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17 Apr
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गुलाब की खेती: उन्नत किस्म, रोग एवं कीट प्रबंधन ( Rose Cultivation: Improved Varieties, Disease and Pest Management.)


गुलाब के फूल देखने में जितने आकर्षक होते हैं उतने ही खुशबूदार भी होते हैं। गुलाब की पंखुड़ियों से कई प्रकार की दवाइयां बनती हैं, जिन्हे तनाव और त्वचा के रोगो के इलाज के लिए प्रयोग की जाती है। भारत में  गुलाब कर्नाटक, तामिलनाडु, महांराष्ट्र, बिहार, पश्चिमी बंगाल, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, जम्मू और कश्मीर, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश मुख्य उत्पादक राज्य हैं। आजकल ग्रीन हाउस में खेती करना ज्यादा प्रसिद्ध है और गुलाब की खेती ग्रीन हाउस द्वारा करने से इसके फूलों की गुणवत्ता, खुले खेत की गई खेती करने से ज्यादा बढ़िया होती है।

कैसे करें गुलाब की खेती? (How to Cultivate rose?)

मिट्टी : गुलाब की खेती लगभग सभी तरह की मिट्टी में की जा सकती है। बेहतर पैदावार के लिए इसकी खेती दोमट मिट्टी, बलुई दोमट मिट्टी में करें। इसकी खेती के लिए किसी ऐसी जगह का चयन करें जहां खुली धूप आती है।  मिट्टी का pH 6 से 7.5  होना चाहिए।

जलवायु : उच्च गुणवत्ता के फूलों के लिए ठंडे एवं शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। तापमान अधिक होने पर फूलों की संख्या एवं आकार पर बुरा असर होता है।

गुलाब की प्रमुख किस्में : पूसा सोनिया प्रियदर्शनी, प्रेमा, मोहनी, बन्जारन, डेलही प्रिसेंज आदि। सुगंधित तेल हैतु किस्में - नूरजहाँ, डमस्क रोज।

खेत की तैयारी :

  • मिट्टी को नरम करने के लिए जोताई और गोड़ाई करें। खेत को एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई करके पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बना लें।
  • बिजाई से 4-6 सप्ताह पहले खेती के लिए बैड तैयार करें। बैड बनाने कि लिए 2 टन गोबर की खाद और 2 किलो सुपर फासफेट डालें। बैडों को एक समान बनाने के लिए उनको समतल करें और बैडों के ऊपर बोयें होये गुलाब गड्डों में बोयें हुए गुलाबों से ज्यादा मुनाफे वाले होते है|
  • बिजाई का समय : उत्तरी भारत में बिजाई का सही समय मध्य अक्टूबर है। रोपाई के बाद पौधे को छांव में रखें और अगर बहुत ज्यादा धुप हो, तो पौधे पर पानी का छिड़काव करें| दोपहर के अंत वाले समय बोया गया गुलाब बढ़िया उगता है|
  • फासला : बैड पर 30 सैं.मी. व्यास और 30 सैं.मी. गहरे गड्ढे खोदकर 75 सैं.मी. के फासले पर पौधों की बिजाई करें। दो पौधों के बीच में फासला गुलाब की किस्म पर निर्भर करता है। बीजों को 2-3 सैं.मी. गहराई में बोयें। इसकी बिजाई सीधी या पनीरी लगा कर की जाती है।

कटिंग से पौधे तैयार करने की विधि :

  • गुलाब के पुराने पौधों की कटिंग के द्वारा इसके नए पौधे तैयार किए जाते हैं। इसके लिए पेन्सिल जितनी मोटी शाखाओं का चुनाव करें। कटिंग की लम्बाई 15 से 20 सेंटीमीटर होनी चाहिए। पौधों की कटिंग में ऊपर की कुछ पत्तियों को छोड़ कर बाकी सभी पत्तियों को काट कर अलग करें।
  • इसके बाद प्लास्टिक के छोटे-छोटे बैग में मिट्टी एवं बालू मिला कर भरें। फिर प्लास्टिक बैग में एक-एक कटिंग की रोपाई करें। इसकी जगह आप नर्सरी में तैयार की गई क्यारियों में 15 से 20 सेंटीमीटर की दूरी पर भी पौधों की कटिंग लगा सकते हैं।
  • कटिंग की रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करें। कटिंग की रोपाई के करीब 1 से 2 सप्ताह बाद पौधों में जड़ें बनने लगती हैं। पौधों में जड़ें आने के बाद मुख्य खेत में रोपाई कर सकते हैं।

