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6 Nov
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चिरायता की खेती (Swertia farming)


चिरायता, जिसे कालमेघ भी कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण औषधीय फसल है जो अपने कड़वे स्वाद और चिकित्सीय गुणों के कारण जानी जाती है। इसे भारतीय आयुर्वेद में विभिन्न बीमारियों के इलाज में सदियों से प्रयोग किया जा रहा है। खासकर ज्वर, पाचन और लीवर संबंधी समस्याओं के उपचार में इसका उपयोग व्यापक रूप से होता है। इसका औषधीय महत्व किसानों को एक नयी आर्थिक संभावनाओं की ओर अग्रसर करता है। इस लेख में चिरायता की खेती की पूरी जानकारी मिलेगी।

कैसे करें चिरायता की खेती? (How to cultivate swertia?)

  • मिट्टी (Soil): चिरायता की खेती के लिए भुरभुरी, बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है, जिसमें अच्छी जल निकासी होनी चाहिए। मिट्टी में रेत की उचित मात्रा होने से पौधों की जड़ों को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं और नमी का संतुलित प्रबंधन हो पाता है। इसके लिए जैविक खाद, जैसे सड़ी हुई गोबर की खाद, का उपयोग बेहद लाभकारी रहता है, जिससे मिट्टी में पोषण स्तर अच्छा बना रहता है।
  • जलवायु (Climate): चिरायता ठंड और बर्फबारी वाले क्षेत्रों की फसल है और यह उप-शीतोष्ण जलवायु में अधिक उपयुक्त मानी जाती है। लगभग 100 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा इस फसल के लिए पर्याप्त होती है। खासकर हिमालयी क्षेत्रों में, जहाँ का वातावरण ठंडा रहता है, चिरायता की खेती अत्यधिक सफल होती है।
  • पौध तैयार करना (Plant Preparation): बीजों की बुवाई मई-जून के माह में की जाती है। इसके बाद, 3-4 महीने में पौधे तैयार हो जाते हैं, जिन्हें खेत में 45-60 सेंटीमीटर की दूरी पर पंक्तियों में रोपित किया जाता है। पंक्तियों के बीच भी लगभग 60 सेंटीमीटर की दूरी रखी जाती है, जिससे पौधों को पर्याप्त जगह मिलती है और उनका विकास सही ढंग से हो पाता है। इस दूरी से पौधों को पोषण और सूर्य की रोशनी अच्छी तरह से मिलती है, जिससे उनकी वृद्धि बेहतर होती है।
  • खेत की तैयारी (Field Preparation): चिरायता की खेती के लिए खेत की सही तैयारी करना आवश्यक है। पहले खेत की अच्छी तरह सफाई कर, मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई की जाती है और इसके बाद खेत को पानी से नम किया जाता है। इसके बाद, खेत में हेरो चलाकर भूमि को समतल कर दिया जाता है और इसमें 3.75 टन केंचुआ खाद और 2 टन वन की घास-फूस मिलाई जाती है। इससे मिट्टी को आवश्यक पोषक तत्व प्राप्त होते हैं और पौधों की अच्छी वृद्धि होती है। खेत को सही तरीके से तैयार करने के बाद पौधों की रोपाई के लिए क्यारियाँ बनाई जाती हैं।
  • प्रवर्धन की विधि (Propagation Method): चिरायता का प्राकृतिक प्रसार फलियों के कटने के बाद बीजों के बिखराव से होता है, लेकिन औषधीय खेती में इसे नर्सरी में तैयार किया जाता है। चिरायता के बीज छोटे होते हैं और लगभग 5-6 महीने की सुषुप्तावस्था में रहते हैं। एक हेक्टेयर की फसल के लिए तीन 10 x 2 मीटर की क्यारियों की आवश्यकता होती है। प्रति एकड़ 20,000 पौधे लगाए जाते हैं। क्यारियों में 80 ग्राम बीज प्रति एकड़ हल्की मिट्टी के साथ मिलाकर बोए जाते हैं और हल्की मिट्टी से ढक दिए जाते हैं। बीज अंकुरित होने के बाद पौधों को छाया में उगाना चाहिए, ताकि गर्मी के महीनों में अत्यधिक तापमान से उनका बचाव हो सके।
  • पौधों की रोपाई (Transplanting of Plants): तैयार पौधों को जून के दूसरे पखवाड़े से लेकर जुलाई तक खेत में रोपित किया जा सकता है। सामान्यतः, पौधों की रोपाई 30-45 सेंटीमीटर की दूरी पर की जाती है, जिससे उन्हें बढ़ने के लिए पर्याप्त स्थान मिलता है। बीजों की बुवाई वसंत ऋतु में की जाती है, जब तापमान 10° C से अधिक नहीं होता, जो पौधों के विकास के लिए उपयुक्त होता है।
  • खाद और उर्वरक (Fertilizer Management): बेहतर उत्पादन के लिए 4 टन सड़ी गोबर की खाद का उपयोग किया जा सकता है। औषधीय पौधों की खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता है। रासायनिक उर्वरकों की जगह जैविक खाद जैसे फार्म यार्ड खाद (FYM), वर्मी-कंपोस्ट, हरी खाद आदि का उपयोग कर सकते हैं। बीमारियों से बचाव के लिए नीम (गिरी, बीज और पत्तियां), चित्रकमूल, धतूरा, गौ-मूत्र आदि से जैव-कीटनाशक तैयार करके उपयोग किया जा सकता है, जिन्हें अकेले या मिश्रण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • खरपतवार नियंत्रण (Weed Management): फसल की उचित वृद्धि के लिए दो निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। मानसून के दौरान, चिरायता की फसल इतनी घनी हो जाती है कि यह जमीन को ढक लेती है, जिससे खरपतवार दब जाते हैं और निराई-गुड़ाई की अधिक आवश्यकता नहीं होती।
  • सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management): चिरायता की फसल में सिंचाई करते समय जलभराव से बचना अत्यंत आवश्यक है। बारिश के मौसम में खेत के चारों ओर जल निकासी की व्यवस्था करना लाभदायक रहता है। पौधों को स्थिर नमी से बचाने के लिए गर्मी और ठंड के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता होती है। गर्मी के मौसम में एक से दो दिन के अंतराल पर और सर्दियों में सप्ताह में एक बार सिंचाई उपयुक्त मानी जाती है। पौधों को तब तक सिंचाई दी जाती है जब तक वे फूल न देने लगे।
  • रोग नियंत्रण (Disease Control): चिरायता के पौधों का स्वाद अत्यधिक कड़वा होने के कारण यह कीटों और रोगों से काफी हद तक सुरक्षित रहता है। इससे पौधों को कीटों से होने वाली क्षति नहीं होती। फिर भी, पौधों को स्वस्थ रखने के लिए समय-समय पर गुड़ाई करके खरपतवारों से बचाना चाहिए ताकि उनकी वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।
  • कटाई (Harvesting): चिरायता की फसल 6-8 महीने में कटाई के लिए तैयार हो जाती है, जो अक्टूबर से नवंबर के बीच होती है। इस समय पौधों पर कैप्सूल पकने के बाद उन्हें एकत्रित किया जाता है।
  • उत्पादन (Yield): चिरायता का प्रति एकड़ खेत में लगभग 15 से 20 क्विंटल उत्पादन होता है।
  • भंडारण (Storage): बीजों को सूखने के बाद हवा बंद डिब्बों या जूट के बैग में सुरक्षित रूप से भंडारित किया जाता है। कटाई के बाद पौधों को छायादार स्थान पर सुखाया जाता है ताकि उनकी गुणवत्ता और औषधीय गुण बरकरार रखें। इन बीजों का उपयोग आगामी फसल के लिए किया जा सकता है।

