सरसों: खेत में सफेद होकर टूटते तने दे रहे हैं इस बड़ी बीमारी का संकेत

सरसों भारत में उगाई जाने वाली तिलहन फसलों में से एक प्रमुख फसल है, जिसमें बुवाई से लेकर कटाई तक कई प्रकार के बीज जनित एवं फफूंद जनित रोगों का प्रकोप देखने को मिलता है। फंफूद जनित रोगों में तना सड़न रोग सरसों की बड़ी समस्याओं में से एक है। यह एक कवक जनित रोग है जो सरसों के अलावा कई अन्य फसलों में भी “स्क्लेरोटिनिया” फफूंद के कारण देखने को मिलता है। इसके साथ ही तापमान में गिरावट एवं खेत व पत्तियों में नमी इस रोग की उग्रता को बढ़ावा देती है।
रोग के लक्षण
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रोग की शुरुआती अवस्था में पत्तियां मुरझाकर झुक जाती हैं। पत्तियां गिरने के साथ ही पौधों का सूखना इस बीमारी के प्रमुख लक्षण हैं।
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तने के शिखर भाग पर कवक की सफ़ेद रूई जैसी परत दिखाई देती है। तने के उपरी भाग पर संक्रमण से तना गलकर सफ़ेद हो जाता है एवं कुछ दिनों के पश्चात गलकर टूट जाता है।
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खेत में रोग ग्रसित पौधे सफ़ेद होकर सूखने के कारण आसानी से पहचाने जा सकते हैं।
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रोगी पौधों के तनों को चीरने पर उसमें काले रंग के रोगाणु के कवक देखने को मिलते हैं, जो कभी -कभी तनों के बाहरी भाग पर भी देखे जा सकते हैं।
रोग के रोकथाम एवं प्रबंधन
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खेत से रोग ग्रसित पौधों को निकालकर नष्ट कर दें एवं रोगी शाखाओं की छंटाई करें।
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तना सड़न रोग के प्रति संवेदनशील फसलों का चक्रीकरण करें।
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खेत में जल निकासी के उचित प्रबंधन रखें।
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