हनुमान फल की खेती | Soursop Fruit Cultivation
आम, अमरुद, सेब, अनार, जैसे फलों की खेती तो सदियों से की जा रही है। आज हम एक विदेशी फल की खेती की जानकारी ले कर आए हैं, जिसका नाम है हनुमान फल। हनुमान फल को सॉरसॉप या ग्रेविओला भी कहा जाता है। मेक्सिको और साउथ अमेरिका जैसे देशों में पाए जाने वाले इस फल की खेती अब भारत में भी शुरू हो गई है। कई पोषक तत्वों से भरपूर इस फल का स्वाद अनानास और स्ट्रॉबेरी की तरह होता है। अगर आप भी करना चाहते हैं इसकी खेती तो, इसकी खेती के लिए उपयुक्त समय, उपयुक्त मिट्टी एवं जलवायु, खेत की तैयारी, सिंचाई एवं खरपतवार प्रबंधन, रोग एवं कीट नियंत्रण जैसी जानकारियों के लिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।
कैसे करें हनुमान फल की खेती? | How to Cultivate Soursop Fruit
- हनुमान फल की खेती के लिए उपयुक्त समय: हनुमान फल की खेती के लिए सबसे उपयुक्त समय वर्षा ऋतु के बाद का होता है। भारत में, इसकी खेती जून से सितंबर के बीच की जा सकती है। इस अवधि के दौरान पौधों को रोपाई करने से उन्हें पर्याप्त मात्रा में नमी और उचित तापमान मिलता है, जो उनके विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
- उपयुक्त जलवायु: हनुमान फल उष्णकटिबंधीय और उप-उष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छे से विकसित होता है। इसे सामान्यतः 21-30 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। अत्यधिक ठंड और पाले से बचाव करना आवश्यक है, क्योंकि यह पौधा ठंड में नष्ट हो सकता है। पर्याप्त धूप और गर्मी इसकी अच्छी वृद्धि के लिए आवश्यक है।
- उपयुक्त मिट्टी: हनुमान फल की खेती के लिए गहरी, अच्छी जल निकासी वाली, दोमट मिट्टी या बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी का पीएच स्तर 6.0 से 6.5 के बीच होना चाहिए। यदि मिट्टी का पीएच स्तर कम हो तो उसमें चूना मिलाकर इसे संतुलित किया जा सकता है। मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढ़ाने के लिए उसमें जैविक खाद का उपयोग करना लाभकारी होता है।
- खेती की विधि: इसकी खेती नर्सरी में पौधे तैयार करके की जाती है। नर्सरी में तैयार किए गए पौधों की मुख्य खेत में रोपाई कर सकते हैं।
- पौधों की मात्रा: प्रति एकड़ खेत में 80 से 240 पौधों की रोपाई की जा सकती है। पौधों की मात्रा रोपाई के तरीकों पर निर्भर करती है।
- खेत तैयार करने की विधि एवं उर्वरक प्रबंधन: सबसे पहले खेत में 2-3 बार अच्छी तरह जुताई करें। इससे मिट्टी मिट्टी नरम और भुरभुरी हो जाएगी। इसके बाद उसमें गोबर की खाद और कम्पोस्ट खाद मिलाएं। पौधों को लगाने के लिए खेत में गड्ढे तैयार करें। सभी गड्ढे 24 इंच गहरे, 24 इंच लम्बे और 24 इंच चौड़े होने चाहिए। पौधों से पौधों के बीच 4-6 मीटर की दूरी होनी चाहिए। पौधों की रोपाई के बाद गड्ढों को मिट्टी के कम्पोस्ट से भरें। पौधों को लगाने के एक वर्ष बाद सभी पौधों में 65 ग्राम यूरिया, 55 ग्राम डीएपी और 100 ग्राम एमओपी खाद का प्रयोग करें।
- सिंचाई प्रबंधन: हनुमान फल के पौधे सूखे के प्रति सहनशील होते हैं। लेकिन, पत्तियों को गिरने से बचाने के लिए मिट्टी में नमी बनाए रखें। वर्षा के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। खेत में जल जमाव की स्थिति न होने दें। इससे पौधों को काफी नुकसान होता है। सिंचाई के लिए ड्रिप इरिगेशन विधि का प्रयोग करना लाभदायक साबित हो सकता है। इससे सिंचाई के समय पानी की बचत भी होती है और पौधों की जड़ों तक पर्याप्त मात्रा में पानी भी उपलब्ध होता है।
