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29 Aug
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कंटोला के प्रमुख कीट और उनका प्रबंधन (Spiny gourd major insects and their management)


कंटोला, जिसे ककोड़ा या करेला कांटा भी कहा जाता है, की खेती साल में दो बार की जा सकती है और यह किसानों के लिए बहुत लाभदायक साबित होती है। इसके फल स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होते हैं और बाजार में इसकी मांग भी अधिक रहती है। लेकिन, कंटोला की बेहतर पैदावार के लिए इसके पौधों को कीटों से बचाना आवश्यक है। इस लेख में, हम कंटोला की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कुछ प्रमुख कीटों और उनके नियंत्रण के उपायों के बारे में जानेंगे।

कंटोला को नुकसान पहुंचाने वाले प्रमुख कीट (Major insects damaging the Spiny gourd plant)

फल छेदक कीट (Fruit Borer): यह कीट कंटोला के फलों में छेद करके उन्हें अंदर से खाते हैं। मादा कीट फलों में छेद कर अंडे देती है। अंडों से सुंडी निकलकर फलों के गुद्दे को खाना शुरू कर देती है, जिससे फलों का आकार टेढ़ा-मेढ़ा हो जाता है। प्रभावित फलों का रंग भूरे या काले धब्बों के साथ बदल सकता है। फल के अंदर कीट के लार्वा या अंडों के अवशेष भी देखे जा सकते हैं।

नियंत्रण:

  • प्रभावित फलों को तोड़कर तुरंत नष्ट करें और कीट के प्रारंभिक लक्षण दिखने पर प्रभावित भाग को काट कर फेंक दें।
  • इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एस.जी. (जैसे देहात इल्लीगो, धानुका-इ.एम. 1, अदामा-अम्नोन) दवा को प्रति एकड़ खेत में 54 से 88 ग्राम छिड़काव करें।
  • थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% जेड.सी. (जैसे देहात एंटोकिल, सिजेंटा-अलिका, धानुका-जैपैक) दवा को 50-80 मिलीलीटर प्रति एकड़ खेत में प्रयोग करें।
  • फल मक्खी कीट को नियंत्रित करने के लिए प्रति एकड़ खेत में 8-10 फेरोमोन ट्रैप लगाने चाहिए।
  • ज्यादा संक्रमण होने पर क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5% SC (जैसे देहात अटैक, कोराजन, धानुका कवर) को 40 से 50 मिली प्रति एकड़ छिड़काव करें।

लाल भृंग (Red Beetle): यह कीट चमकीले लाल रंग का होता है। यह पत्तियों को उनकी प्रारंभिक अवस्था में खाता है, जिससे पत्तियाँ छलनी जैसी हो जाती हैं। इसका संक्रमण फूलों और फलों में भी दिखाई देता है। इस कीट के कारण कंटोला के पौधों की वृद्धि रुक जाती है।

नियंत्रण:

  • नवंबर में कंटोला की बुवाई करें।
  • खेत को स्वच्छ रखें और खरपतवारों को नष्ट करें ताकि पौधों की वृद्धि में बाधा न आए।
  • सायन्ट्रानिलिप्रोएल 10.26% OD (सिंजेन्टा सिंबश, फतेह) 360 मिली प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें। यह कीटों के प्रभावी नियंत्रण में मदद करता है।
  • फ्लुबेंडियामाइड 8.33% W/W + डेल्टामेथ्रिन 5.56% W/W SC (बायर फेनोस क्विक) 80 से 100 मिलीलीटर प्रति एकड़ छिड़काव करें, ताकि रोगों से सुरक्षा मिल सके।
  • थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% ZC (देहात एंटोकिल, अलिका) 80-100 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें, ताकि कीटों का प्रभाव कम किया जा सके।
  • एसेफेट 50% + इमिडाक्लोप्राइड 1.8% एस.पी. (लांसर गोल्ड) दवा को 300 से 400 ग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करें, ताकि कीटों को नियंत्रित किया जा सके।
  • डाइमेथोएट 30% ईसी (टैफगोर, रोगोर) दवा को 300 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें, ताकि पौधों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

