शिमला मिर्च की प्रमुख किस्में और पैदावार
हमारे देश में शिमला मिर्च की खेती हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, झारखंड, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक आदि राज्यों में की जाती है। लगभग 2 से 3 महीने में तैयार होने के कारण शिमला मिर्च की खेती कर के किसान अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। इसकी खेती करने से पहले कुछ प्रमुख किस्मों और पैदावार की जानकारी होना आवश्यक है।
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कैलिफोर्निया वंडर : यह शिमला मिर्च की उन्नत किस्मों में शामिल है। इसका पौधा माध्यम ऊंचाई का और फलों का रंग हरा होता है। रोपाई के करीब 75 दिनों बाद इसकी पहली तुड़ाई की जा सकती है। प्रति एकड़ जमीन से करीब 72 से 80 क्विंटल शिमला मिर्च की उपज होती है।
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पूसा दीप्ती : इस किस्म को वर्ष 1997 में विकसित किया गया था। यह शंकर किस्मों में से एक है। इसका पौधा माध्यम आकर का झाड़ीनुमा होता है। इस किस्म के शिमला मिर्च के फलों का रंग हल्का करा होता है जो पकने के बाद गहरे लाल रंग में परिवर्तित हो जाता है। रोपाई के 70-75 दिनों बाद यह तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। प्रति एकड़ जमीन से 120 से 140 क्विंटल शिमला मिर्च की पैदावार होती है।
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येलो वंडर : इस किस्म के पौधों की ऊंचाई माध्यम आकर की और पत्तियां चौड़ी होती हैं। रोपाई के लगभग 70 दिनों बाद इसकी तुड़ाई कर सकते हैं। प्रति एकड़ भूमि में इसकी खेती की जाए तो करीब 48 से 56 क्विंटल शिमला मिर्च प्राप्त कर सकते हैं।
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सोलन हाईब्रिड 2 : यह जल्द तैयार होने वाली किस्मों में से एक है। रोपाई के 60 से 65 दिनों बाद इसकी तुड़ाई की जा सकती है। प्रति एकड़ जमीन से औसतन 130 से 150 क्विंटल पैदावार होती है।
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सोलन भरपूर : रोपाई के 70-75 दिनों बाद इसकी तुड़ाई कर सकते हैं। इसके फल गहरे हरे रंग के होते हैं। इस किस्म के प्रति फलों का वजन 50-60 ग्राम होता है। प्रति एकड़ भूमि से लगभग 120 क्विंटल शिमला मिर्च प्राप्त की जा सकती है।
इसके अलावा शिमला मिर्च की कई अन्य किस्में भी होती हैं। जिनमे सोलन हाईब्रिड -1, अर्का गौरव, अर्का मोहिनी , अलंकार, हरी रानी, ग्रीन गोल्ड आदि किस्में शामिल हैं।
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