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25 Oct
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तोरई की खेती (Ridge gourd cultivation)


तोरई, जिसे अंग्रेजी में "Ridge Gourd" कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण सब्जी फसल है जो भारतीय व्यंजनों में व्यापक रूप से उपयोग की जाती है। इसकी खेती करना बहुत लाभकारी हो सकता है, यदि सही तकनीकों और विधियों का पालन किया जाए। इस लेख में, तोरई की उन्नत खेती के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करेंगे।

कैसे करें तोरई  की खेती? (How to cultivate Ridge gourd?)

  • मिट्टी (Soil): तोरई की खेती के लिए मिट्टी की गुणवत्ता अत्यंत महत्वपूर्ण है। दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है। इस मिट्टी में अच्छी जल धारण क्षमता होनी चाहिए। आमतौर पर, 6 से 7 पीएच वाली मिट्टी तोरई की अच्छी पैदावार के लिए उपयुक्त होती है। मिट्टी की उचित तैयारी और गुणवत्ता सुनिश्चित करने से फसल की उपज में वृद्धि होती है।
  • जलवायु (Climate): तोरई की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इसकी वृद्धि के लिए 25 से 35 डिग्री सेल्सियस का तापमान आदर्श है। अत्यधिक ठंड या पाला इस फसल के लिए हानिकारक हो सकता है। अतः, सही जलवायु परिस्थितियों का चयन करना आवश्यक है।
  • बुवाई का समय (Sowing Time): तोरई की बुवाई का सर्वोत्तम समय गर्मियों में होता है। सामान्यतः, फरवरी से मार्च और जून से जुलाई के बीच इसका बीज बोया जाता है। वर्षा ऋतु में भी इसकी खेती की जा सकती है, जिससे फलों की उपज अधिक होती है। सही समय पर बुवाई करने से उत्पादन में सुधार होता है।
  • बीज दर (Seed Rate): तोरई की खेती के लिए प्रति एकड़ 1.5 से 2 किलो बीज की आवश्यकता होती है। अच्छे अंकुरण और पौधों की उचित दूरी को ध्यान में रखते हुए बीज का प्रयोग करना चाहिए। सही बीज दर से फसल की वृद्धि और पैदावार में सुधार होता है।
  • उन्नत किस्में (Improved Variety): तोरई की उन्नत किस्में फसल के उत्पादन और गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं। पूसा चिकनी, पूसा स्नेहा, पूसा सुप्रिया, काशी दिव्या, कल्याणपुर चिकनी, फुले प्रजकता जैसी किस्में प्रमुख हैं। किसानों द्वारा घिया तोरई, पूसा नसदान, सरपुतिया, कोयम्बूर 2 आदि किस्मों का प्रयोग किया जाता है। इन उन्नत किस्मों की बीज रोपाई के बाद 70 से 80 दिन में फल मिलने शुरू हो जाते हैं, और यह किस्में 100 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से पैदावार देते हैं।
  • खेत की तैयारी (Field Management): तोरई की खेती के लिए खेत की तैयारी अत्यंत महत्वपूर्ण है। सबसे पहले, मिट्टी को 2-3 बार हल और पाटा चलाकर भुरभुरा करें। फिर, मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करके कुछ दिनों के लिए खेत को खाली छोड़ दें। प्रति एकड़ 8 से 10 टन गोबर की पुरानी खाद डालकर हल्की जुताई करें, और बाद में रोटावेटर से मिट्टी को भुरभुरा करें। अंतिम जुताई के समय, एन.पी.के. की 25:35:30 किलोग्राम मात्रा छिटकवा विधि से डालें और फिर पाटा लगाकर मृदा को समतल करें। अंत में, 1.5 से 2.5 मीटर (पंक्ति से पंक्ति) और 60 से 120 सेंटीमीटर (पौधे से पौधे) की दूरी पर गड्ढे खोदकर बीज लगाएं। इस प्रकार की तैयारी से तोरई की फसल की वृद्धि और उत्पादन में सुधार होता है।
  • खाद और उर्वरक प्रबंधन (Manure & Fertilizer Management): तोरई की खेती में खाद और उर्वरक प्रबंधन महत्वपूर्ण है, जो फसल की गुणवत्ता और उत्पादन को बढ़ाता है। प्रति एकड़ 10 से 15 टन गोबर की खाद, 26 से 30 किलोग्राम यूरिया, 22 से 26 किलोग्राम डी.ए.पी और 16 से 20 किलोग्राम एम.ओ.पी का उपयोग किया जाना चाहिए। इनका सही समय पर, यानी फसल बोने के समय और 30 दिन बाद, उपयोग करने से पौधों को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं, जिससे उनकी वृद्धि और स्वास्थ्य में सुधार होता है। इस प्रबंधन से तोरई की फसल की उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है।
  • सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management): सिंचाई का सही प्रबंधन तोरई फसल के लिए आवश्यक है। सिंचाई की आवृत्ति और मात्रा मौसम और मिट्टी की नमी के आधार पर निर्धारित की जाती है। यदि बीजों की रोपाई जुलाई के महीने में की गई है, तो पहली सिंचाई बीज रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिए। इसके बाद, अगली सिंचाई तीन से चार दिन के अंतराल में हल्की-हल्की करनी चाहिए। यदि बरसात समय पर हो रही है, तो फसल में नमी के अनुसार सिंचाई करें, लेकिन पानी का ठहराव न होने दें।
  • रोग एवं कीट (Disease And Insects): तोरई की फसल में कई प्रमुख कीट और रोग होते हैं। प्रमुख कीटों में पत्ती छेदक कीट, फल मक्खी, सफेद मक्खी, जैसिड, रेड स्पाइडर माइट, थ्रिप्स, और तना छेदक कीट शामिल हैं। रोगों में पाउडरी मिल्ड्यू, डाउनी मिल्ड्यू, एन्थ्रेकनोज, विल्ट, जड़ गलन, अल्टरनेरिया ब्लाइट, और बैक्टीरियल लीफ स्पॉट शामिल हैं। इनकी पहचान और नियंत्रण आवश्यक है ताकि फसल की अच्छी पैदावार सुनिश्चित की जा सके।
  • तुड़ाई (Harvesting): तोरई की तुड़ाई बुवाई के 45-50 दिनों के बाद शुरू होती है। जब फल पूर्ण रूप से विकसित और मुलायम हो जाए, तब उसकी कटाई करनी चाहिए। फलों की नियमित कटाई से उपज बेहतर होती है। सही समय पर तुड़ाई करने से फसल की गुणवत्ता भी बढ़ती है।
  • उपज (Yield): तोरई की फसल से प्रति एकड़ 80-100 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। उपज किस्म, बीज, और फसल प्रबंधन पर निर्भर करती है।

