रेशम कीट पालन: खेती से व्यापार तक की जानकारी | Silkworm Rearing: Complete Guide from Farming to Business

रेशम कीट पालन ग्रामीण क्षेत्र के व्यक्तियों के लिए व्यवसाय का एक बेहतर विकल्प है। रेशम कीट पालन बहुत कम खर्च में होने वाला कृषि आधारित उद्योग है। इसलिए छोटे किसान भी इस व्यापर से जुड़ कर अपनी आमदनी में आसानी से वृद्धि कर सकते हैं। अगर आप भी शुरू करना चाहते हैं रेशम कीट पालन का व्यवसाय तो इससे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियों से अवगत होना आवश्यक है। आइए 'रेशम कीट पालन - खेती से व्यापार तक की जानकारी' पर विस्तार से चर्चा करें।
कैसे करें रेशम कीट पालन? | How to Rear Silkworms?
रेशम की किस्में
- भारत 5 किस्म के रेशम का उत्पादन करने वाला एकमात्र देश है।
- हमारे देश में मलबरी, टसर, ओक टसर, एरी एवं मूंगा रेशम की खेती की जाती है।
रेशम कीट पालन में रोजगार के अवसर
- रेशम कीट पालन उद्योग में कई गतिविधियां शामिल हैं।
- इस उद्योग के अंर्तगत कीट के आहार के लिए वृक्षों की खेती, कीट पालन, कोकून से रेशम निकलना, रेशम की सफाई करना, सूत काटना, सूत से कपड़े का निर्माण के द्वारा रोजगार के अवसर को बढ़ाया जा सकता है।
रेशम कीट पालन के फायदे
- रेशम कीट पालन से कम समय में अधिक आय की प्राप्ति होती है।
- ग्रामीण क्षेत्रों के लिए यह आय का एक अच्छा स्रोत है।
- इस क्षेत्र में रोजगार की पर्याप्त संभावनाएं मौजूद हैं।
- महिलाएं भी इस व्यवसाय से जुड़कर अपनी आय में वृद्धि कर सकती हैं।
रेशम कीट पालन की शुरुआत
वृक्षों की खेती
- सबसे पहले कीट के आहार के लिए वृक्षों की खेती करनी होती है।
- शहतूती रेशम के लिए शहतूत के पौधों की खेती करनी होती है।
- वहीं गैर शहतूती रेशम के उत्पादन के लिए पलाश, गूलर, आदि वृक्षों की खेती की जाती है।
रेशम कीट का पालन
- मादा कीट एक बार में 300 से 400 अंडे देती है।
- अंडों से 10 दिनों के बाद लार्वा निकलने लगते हैं।
- आप अपने नजदीकी कृषि केंद्रों से रेशम कीट का लार्वा खरीद सकते हैं।
- यदि आप 10 दिन के रेशम कीट खरीदते हैं तो आपको 20 दिनों तक रेशम कीट का पालन करना होता है।
- इसके बाद कीट खाना बंद कर देते हैं और रेशम का उत्पादन करना शुरू कर देते हैं।
- लार्वा को खाने के लिए पत्तियां दी जाती हैं।
- करीब 4 से 10 दिनों के अंदर लार्वा अपने मुंह से प्रोटीन का स्राव करता है।
- यह प्रोटीन हवा की संपर्क में आने पर कठोर हो कर धागे की तरह हो जाता है।
- लार्वा कीट अपने शरीर के चारों तरफ रेशमी धागों से एक गोला बनाते हैं। इस गोले को कोकून कहा जाता है।
- कोकून के निर्माण के बाद कीट खुद को इसके अंदर बंद कर लेते हैं।
कोकून की छंटाई
- कोकून से रेशम निकालने से पहले कोकून की छंटाई की जाती है।
- छंटाई के समय खराब एवं डबल कोकून, मटमैला कोकून, पिघला हुआ कोकून, संक्रमित कोकून एवं विकृत कोकून को अलग किया जाता है।
कोकून से रेशम प्राप्त करने की विधि
- रेशम प्राप्त करने के लिए कोकून को गर्म पानी में डाल दिया जाता है।
- गर्म पानी में डालने के बाद कीट मर जाते हैं और बचे हुए कोकून से हम रेशम का निर्माण कर सकते हैं।
- बेहतर गुणवत्ता के रेशम प्राप्त करने के लिए कोकून को गर्म हवा में सुखाना चाहिए। ऐसा करने से प्यूपा मर जाता है और कोकून शैल की परतों को अलग करने में आसानी होती है।
- कोकून के एक गोले से 500 से 1,300 मीटर लम्बा रेशम का धागा प्राप्त होता है।
बेहतर गुणवत्ता के रेशम प्राप्त करने के लिए क्या करें?
