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प्याज की खेती कर बढ़ाएं अपनी आमदनी
प्याज की खेती भारत के सभी क्षेत्रों में की जाती है। इसका सेवन मुख्य रूप से सब्जी और सलाद के रूप में किया जाता है। यह काफी समय तक खराब नहीं होता है। बाजार में प्याज की अधिक मांग होने के कारण किसानों को इसकी खेती से बहुत फायदा होता है। तो चलिए जानते हैं प्याज की खेती से जुड़ी कुछ बारीकियां।
प्याज की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है।
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इसकी खेती के लिए जीवांशयुक्त हल्की दोमट मिट्टी, बलूई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है।
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भारी मिट्टी में कंद का सही विकास नहीं हो पता है।
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बुआई से पहले देशी हल से 4 - 5 जुताई करनी चाहिए।
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पौधों को 8 से 10 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाना चाहिए। इसकी गहराई 1 से 1.5 सेंटीमीटर रखें।
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बुआई के बाद बीजों को ढकने के लिए क्यारियों में गोबर खाद, मिट्टी और राख का छिड़काव करें।
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हल्की सिंचाई करना भी जरूरी है। इससे बीजों को अंकुरित होने के लिए पर्याप्त नमी मिलेगी।
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ठंड के मौसम में 12 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। वहीं गर्मियों के मौसम में 7 से10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करना बेहतर होता है।
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बुआई के पहले 1 किलोग्राम बेसालिन खेत की मिट्टी में मिला देने से खरपतवार नहीं निकलते। इसके अलावा बुआई के बाद प्रति हेक्टेयर जमीन के लिए 1,000 लीटर पानी में 6 लीटर टोक ई 25 मिला कर छिड़काव करने से भी खरपतवार पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
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बीज के माध्यम से लगाई गई प्याज की फसल को तैयार होने में 140 से 150 दिन समय लगता है। अलग आप कंद से प्याज लगा रहे हैं तो फसल लगभग 60 से 100 दिनों में तैयार हो जाएगी।
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फसल तैयार होने पर खरीफ मौसम में लगाई जाने वाली प्याज की पत्तियां नहीं गिरती हैं। रबी मौसम में लगाई जाने वाली प्याज की पत्तियां पीली हो कर गिरने लगती हैं।
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प्याज की उन्नत विधि से खेती की जाए तो प्रति हेक्टेयर जमीन से 200 से 350 क्विंटल तक पैदावार होती है।
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