परम्परागत कृषि विकास योजना (Traditional Agricultural Development Scheme)
परम्परागत कृषि विकास योजना (PKVY) को राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA) के तहत 2015-16 में भारत सरकार द्वारा जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया था। कृषि और सहयोग विभाग ने इस योजना के लिए एक रोडमैप तैयार किया है, इसमें किसानों को 50 एकड़ के क्लस्टर में संगठित कर जैविक खेती अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। योजना के तहत, सहभागिता गारंटी योजना (PGS) प्रमाणन के माध्यम से किसान अपनी उत्पादन प्रक्रिया को प्रमाणित कर जैविक बाजार तक पहुंच सकते हैं। शुरुआत में यह योजना 10 जिलों में लागू की गई है, जहां कुल 220 क्लस्टर बनाए गए हैं, जिनमें 6913 किसान और 10935 एकड़ (4428.675 हेक्टेयर) क्षेत्र शामिल हैं।
परम्परागत कृषि विकास योजना के मुख्य उद्देश्य (Main objectives of Traditional Agriculture Development Scheme)
परम्परागत कृषि विकास योजना (PKVY) के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं:
- भारत में किसानों के बीच जैविक खेती को बढ़ावा देना और रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को कम करना।
- जैविक खेती प्रथाओं को अपनाकर मिट्टी की उर्वरता और उत्पादकता बढ़ाना।
- स्थायी कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना जो पर्यावरण के अनुकूल हैं और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में मदद करते हैं।
- जैविक खेती को बढ़ावा देकर किसानों की आय में सुधार करना, जिसका बाजार मूल्य अधिक है।
- जैविक खेती के लाभों के बारे में किसानों में जागरूकता पैदा करना और उन्हें इसे अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना।
- जैविक खेती प्रथाओं को अपनाने के लिए किसानों को वित्तीय सहायता और तकनीकी जानकारी प्रदान करना।
- बड़े पैमाने पर जैविक खेती को अपनाने के लिए किसान समूहों या समूहों के गठन को बढ़ावा देना।
- कुल मिलाकर, परम्परागत कृषि विकास योजना का उद्देश्य स्थायी कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना और भारत में किसानों की आजीविका में सुधार करना है।
पात्रता (Eligibility) :
- इस योजना का लाभ उठाने के लिए आवेदक को भारत का स्थायी निवासी होना आवश्यक है।
- इस योजना में आवेदन करने के लिए आवेदक का किसान होना भी जरूरी है।
- आवेदक की उम्र 18 वर्ष से अधिक होनी चाहिए.
आवश्यक दस्तावेज (Required Documents) : परम्परागत कृषि विकास योजना में आवेदन करने के लिए किसानों को इन जरूरी दस्तावेजों की आवश्यकता होती हैं:
- आधार कार्ड
- निवास प्रमाण पत्र
- आय प्रमाण पत्र
- आयु प्रमाण पत्र
- राशन कार्ड
- सक्रिय मोबाइल नंबर
- पासपोर्ट साइज फोटो
आवेदन प्रक्रिया (Application Process) :
- सबसे पहले परम्परागत कृषि विकास योजना की आधिकारिक वेबसाइट पर जाएं।
- फिर वेबसाइट का होमपेज खुलने के बाद, 'अप्लाई नाउ' विकल्प पर क्लिक करें।
- अब आपके सामने आवेदन पत्र खुलेगा।
- आवेदन पत्र में मांगी गई सभी आवश्यक जानकारी भरें, जैसे कि नाम, मोबाइल नंबर, ईमेल आईडी आदि।
- सभी आवश्यक दस्तावेज स्कैन कर अपलोड करें।
- सभी जानकारी को ध्यानपूर्वक जांचें और फिर 'सब्मिट' बटन पर क्लिक करें।
परंपरागत कृषि विकास योजना में मिलने वाली धनराशि (Funds received under Traditional Agriculture Development Scheme): परंपरागत कृषि विकास योजना (Paramparagat Krishi Vikas Yojana) के माध्यम से जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। इस योजना के तहत किसानों को 36 माह यानी 3 साल के लिए कुल 50,000 रुपये की आर्थिक सहायता दी जाती है।
- जैविक कीटनाशक, जैविक उर्वरक और बीजों के लिए प्रति हेक्टेयर 31,000 रुपये वितरित किया गया है।
- मूल्यवर्धन और विपणन के लिए प्रति हेक्टेयर 8,800 रुपये वितरित किया गया है।
- इस योजना के लिए पिछले 4 सालों में लगभग 1,197 करोड़ रुपये की धनराशि खर्च की जा चुकी है।
यह सहायता राशि किसानों को जैविक खेती के संसाधनों को जोड़ने और जैविक उत्पादों को बाजार तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: परम्परागत कृषि विकास योजना की शुरुआत कब हुई?
A: परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) को भारत सरकार द्वारा 2015 में राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (एनएमएसए) के तहत मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (एस.एच.एम) योजना के उप-घटक के रूप में शुरू किया गया था। यह योजना भारत में किसानों के बीच जैविक खेती को बढ़ावा देने और मिट्टी के स्वास्थ्य और उत्पादकता में सुधार के लिए शुरू की गई थी।
Q: परम्परागत खेती क्या है?
A: कृषि की ऐसी प्राचीन शैली जिसमें स्वदेशी ज्ञान, पारंपरिक उपकरण, प्राकृतिक संसाधनों, जैविक उर्वरक और किसानों की सांस्कृतिक मान्यताओं का गहन उपयोग हो उसे पारंपरिक कृषि कहते हैं।
Q: पारंपरिक कृषि का उद्देश्य क्या है?
A: पारंपरिक कृषि का मुख्य उद्देश्य स्थायी और कम लागत वाले तरीकों से किसानों के परिवार और स्थानीय समुदाय के लिए भोजन का उत्पादन करना है। यह खेती प्राकृतिक संसाधनों और स्थानीय आदान-प्रदान पर आधारित है, जो इसे सस्ता और पर्यावरण के अनुकूल बनाता है। इसके अलावा, यह जैव विविधता को भी संरक्षित करता है और भारत की कई समुदायों की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
Q: पारंपरिक कृषि का क्या प्रभाव है?
A: परम्परागत कृषि विकास योजना संसाधनों की कमी पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग किए बिना, पारंपरिक खेती से समय के साथ मिट्टी के पोषक तत्वों की कमी हो सकती है। सीमित उत्पादकता आधुनिक औद्योगिक खेती की तुलना में पारंपरिक तरीकों से कम पैदावार हो सकती है।
Q: पारंपरिक खेती के फायदे और नुकसान क्या हैं?
A: परम्परागत कृषि विकास योजना के तहत पारंपरिक खेती के लाभों में बेहतर मिट्टी की उर्वरता, कार्बन पृथक्करण और जैव विविधता रखरखाव शामिल हैं। ये खेती न केवल खाद्य का उत्पादन करती है बल्कि भारत के कई समुदायों की सांस्कृतिक विरासत का भी हिस्सा है। नुकसानों में स्थानांतरित कृषि में काटने और जलाने की गतिविधियों के नकारात्मक प्रभाव शामिल हैं। पारंपरिक खेती के तरीके कम उत्पादकता, सीमित बाजार पहुँच, और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करते हैं। इसके अलावा, ये श्रम-गहन होते हैं और आधुनिक तकनीक के उपयोग की कमी के कारण कम उत्पादकता का कारण बनते हैं।
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