राजमा : बेहतर पैदावार देने वाली किस्में

प्रोटीन का अच्छा स्रोत होने के कारण दलहनी फसलों में राजमा की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। इसके दाने अन्य दालों की तुलना में बड़े होते हैं। इसकी खेती रबी एवं खरीफ दोनों मौसम में की जा सकती है। मांग अधिक होने के कारण इसकी खेती किसानों के लिए मुनाफे का सौदा साबित होती है। लेकिन इसकी बेहतर पैदावार प्राप्त करने के लिए उन्नत किस्मों की जानकारी होना आवश्यक है। आइए राजमा की बेहतर पैदावार देने वाली किस्मों की जानकारी प्राप्त करें।
राजमा की कुछ उन्नत किस्में
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पी.डी.आर. 14 : इस किस्म उदय नाम से भी प्रचलित है। इस किस्म के दाने लाल रंग के एवं चित्तीदार होते हैं। बुवाई के करीब 125 से 130 दिनों बाद फसल पक कर तैयार हो जाती है। प्रति एकड़ भूमि में खेती करने पर 12 क्विंटल तक पैदावार होती है।
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मालवीय 137 : यह किस्म उत्तर पूर्वी भारत एवं महाराष्ट्र में खेती के लिए उपयुक्त है। इस किस्म के दाने लाल रंग के होते हैं। इस किस्म की फसल को तैयार होने में 115 से 120 दिनों का समय लगता है। प्रति एकड़ भूमि में खेती करने पर 10 से 12 वुएंटल तक पैदावार होती है।
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उत्कर्ष : यह किस्म पछेती बुवाई के लिए उपयुक्त है। इस किस्म के दाने गहरे लाल रंग के होते हैं। फसल को पक कर तैयार होने में 130 से 135 दिनों का समय लगता है। प्रति एकड़ भूमि से 8 से 10 क्विंटल तक पैदावार होती हैं।
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वी.एल. 63 : इस किस्म की खेती रबी एवं खरीफ दोनों मौसम में सफलतापूर्वक की जा सकती है। इस किस्म के राजमा के दाने भूरे रंग के एवं चित्तीदार होते हैं। बीज की रोपाई के बाद फसल को तैयार होने में 120 से 125 दिनों का समय लगता है। प्रति एकड़ भूमि से 10 क्विंटल तक पैदावार होती है।
इसके अलावा हमारे देश में राजमा की कई अन्य किस्मों की खेती भी सफलतापूर्वक की जाती है। जिनमें अम्बर, एच.यू.आर 15, अरुण, वीएल 63, हूर -15, बी.एल 63, आई.आई.पी.आर 98, आदि किस्में शामिल हैं।
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