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केसर: रोग, लक्षण, बचाव एवं उपचार | Saffron: Diseases, Symptoms, Prevention and Treatment
केसर अपने अनूठे रंग, स्वाद और औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध है। भारतीय व्यंजन में केसर का विशेष महत्व है। बिरयानी, खीर, हलवा, और लड्डू जैसे मिठाइयों में केसर का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, केसर का उपयोग चाय और दूध में मिलाकर भी किया जाता है, जिससे इन पेय पदार्थों का स्वाद और सुगंध दोनों बढ़ जाते हैं। केसर का उपयोग न केवल खाने में स्वाद और रंग बढ़ाने के लिए किया जाता है, बल्कि इसके स्वास्थ्य लाभ भी असीमित हैं। कश्मीर की घाटियों (पंपोर) में बैंगनी रंग के फूलों से बड़ी सावधानी से केसर के धागों को चुना जाता है। इसके एक फूल से केवल 3 केसर के धागे प्राप्त होते हैं। 1 किलोग्राम केसर प्राप्त करने के लिए करीब 1,50,000 फूलों की आवश्यकता होती है। इसलिए इसकी बिक्री सोने की कीमतों में की जाती है। लेकिन कई पौधों में लगने वाले कुछ रोगों के कारण केसर की खेती करने वाले किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। अगर आप भी कर रहे हैं केसर की खेती तो इसमें लगने वाले कुछ प्रमुख रोगों के लक्षण एवं नियंत्रण की विस्तृत जानकारी के लिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।
केसर के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग | Some major diseases affecting saffron plants
पत्ती झुलसा रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग को ब्लाइट डिजीज के नाम से भी जाना जाता है। कंदों की रोपाई के करीब 20-25 दिनों बाद पत्तियों पर इस रोग के लक्षण नजर आते हैं। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियाों एवं तने पर भूरे रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। इस रोग के शुरुआत में पौधों की निचली पत्तियां सूखने लगती हैं। रोग बढ़ने के साथ ऊपर की पत्तियां भी सूखने लगती हैं। कुछ समय बाद पौधे सूख कर नष्ट हो जाते हैं।
पत्ती झुलसा रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- इस रोग पर नियंत्रण के लिए इनमें से किसी एक दवा का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 100 मिलीलीटर क्रेसोक्सिम मिथाइल 44.3% एससी (टाटा रैलिस एर्गोन, पारिजात इंडस्ट्रीज एलोना) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 400 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू.पी (देहात साबू, यूपीएल साफ) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 200 ग्राम पायराक्लोस्ट्रोबिन 20% डब्ल्यूजी (मैनकाइंड एग्रीटेक पाइरेब्लेस, ग्लोबल क्रॉप केयर लाइन) का प्रयोग करें।
कॉर्म सड़न रोग से होने वाले नुकसान: यह एक फफूंद जनित रोग है। इस रोग के होने पर प्रभावित कॉर्म (कंद) पर पानी से लथपथ घाव होने लगते हैं। धीरे-धीरे ये धब्बे भूरे रंग के हो जाते हैं और धंसने लगते हैं। प्रभावित कॉर्म नरम और स्पंजी हो कर सड़ जाते हैं। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियां पीली हो कर और मुरझाने लगती हैं।
कॉर्म सड़न रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- प्रति एकड़ खेत में 1 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडे (डॉ. बैक्टो डर्मस 4के, माइक्रोबैक्स ट्राइकोविन) मिला कर मिट्टी का उपचार करें।
- 10 किलोग्राम कॉर्म (कंदों) को 100 मिलीलीटर एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 2.5% + थियोफैनेट मिथाइल 11.25% + थायमेथोक्सम 25% एफएस (स्वाल कैस्केड) से उपचारित करें।
- प्रति किलोग्राम कॉर्म (कंदों) को 2.5 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडे (डॉ. बैक्टो डर्मस 4के, माइक्रोबैक्स ट्राइकोविन) से उपचारित करें।
- प्रति एकड़ खेत में 1.5 किलोग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्ल्यूपी (टाटा ब्लिटॉक्स, बीएसीएफ बीकॉपर, क्रिस्टल ब्लू कॉपर) का प्रयोग करें।