क्या आप तोरई की खेती करना चाहते हैं? अपने विचार हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को अभी फॉलो करें। अगर आपको यह पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान मित्रों के साथ साझा करें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (Frequently Asked Questions - FAQs)

Q: तोरई की बुवाई का सही समय क्या है?

A: तोरई की बुवाई का सही समय गर्मियों में होता है। इसे आमतौर पर मार्च से अप्रैल और जून से जुलाई के बीच बोया जाता है। वर्षा ऋतु में भी इसकी खेती की जा सकती है, जिससे इसके फलों की उपज अधिक होती है।

Q: तोरई कितने दिन में फल देने लगती है?

A: तोरई की उन्नत किस्में बीज रोपाई के बाद 70 से 80 दिनों में फल देने लगती हैं। यह समय किस्म और खेती की तकनीक पर निर्भर कर सकता है।

Q: तोरई की बेस्ट वैरायटी कौन-कौन सी हैं?

A: तोरई की बेस्ट वैरायटी में पूसा चिकनी, पूसा स्नेहा, पूसा सुप्रिया, काशी दिव्या, कल्याणपुर चिकनी, और फुले प्रजतका शामिल हैं। इसके अलावा, किसानों द्वारा घिया तोरई, पूसा नसदान, सरपुतिया, और कोयम्बूर 2 जैसी किस्मों का भी प्रयोग किया जाता है।

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