तिल की खेती: मिट्टी, जलवायु और बुवाई का समय (Sesame cultivation: soil, climate and time of sowing)
भारत में तिल की खेती एक महत्वपूर्ण कृषि गतिविधि है। जो वैश्विक तिल उत्पादन का लगभग 30% योगदान देती है। भारत में खरीफ और रबी दोनों मौसमों में तिल उगाया जाता है। भारत में प्रमुख तिल उत्पादक राज्य गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और तेलंगाना हैं। इसका उपयोग तेल निष्कर्षण, भोजन और चारा के लिए किया जाता है। तिल के तेल का व्यापक रूप से भारतीय व्यंजनों में उपयोग किया जाता है और इसका उपयोग साबुन, सौंदर्य प्रसाधन और फार्मास्यूटिकल्स के निर्माण में भी किया जाता है।
कैसे करें तिल की उन्नत खेती? (How to do improved cultivation of sesame?)
- जलवायु: तिल की खेती में अच्छे विकास के लिए 25 से 35 डिग्री का तापमान उचित होता है। तापमान 40 डिग्री से ऊपर और 15 डिग्री से कम होने पर तिल की फसल और तेल उत्पादन में कमी आती है।
- मिट्टी: हल्की 5.5 से 8.0 के बीच होना चाहिए। अच्छे जल निकास वाली मिट्टी तिल की खेती के लिए उपयुक्त होती है।
- बुवाई का समय: तिल की खेती खरीफ और रबी दोनों मौसम में की जा सकती है। खरीफ सीजन में बुवाई के लिए जून से जुलाई महीने के अंत तक का समय उचित है। रबी मौसम में बुवाई अक्टूबर से नवंबर तक की जाती है।
- बीज की मात्रा: तिल की खेती के लिए बीज दर आमतौर पर लगभग 3-4 किलोग्राम प्रति एकड़ होती है। अगर बीज लाइन बुवाई विधि का उपयोग किया जाता है, तो लगभग 1.5-2.5 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज पर्याप्त होता है। बीज को 2.5 सेमी गहराई पर ही बुवाई करें।
- बीज उपचार: एक ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बीजों की बुवाई करनी चाहिए।
- खेत की तैयारी : तिल की बुवाई करने से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार करना चाहिए। इसके लिए खेत की दो से तीन बार गहरी जुताई कल्टीवेटर या फिर हल से करने के बाद पाटा चला दें। तिल की बुवाई के समय कतार से कतार की दूरी 30 सेमी. और पौधे से पौधे के बीच 15 सेमी.की दूरी रखनी चाहिए। बुवाई करते समय खेत में नमी होनी आवश्यक है।
- किस्में : तिल की कई उन्नत किस्में हैं जिन्हें भारत में अनुसंधान और प्रजनन कार्यक्रमों के माध्यम से विकसित किया गया है। जैसे की : शेखर, आरटी 351, प्रगति, तरुण, टी.के.जी 22, टी.के.जी 19, आरटी 48, वी.आर.आई. 1, और टीएमवी 3 आदि।
- खाद एवं उर्वरक प्रबंधन: तिल की फसल में खाद और उर्वरक का उपयोग मिट्टी की जांच के आधार पर करना चाहिए। बुवाई से पहले या खेत की तैयारी के समय प्रति एकड़ 2 टन गोबर की खाद, 18-44 किलोग्राम यूरिया, 18-35 किलोग्राम डी.ए.पी, 7-20 किलोग्राम एम.ओ.पी, और 8-10 किलोग्राम सल्फर देना चाहिए।
- सिंचाई प्रबंधन: तिल में बुवाई करने के बाद पानी देने की आवश्यकता नहीं पड़ती है, पर अगर लंबे समय तक बारिश ना हो या खेत में नमी नहीं है तो फल बनने की अवस्था में एक पानी जरूर देना चाहिए।