फ्यूजेरियम विल्ट रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग के होने का मुख्य कारण कवक है, जो लम्बे समय तक मिट्टी में जीवित रह सकते हैं। इसके अलावा रोपाई के लिए इस रोग से प्रभावित पौधों के कॉर्म का इस्तेमाल करने पर यह रोग हो सकता है। इस रोग से प्रभावित पौधे मुरझाने लगते हैं। रोग का प्रकोप बढ़ने पर पौधे की पत्तियां पीली पड़ने लगती है एवं पौधा सूखने लगता है। पौधों के तने पीले पड़ने लगते हैं और फटने लगते हैं। कुछ समय बाद पौधे गिर जाते हैं।
फ्यूजेरियम विल्ट रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- पौधों को इस रोग से बचाने के लिए फसल चक्र अपनाएं।
- इस रोग को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित पौधों को नष्ट कर दें।
- 10 किलोग्राम कॉर्म (कंदों) को 250 ग्राम टेबुकोनाज़ोल 5.4% एफएस (एडमा ओरियस एफएस) से उपचारित करें।
- प्रति किलोग्राम कॉर्म (कंदों) को 4 ग्राम कार्बोक्सिन 37.5% + थिरम 37.5% डब्ल्यूएस (धानुका विटावॅक्स पावर, स्वाल इमिवैक्स) से उपचारित करें।
रस्ट रोग से होने वाले नुकसान: रस्ट यानी जंग रोग एक कवक जनित रोग है। इस रोग की शुरुआत आमतौर पर गर्मी के मौसम के अंत में होती है। वातावरण में आर्द्रता और 25.5 से 30.5 डिग्री सेल्सियस तापमान होने पर इस रोग रोग के होने की संभावना बढ़ जाती है। वर्षा के मौसम में यह रोग तेजी से फैल सकता है। इस रोग की शुरुआत में प्रभावित पत्तियों पर पीले से नारंगी रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। रोग बढ़ने के साथ धब्बे बड़े होने लगते हैं और इनका रंग भूरा हो जाता है। इस रोग के कारण पत्तियां मुरझा कर गिरने लगती हैं। प्रभावित पौधों के विकास में बाधा आती है।
रस्ट रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- बाग की साफ-सफाई करें। नीचे गिरी हुई पत्तियां, टहनियां एवं मिट्टी में पनपे खरपतवारों को निकालें।
- इस रोग से संक्रमित पुराने गिरे हुए पत्तों को एकत्र करके जला दें।
- रोग ग्रस्त पौधों की छंटाई करें।
- प्रति एकड़ खेत में 350 ग्राम क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यू.पी (टाटा रैलिस ईशान, कोरोमंडल जटायु, सिंजेन्टा कवच) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 1.5 किलोग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्ल्यूपी (टाटा ब्लिटॉक्स, बीएसीएफ बीकॉपर, क्रिस्टल ब्लू कॉपर) का प्रयोग करें।
आपके केसर के पौधों में किस रोग का प्रकोप अधिक होता है और रोगों पर नियंत्रण के लिए आप किन दवाओं का प्रयोग करते हैं? अपने जवाब हमें कमेंट के द्वारा बताएं। कृषि संबंधी जानकारियों के लिए देहात के टोल फ्री नंबर 1800-1036-110 पर सम्पर्क करके विशेषज्ञों से परामर्श भी कर सकते हैं। इसके अलावा, 'किसान डॉक्टर' चैनल को फॉलो करके आप फसलों के सही देखभाल और सुरक्षा के लिए और भी अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक एवं शेयर करके आप इस जानकारी को अन्य किसानों तक पहुंचा सकते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: केसर की खेती कहां और कैसे होती है?
A: केसर मुख्य रूप से भारत में कश्मीर घाटी में उगाया जाता है। यह एक श्रम-गहन फसल है जिसके लिए एक विशिष्ट जलवायु और मिट्टी की स्थिति की आवश्यकता होती है। केसर क्रोकस फूल शरद ऋतु में खिलते हैं, और मसाले का उत्पादन करने के लिए कलंक को हाथ से उठाया और सुखाया जाता है।
Q: केसर की खेती कौन से महीने में की जाती है?
A: भारत में केसर की खेती मई से अगस्त महीने के बीच की जाती है। क्षेत्रों एवं मौसम के अनुसार कंदों की रोपाई के समय में थोड़ा परिवर्तन हो सकता है।
Q: केसर साल में कितनी बार खिलता है?
A: केसर के फूल वर्ष में केवल एक बार ही खिलते हैं। केसर के फूल शरद ऋतु में लगभग दो सप्ताह की अवधि के लिए खिलते हैं, जो भारत में अक्टूबर और नवंबर के आसपास होता है। केसर की कटाई आमतौर पर इस समय के दौरान होती है।
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