पुदीना परिवार का यह पौधा बढ़ा सकता है आपका कई गुना तक लाभ

पचौली पुदीना जाती का एक औषधीय पौधा है और औषधियों के निर्माण के साथ डिटर्जेंट से लेकर शॉवर जैल एवं अन्य कॉस्मेटिक उत्पादों जैसे परफ्यूम के निर्माण में बहुत अधिक मात्रा में प्रयोग किया जाता है। पचौली की खेती मुख्यतः इसके सुगंधित तेल के लिए की जाती है। चीन, इंडोनेशिया, कंबोडिया, म्यांमार, फिलीपींस, थाईलैंड जैसे कई पूर्वी देशों में पचौली एक मुख्य फसल के रूप में भी उगाई जाती है। भारत भी पचौली उत्पादक देशों में शामिल है, हालांकि यहां उत्पादित फसल की मात्रा आवश्यक मात्रा से कई गुना तक कम होती है।
पचौली के औषधीय फायदे
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पचौली तेल, एंटीडिप्रेसेंट एवं सूजन को कम करने जैसे गुणों से निहित होता है।
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पचौली का प्रयोग घावों भरने वाली दवाओं में कारगर है।
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फसलों के लिए पचौली का तेल कवकनाशी व कीटनाशक के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।
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शरीर की दुर्गंध को दूर करने में भी पचौली एक कारगर औषधि है।
पचौली की खेती के लिए आवश्यक जलवायु
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पचौली की खेती के लिए गर्म और नम जलवायु बेहतर होती है।
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कम वर्षा एवं सिंचित क्षेत्रों में पचौली की खेती की जानी चाहिए।
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फसल के लिए तापमान 25 से 30 डिग्री उपयुक्त होता है।
मिट्टी एवं खेती की तैयारी
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ढीली भुरभुरी व जैविक पदार्थों से भरपूर गहरी मिट्टी में पचौली की खेती की जानी चाहिए।
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मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6 के मध्य होना चाहिए।
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खेती की तैयारी के लिए एक गहरी जुताई के बाद हैरोइंग से खेत की ढलाई की जानी चाहिए।
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मिट्टी के भुरभुरी अवस्था में पहुंच जाने पर खेत बुवाई या रोपाई के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाता है।
पौधों की रोपाई
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पचौली की रोपाई के लिए खेत में 20-25 सेंटीमीटर ऊंची और 18-21 सेंटीमीटर चौड़ी मेड़ बनाये।
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एक पंक्ति से दूसरी पंक्ति की दूरी 60 सेंटीमीटर रखें।
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खेत में जड़ वाली कलमों की रोपाई एक हल्की सिंचाई के बाद ही करें।
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पौधे से पौधे की दूरी 60 x 60 सेंटीमीटर रखें।
उर्वरक प्रबंधन
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खेत की तैयारी के समय 4 से 5 टन/एकड़ गोबर की खाद का प्रयोग करें।
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इसके साथ ही बेहतर फसल के लिए 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस एवं 20 किलोग्राम पोटेशियम का प्रयोग प्रति एकड़ खेत की दर से करें।
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