क्या आप भी चिरायता की खेती करना चाहते हैं? अपने अनुभव और विचार हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'बागवानी फसलें' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आई हो तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: चिरायता का पेड़ कैसा होता है?

A: चिरायता का पेड़ झाड़ीदार, लगभग 1-1.5 मीटर ऊंचा होता है। इसके हरे पत्ते लंबे, तीखे स्वाद वाले होते हैं, और सफेद या हल्के हरे फूल होते हैं। यह औषधीय पौधा ठंडे, पहाड़ी क्षेत्रों में अच्छी तरह बढ़ता है।

Q: चिरायता के पौधे कैसे उगाए जाते हैं?

A: चिरायता की नर्सरी में तैयार रोपाई पहाड़ी जलवायु और कार्बनिक मिट्टी में की जाती है। पौधों को 1-1.5 फीट की दूरी पर लगाकर, नियमित सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण से इनकी अच्छी फसल मिलती है।

Q: कुटकी और चिरायता में क्या अंतर है?

A: कुटकी और चिरायता दोनों औषधीय पौधे हैं। कुटकी की जड़ पाचन के लिए, जबकि चिरायता बुखार और पाचन रोगों में उपयोगी है। कुटकी छोटा होता है, जबकि चिरायता 1-1.5 मीटर ऊंचा होता है।

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