी में नमी अधिक समय तक बनी रहती है, इसलिए सिंचाई का अंतराल बढ़ाया जा सकता है। खेत में जलभराव से बचने के लिए उचित जल निकासी व्यवस्था बनाए रखें। यदि मौसम गर्म हो तो सिंचाई का अंतराल 3-4 दिन का भी किया जा सकता है ताकि पौधों की बढ़वार अच्छी हो सके।

Q: मटर में कौन सी खाद डालनी चाहिए?

A: मटर की अच्छी पैदावार के लिए संतुलित उर्वरकों का उपयोग आवश्यक है, जिसमें मुख्यतः नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की उचित मात्रा शामिल होनी चाहिए। मटर की बुवाई से पहले मिट्टी की जांच करवाएं ताकि उर्वरकों का सही अनुपात तय किया जा सके। मटर के पौधों को अधिक नाइट्रोजन की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि ये हवा से नाइट्रोजन प्राप्त करने में सक्षम होते हैं। फास्फोरस जड़ों की वृद्धि में सहायक है और पोटाश पौधों को रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है। एक एकड़ मटर की बुवाई के लिए 40-50 किलोग्राम डीएपी, 20 किलोग्राम पोटाश और 10-15 किलोग्राम यूरिया पर्याप्त होती है।

Q: मटर में कौन से कीट एवं रोग लगते हैं?

A: मटर में प्रमुख कीटों में मटर एफिड, कटवर्म, मटर घुन और थ्रिप्स शामिल हैं। ये कीट पौधों की पत्तियों, तनों और फलियों को नुकसान पहुंचाते हैं। रोगों में चूर्णिल आसिता, रस्ट, उकठा (विल्ट), और जड़ सड़न शामिल हैं। इनसे बचाव के लिए समय पर कीटनाशक और फफूंद नाशक का प्रयोग करना जरूरी है।

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