- बेहतर गुणवत्ता के रेशम प्राप्त करने के लिए कोकून को गर्म हवा में सुखाना चाहिए। ऐसा करने से प्यूपा मर जाता है और कोकून शैल की परतों को अलग करने में आसानी होती है।
कोकून का भंडारण कैसे करें?
- कोकून को लम्बे समय तक भंडारित करने के लिए भंडार गृह का तापमान 20 डिग्री सेंटीग्रेड से कम होना चाहिए।
- कमरे के अंदर हवा में करीब 55 प्रतिशत आर्द्रता होनी चाहिए। इससे कवक से कोकून को बचाया जा सकता है।
व्यापार की शुरुआत
- रेशम के धागों से सूत तैयार किया जाता है।
- बाजार में रेशम के सूत की कीमत अधिक होती है।
- आप चाहें तो सूत से कपड़े का निर्माण कर के कपड़ों का व्यापार भी शुरू कर सकते हैं।
भारत के किन राज्यों में होता है रेशम का उत्पादन?
- हमारे देश के कई राज्यों में रेशम कीट का पालन करके रेशम का उत्पादन किया जाता है। जिनमें कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और जम्मू-कश्मीर कुछ प्रमुख रेशम उत्पादक राज्यों में शामिल हैं।
- इसके अलावा असम, बिहार, गुजरात, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, ओडिशा और उत्तर प्रदेश में भी रेशम का उत्पादन किया जाता है।
क्या आपके क्षेत्र में रेशम कीट पालन किया जाता है? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। पशु पालन से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए 'पशु ज्ञान’ चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट में दी गई जानकारी महत्वपूर्ण लगी है तो इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: रेशम की खेती कैसे की जाती है?
A: रेशम की खेती सेरीकल्चर नामक प्रक्रिया के माध्यम से की जाती है, जिसमें शहतूत के पत्तों पर रेशम के कीड़ों का पालन करना शामिल है। रेशम के कीड़े खुद को कोकून से ढकते हैं। इस कोकून को निकाल कर रेशम प्राप्त किया जाता है।
Q: रेशम की किस्में कितने प्रकार की होती हैं?
A: दुनिया भर में कई प्रकार के रेशम का उत्पादन किया जाता है, लेकिन भारत में, रेशम के चार मुख्य प्रकार हैं: शहतूत रेशम, टसर रेशम, एरी रेशम और मुगा रेशम। शहतूत रेशम सबसे अधिक उत्पादित होता है और भारत में कुल रेशम उत्पादन का लगभग 80% हिस्सा है। टसर रेशम का उत्पादन भारत के पूर्वी राज्यों में किया जाता है और यह अपने प्राकृतिक सोने के रंग के लिए जाना जाता है। एरी रेशम का उत्पादन भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में किया जाता है और इसे अहिंसा रेशम के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यह रेशम के कीड़ों को मारे बिना उत्पादित किया जाता है। मूगा रेशम का उत्पादन केवल असम में किया जाता है और यह अपने प्राकृतिक सुनहरे रंग के लिए जाना जाता है।
Q: रेशम कीट का भोजन कौन सा है?
A: रेशम कीट शहतूत, पलाश, गूलर, जैसे पौधों की पत्तियों को खाते हैं। शहतूत के पौधों को खाने वाले कीड़ों से उच्च गुणवत्ता की रेशम प्राप्त होती है।
Q: रेशम कीट का जीवन काल कितना होता है?
A: रेशम के कीड़ों का जीवन काल अपेक्षाकृत छोटा होता है, जो केवल 4-6 सप्ताह तक चलता है। इस दौरान रेशम कीट विकास के कई चरणों से गुजरता है। लार्वा की अवधि 25-30 दिनों तक की होती है। इसके बाद ये कोकून में बदल जाता है और 10 से 14 दिनों तक इस अवस्था में रहने के बाद पतंगा यानी व्यस्क कीट में बदल जाता है।
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