सफेद मक्खी (Whitefly): सफेद मक्खी पौधों का रस चूस कर फसल को नुकसान पहुंचाती है। यह कीट विभिन्न रोगों को एक पौधे से दूसरे पौधे में फैलाने का कार्य करता है, जिससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सफेद मक्खियां पत्तियों के रस पर फ़ीड करती हैं, जिससे पत्तियां पीली हो जाती हैं और अंततः मर सकती हैं। ये मक्खियां हनीड्यू नामक चिपचिपे पदार्थ का उत्सर्जन करती हैं, जो चींटियों को आकर्षित कर सकती हैं और पत्तियों पर कवक के विकास का कारण बन सकती हैं। गंभीर संक्रमण से पौधों में अवरुद्ध विकास और कम उपज हो सकती है।

नियंत्रण:

  • चिपचिपे पीले कार्ड (Light Trap) का इस्तेमाल करके भी सफेद मक्खियों की संख्या को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • खेत में नियमित रूप से निरीक्षण करें और सफेद मक्खियों के शुरुआती लक्षण दीखते ही उन्हें या संक्रमित हिस्सों को काट कर फेंक दें।
  • नीम का तेल या नीम की खली का अर्क युक्त जैविक कीटनाशकों का उपयोग करें।
  • थियामेथोक्साम 25% डब्ल्यू.जी. (देहात एसीयर, धानुका-अरेवा) कीटनाशक को प्रति एकड़ खेत में 40 से 80 ग्राम कंटोला में छिड़काव करें।
  • इमिडाक्लोप्रिड 70% WG (बायर एडमायर, देहात कॉन्ट्रोपेस्ट, सेफेक्स एडमिट) दवा प्रति लीटर पानी में 1 मिलीलीटर मिला कर फसल पर स्प्रे करें।

फल मक्खी (Fruit Fly): फल मक्खी एक छोटा कीट है जो मुलायम फलों में छेद करके अंडे देती है। इन अंडों से निकली सुंडी फल को अंदर से खराब कर देती है। जहां कीट अंडे देती है, वह हिस्सा सड़ जाता है, जिससे फलों की गुणवत्ता घट जाती है। फल मक्खी के कारण छोटे फलों में जल्दी सड़न होने लगती है, जो पैदावार को प्रभावित करता है।

नियंत्रण:

  • नर मक्खियों को रोकने के लिए प्रति एकड़ 5-6 फेरोमोन ट्रैप लगाएं।
  • हरे-पीले स्टिकी ट्रैप की 10-12 संख्या प्रति एकड़ लगाएं, ताकि फल मक्खियां आकर्षित हों और नियंत्रित हो सके।
  • जल्दी पकने वाली किस्में चुनें, क्योंकि ये कम प्रभावित होती हैं।
  • प्रभावित फलों को इकट्ठा करके नष्ट करें, ताकि कीट की संख्या कम हो सके।
  • सायनट्रानिलिप्रोल 10.26% w/w OD (एफएमसी बेनेविया) का 300 मिली को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़कें।
  • डेल्टामेथ्रिन 2.8% EC (बायर डेसिस 2.8) को 150 मिली प्रति एकड़ की दर से 150-200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें।

क्या आप भी कंटोला में कीटों से परेशान हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (Frequently Asked Questions - FAQs)

Q: कंटोला की खेती कैसे की जाती है?

A: कंटोला की खेती बलुई-मिट्टी मिट्टी और 20-30°C तापमान में की जाती है। खेत को अच्छे से तैयार करें, उच्च गुणवत्ता वाले बीज 1-2 सेंटीमीटर गहराई में बोएं, और 30-40 सेंटीमीटर की दूरी पर रोपण करें। गर्मी में बुवाई करें, नियमित सिंचाई करें, और उर्वरक का सही उपयोग करें। 3-4 महीने में फसल तैयार होती है, और पूरी तरह से विकसित होने पर कटाई की जाती है।

Q: कंटोला में की खेती कब की जाती है?

A: कंटोला की बुवाई मुख्यतः गर्मी के मौसम में की जाती है, सामान्यतः फरवरी से मई के बीच। यह समय ऐसा होता है जब तापमान और जलवायु पौधों की वृद्धि के लिए अनुकूल होते हैं। कटाई का समय अगस्त से अक्टूबर के बीच होता है, जब फल पूरी तरह से विकसित और पक जाते हैं। इस समय के दौरान फसल की कटाई की जाती है ताकि अधिकतम उपज प्राप्त की जा सके।

Q: भारत में कंटोला कहां-कहां उगाया जाता है?

A: भारत में कंटोला की खेती मुख्यतः मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, और गुजरात में की जाती है। इन क्षेत्रों की जलवायु और मिट्टी कंटोला के लिए अनुकूल होती हैं, जिससे फसल की अच्छी पैदावार प्राप्त की जाती है।

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