खाद एवं उर्वरक : बैड की तैयारी के समय 2 टन गोबर की खाद और 2 किलो सुपर फास्फेट को मिट्टी में डालें। तीन महीने के फासले पर 10 किलो गोबर की खाद और 8 ग्राम नाइट्रोजन,  8 ग्राम फासफोरस और 16 ग्राम पोटाश प्रति पौधे में डालें। छंटाई के बाद ही सारी खादों को डालें। ज्यादा पैदावार लेने के लिए छंटाई से एक महीने बाद, जी ए 3@ 200 पी पी एम(2 ग्राम प्रति लीटर) की स्प्रे करें। पौधे की तनाव सहन शक्ति को बढ़ाने के लिए घुलनशील जड़ उत्तेजक(रैली गोल्ड/रिजोम) 100 ग्राम+ टिपोल 60 मि.ली. को 100 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ में शाम के समय सिंचाई करें|

सिंचाई : पौधों को खेत में लगाएं ताकि बढ़िया ढंग से विकास कर सके। सिंचाई मिट्टी की किस्म और जलवायु के अनुसार करें। आधुनिक सिंचाई तकनीक जैसे ड्रिप सिंचाई गुलाब की खेती के लिए लाभदायक होती है। फव्वारा सिंचाई से परहेज करें क्योंकि इससे पत्तों को लगने वाली बीमारियां बढ़ती हैं।

गुलाब में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग:

  • चूर्णिल आसिता / पाउडरी मिल्ड्यू- यह भी एक कवक जनित रोग है जो शीतल एवं शुष्क मौसम में उत्पन्न होता है। इस रोग के लक्षण पौधे के सभी भागों पर दिखाई देते हैं। सबसे पहले यह रोग पौधे की पत्तियों पर दिखाई देता है तथा बाद में पौधे के दूसरे भागों पर भी फैल जाता है पौधे की पत्तियों पर दोनों सतहों पर सफेद पाउडर जैसी परत जम जाती है तनों पर साथ ही साथ कलियों पर भी रोग होने पर फूल नहीं खिलता पत्तियां झडऩे लगती हैं।
  • काले धब्बे (ब्लैक स्पॉट) : यह रोग भी कवक द्वारा फैलता है। जमीन में पोटाश की कमी से भी यह रोग होता है। इसमें पानी एवं पर्णवृंत पर लाल-भूरे रंग के छाले या फफोले के रूप दिखाई देते हैं। जो काले हो जाते हैं।
  • झुलसा रोग (ब्लाइट) : गुलाब का यह कवक जनित रोग डाइबेक के रोग के साथ-साथ पाया जाता है तने पर छोटे-छोटे बादामी रंग के धब्बे बनते हैं।
  • पत्ती धब्बा रोग : वर्षा के मौसम में इस रोग द्वारा अत्याधिक हानि होती है पीले-भूरे से गहरे रंग के धब्बे पत्ती एवं वृंत पर दिखाई देते हैं रोगग्रस्त हिस्सा गिर जाता है पत्तियों में छोटे-छोटे छिद्र बन जाते हैं।
  • डाइबेक या शीर्षारंभी क्षय रोग : देशी गुलाब पर यह फफूंदजनित प्रमुख रोग है। यह पौधे के ऊपरी भाग से नीचे की ओर आता है। सामान्यतया शाखाओं की कटाई के बाद कटे हुए स्थान से आगे बढ़ते जाते हैं और पौधे मर भी सकते हैं। कवक के अलावा यह रोग उर्वरकों के अनुचित प्रयोग, अनुचित सिंचाई व जल निकास एवं सूर्य की रोशनी के अभाव में होता हैं।