- खरपतवार प्रबंधन: तिल की खेती में बुवाई के 15 से 20 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई करें, और दूसरी निराई-गुड़ाई बुवाई के 30 से 35 दिन बाद करनी चाहिए। खरपतवारों को उगने से रोकने के लिए उपयुक्त खरपतवार नाशक दवा का छिड़काव करें।
- रोग एवं कीट: तिल में रोग व कीटों के प्रकोप को रोकने के लिए समय पर उपचार करना जरूरी है। तिल की खेती में जीवाणु अंगमारी, तना और जड़ सड़न रोग का प्रकोप होता है। इसके साथ ही तिल में पाए जाने वाले कुछ सामान्य कीटों में एफिड, जैसिड, व्हाइटफ्लाइज, लीफ हॉपर और थ्रिप्स शामिल हैं। ये कीट पौधे की पत्तियों, तनों और बीजों को खाकर फसल को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
- कटाई : जब तिल के पौधो की फलियाँ पीली पड़ने लगे एवं पत्तियाँ झड़ना शुरू हो जाती हैं तब इसकी कटाई कर सकते हैं। कटाई करने बाद फसल के गट्ठे बांधकर खेत में अथवा खलिहान में रखें। इसके बाद इन्हे 8 से 10 दिन तक सुखाएं फिर लकड़ी के डंडे से पीटकर झड़ाई करे।
- उपज : तिल की उपज मिट्टी के प्रकार, जलवायु, सिंचाई और खेती के तरीकों पर अलग-अलग हो सकती है। तिल के एक एकड़ खेत में लगभग 400 से 500 किलोग्राम प्रति एकड़ उत्पादन होता है। अच्छी कृषि पद्धतियों और उचित प्रबंधन के साथ, उपज को 600 से 700 किलोग्राम प्रति एकड़ तक बढ़ सकता है।
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (Frequently Asked Questions - FAQs)
Q: तिल की बुवाई का उचित समय क्या है?
A: भारत में, तिल आमतौर पर मानसून के मौसम (जून-जुलाई) के दौरान बोया जाता है और अक्टूबर-नवंबर में काटा जाता है।
Q: तिल की 1 एकड़ में कितनी पैदावार होती है?
A: 1 एकड़ में तिल की उपज मिट्टी के प्रकार, जलवायु, सिंचाई और खेती के तरीकों जैसे विभिन्न कारकों के आधार पर भिन्न हो सकती है। हालांकि, औसतन, तिल भारत में लगभग 400 से 500 किलोग्राम प्रति एकड़ पैदा कर सकता है। अच्छी कृषि पद्धतियों और उचित प्रबंधन के साथ, उपज को 600 से 700 किलोग्राम प्रति एकड़ तक बढ़ाया जा सकता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये केवल अनुमानित आंकड़े हैं और वास्तविक उपज खेत की विशिष्ट स्थितियों के आधार पर भिन्न हो सकती है।
Q: तिल के प्रमुख रोग कौन से हैं?
A: तिल की फसल में ये प्रमुख बीमारियाँ होती हैं जैसे - जड़ सड़न या तना सड़न या चारकोल सड़न, पत्ती झुलसा रोग, मुरझाना, ख़स्ता फफूंदी, बैक्टीरियल लीफ स्पॉट आदि।
Q: तिल में कौन-कौन से कीट लगते हैं ?
A: तिल की फसलें विभिन्न कीटों और बीमारियों के लिए अतिसंवेदनशील होती हैं। तिल में पाए जाने वाले कुछ सामान्य कीटों में एफिड्स, जैसिड्स, व्हाइटफ्लाइज़, लीफहॉपर और थ्रिप्स शामिल हैं। ये कीट पौधे की पत्तियों, तनों और बीजों को खाकर फसल को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं। भारत में किसान इन कीटों को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग करते हैं, जिसमें कीटनाशकों का उपयोग, फसल चक्रण और अन्य फसलों के साथ इंटरक्रॉपिंग शामिल है। स्वस्थ और उत्पादक तिल की फसल सुनिश्चित करने के लिए उचित कीट प्रबंधन प्रथाओं का पालन करना महत्वपूर्ण है।
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