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सरसों की फसल में सिंचाई प्रबंधन
भारत के लगभग सभी घरों में सरसों की तेल का प्रयोग सदियों से किया जा रहा है। इसके अलावा सरसों के दानों का प्रयोग कई व्यंजनों को बनाने में किया जाता है। पीली सरसों हो या काली सरसों दोनों की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए सिंचाई एक महत्वपूर्ण कार्य है। सही समय पर सिंचाई करने से हम उच्च गुणवत्ता की फसल प्राप्त कर सकते हैं। अगर आपको सरसों की फसल में सिंचाई प्रबंधन की जानकारी नहीं है तो यहां से आप इसकी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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सरसों की फसल को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
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अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 4 से 5 सिंचाई पर्याप्त है।
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बुवाई के तुरंत बाद खेत में पहली सिंचाई करनी चाहिए। इससे बीज के अंकुरण में आसानी होती है।
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बुवाई के करीब 25 से 30 दिनों बाद जब पौधों में शाखाएं निकलने लगती हैं तब दूसरी सिंचाई करनी चाहिए।
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पौधों में फूल निकलने के समय तीसरी सिंचाई करें। सामान्य तौर पर बुवाई के लगभग 45 से 50 दिनों बाद पौधों में फूल निकलने शुरू हो जाते हैं।
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फलियां बनते समय यानि बीज की बुवाई के 70 से 80 दिनों बाद चौथी सिंचाई करें।
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पांचवीं सिंचाई आप दानों के पकने के समय कर सकते हैं।
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सरसों की फसल में फव्वारा विधि के द्वारा सिंचाई करें।
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जल की कमी वाले क्षेत्रों में 1 से 2 बार सिंचाई कर के भी सरसों की उन्नत फसल प्राप्त की जा सकती है।
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बारानी क्षेत्रों में अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए वर्षा ऋतू के समय खेत में 2 से 3 बार अच्छी तरह जुताई करें और गोबर की खाद का प्रयोग करें। ऐसा करने से मिट्टी में जल धारण करने की क्षमता में वृद्धि होती है।
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