गुलाब में लगने वाले कुछ प्रमुख कीट :

  • एफिड (चेंपा) : इस कीड़े का आक्रमण जनवरी-फरवरी में होता है। काले रंग के ये नन्हें कीड़े फूल पर व कलियों पर चिपके रहते हैं इस कीड़े के शिशु और प्रौढ़ दोनों ही कोशिकाओं का रस चूसते हैं इससे कलियां मुरझाकर गिर जाती हैं फूलों का आकार बढ़ता नहीं है और उनका आकार विकृत हो जाता है।
  • थ्रिप्स : यह कीट फूलों को बहुत नुकसान पहुंचाता है। वयस्क थ्रिप्स काले एवं भूरे रंग के तथा शिशु लाल रंग के होते हैं ये मार्च से नवम्बर तक पत्तियों की निचली सतह पर दिखाई देते हैं। इसके आक्रमण से पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं और पत्तियां सिकुड़ जाती हैं इसी प्रकार कलियां और फूल सिकुडक़र गिर जाते हैं।
  • रेड स्केल : यह एक अत्यंत हानिकारक कीट है जो तेजी से अपनी संख्या बढ़ाने के साथ ही पौधों का रस चूसकर उन्हें बेजान कर देता है। स्केल कीट प्राय: पहचानने में भी नहीं आता क्योंकि इसका रंग तने या छाल की तरह होता है। भूरे, लाल रंग का कीट पूरे पौधे पर फैलकर तने का रस चूसकर पौधे को मार डालता है। इसका प्रकोप जनवरी- फरवरी में कीट द्वारा भूमि के ऊपर पौधों पर चढक़र होता है।
  • निमेटोड (सूत्रकृमि) : ये सूक्ष्म आकार के होते हैं। इनका आक्रमण जड़ क्षेत्र को प्रभावित करता है पौधे कमजोर होने के साथ-साथ उनकी बढ़ोत्तरी रुक जाती है। फूल नहीं बनते, पत्तियां पीली पड़ जाती है निमेटोड नाम के ये जीव रंग विहीन होते हैं यह जड़ों के साथ तने पत्तों व कलियों पर भी संक्रमण कर जीवाणु फैलाते हैं।
  • कैटरपिलर (सुंडियां) : ये भूरे रंग की सुंडियां पत्तियां खाती हैं।
  • स्पाइडर माइट्स / घुन : गुलाब पर रेडस्पाइडर माइट्स आक्रमण करती है। पत्ती के निचले भाग में रेशमी धागों का जाला सा बुनती है जिससे पत्ते पीले भूरे होकर सूख कर गिर जाते हैं। सितम्बर से जनवरी तक यह सक्रिय रहते हैं। लाल रंग की रेड स्पाइडर माइट्स (टेटरानाइचस प्रजाति) पत्तों को ढके रहते हैं। रस चूसने के पश्चात पत्तों का विकास रुक जाता है और वे गिर जाते हैं।

क्या आप गुलाब की खेती करना चाहते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Question (FAQs )

Q: गुलाब की खेती कौन से महीने में की जाती है?

A: यह क्रिया गुलाब के पौधे से अच्छे आकार के फूल प्राप्त करने के लिए अतिआवश्यक होती है। अक्टूबर-नवम्बर का महीना इसके लिए उपयुक्त है।

Q: सबसे महंगा गुलाब का पौधा कौन सा है?

A: जूलियट रोज दुनिया का सबसे महंगा गुलाब का फूल हैं। इसकी कीमत 90 करोड़ है।

Q: सबसे ज्यादा गुलाब कहाँ पाया जाता है?

A: गुलाब पूरे उत्तर भारत में पाया जाता है, खासकर राजस्थान, बिहार और मध्य प्रदेश में जनवरी से अप्रैल तक खूब खिलता है। दक्षिण भारत में बंगलौर, महाराष्ट्र और गुजरात में भी गुलाब की भरपूर खेती होती है।

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