सरसों की फसल के प्रमुख रोग एवं उनका प्रबंधन
सरसों की फसल में कई तरह के रोग होते हैं। जिनमें पत्ती झुलसा रोग, आल्टरनरिया (Alternaria), तना सड़न रोग, अंगमारी रोग आदि कई रोग शामिल हैं। इस पोस्ट के माध्यम से सरसों में लगने वाले रोग एवं बचाव के उपाय देख सकते हैं।
कुछ प्रमुख रोग
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आर्द्र गलन रोग : इस रोग के प्रकोप से भूमि के अंदर वाले भाग सबसे पहले प्रभावित होते हैं। इसके साथ ही पौधों के तने भी कमजोर हो जाते हैं और पौधा सूख कर गिरने लगता है। इस रोग से बचने के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 8 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर से उपचारित करें। रोग के लक्षण दिखाई देने पर संक्रमित पौधों को नष्ट कर दें। खड़ी फसल में रोग के लक्षण दिखने पर प्रति एकड़ जमीन में 500 ग्राम मैंकोज़ेब 75 प्रतिशत का छिड़काव करें। खेत में जल जमाव न होने दें।
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आल्टरनरिया झुलसा रोग : इस रोग के कारण 70 प्रतिशत तक फसल नष्ट हो सकती है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे बनने लगते हैं। रोग बढ़ने पर यह धब्बे तने एवं फलियों पर भी नजर आने लगते हैं। इस रोग को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित पौधों को नष्ट कर दें। इस रोग से बचने के लिए मैंकोज़ेब 0.2 प्रतिशत का छिड़काव करें।
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सफेद गेरुई रोग : इस रोग से करीब 55 प्रतिशत तक फसल नष्ट हो सकती है। यह रोग फफूंद के कारण होता है। इस रोग के होने पर पत्तियों की निचली सतह पर सफेद या पीले रंग के फफोले बन जाते हैं। पौधों के विकास में भी बाधा आती है। इससे बचने के लिए 0.2 प्रतिशत रिडोमिल का छिड़काव करें।
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तना सड़न रोग : इस रोग से सरसों की फसल को सर्वाधिक नुकसान पहुंचता है। इस रोग से प्रभावित पौधों के तने पर धब्बे नजर आने लगते हैं। रोग बढ़ने पर पौधों का तना सड़ जाता है। इस रोग से बचने के लिए खेत में जल जमाव न होने दें। बुवाई के लिए रोग रहित स्वस्थ बीजों का चयन करें। प्रति लीटर पानी में 3 ग्राम कार्बेन्डाज़िम 50 प्रतिशत डब्ल्यू.पी या मैंकोज़ेब 75 प्रतिशत डब्ल्यू.पी मिलाकर छिड़काव करें।
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