- खरपतवार नियंत्रण: खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए आवश्यकता के अनुसार निराई-गुड़ाई करें। इसके लिए आप कृषि उपकरणों का भी उपयोग कर सकते हैं। खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए मल्चिंग विधि का भी प्रयोग कर सकते हैं। इसके लिए आप प्लास्टिक शीट या सूखी पत्तियां, पुआल, सूखे घास, आदि का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे खरपतवारों पर नियंत्रण के साथ मिट्टी में नमी भी बनी रहती है।
- रोग एवं कीट नियंत्रण: हनुमान फल के पौधे चूर्णिल आसिता रोग, जड़ सड़न रोग, माहु, मिली बग और स्केल कीट, के प्रति बहुत अधिक संवेदनशील होते हैं। विभिन्न रोगों एवं कीटों पर नियंत्रण के लिए उपयुक्त रासायनिक दवाओं का प्रयोग करें। पौधों को नुकसान से बचाने के लिए दवाओं के प्रयोग के समय उसकी मात्रा का विशेष ध्यान रखें।
- फलों की तुड़ाई: पौधों की रोपाई के करीब तीसरे वर्ष पौधों में फल आने लगते हैं। प्रत्येक पौधे में औसतन 12-24 फल लगते हैं। जब फलों का रंग हरे से हल्का पीला होने लगे और फल मुलायम हो जाए तब इसकी तुड़ाई की जा सकती है। फलों को सावधानी पूर्वक तोड़ना चाहिए, इससे फलों को क्षतिग्रस्त होने से बचाया जा सकता है। तुड़ाई के बाद फलों की छांव वाले स्थान पर भंडारित करें।
- अंतर फसल खेती: हनुमान फल के साथ सब्जियां, दाल, चना, जड़ों वाली फसलें, आम, एवोकाडो, नारियल और कटहल जैसे फसलों को अंतर फसल की तरह लगा सकते हैं। इससे आप कम समय में अतिरिक्त मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं।
क्या आपके क्षेत्र में हनुमान फल की खेती की जाती है? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। कृषि सम्बन्धी अधिक जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट लाइक और शेयर करना न भूलें। जिससे अन्य किसान मित्र भी इस जानकारी का लाभ उठाते हुए हनुमान फल की बेहतर उपज प्राप्त कर सकें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: हनुमान फल कैसे होता है?
A: हनुमान फल की लम्बाई 20-30 सेंटीमीटर तक होती है। इसके फल का औसत वजन 6.5 किलोग्राम तक होता है। फलों का रंग हल्का हरा-पीला होता है। फलों के अंदर काले रंग के कई बीज होते हैं। फलों का स्वाद अनानास और स्ट्रॉबेरी की तरह होता है।
Q: क्या हनुमान फल स्वास्थ्य के लिए अच्छा है?
A: हां, हनुमान फल स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है। इसमें कई तरह के पोषक तत्व मौजूद होते हैं। इसकी पत्तियां कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकने में सहायक है। कमर दर्द, एक्जिमा, इन्फेक्शन, डायबिटीज, सूजन, आदि को ठीक करने में सहायक है। इसके साथ ही यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाने में सहायक है।
Q: सोरसोप का पेड़ कैसा दिखता है?
A: सोरसोप के पेड़ों की ऊंचाई भूमि की सतह से करीब 12-13 फीट ऊपर होती है। इसकी पत्तियां लम्बी होती हैं और पौधों में कई शाखाएं होती हैं।
जारी रखने के लिए कृपया लॉगिन करें
फसल चिकित्सक से मुफ़्त सलाह पाएँ