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कल्पना
कृषि विशेषयज्ञ
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तरबूज में बुवाई और पोषक तत्व प्रबंधन का सही समय

फरवरी का महीना आते ही मैदानी क्षेत्रों में तरबूज की बुवाई जोर पकड़ने लगती है और नदियों के किनारे वाले क्षेत्रों में तरबूज की क्यारियां तैयार कर ली जाती हैं। बीज के बेहतर अंकुरण के लिए गर्म मौसम उपयुक्त माना गया है। बीज 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान और सीधी धूप पड़ने वाले क्षेत्रों में तेजी से विकास करते हैं। इसी के विपरीत बादल या बारिश जैसे मौसम फसल की बढ़वार को पूरी तरह से रोकने का काम करते हैं, जिससे बचने के लिए फसल को मानसून से पहले ही काट लिया जाता है।

तरबूज की खेती बंजर और रेतीली भूमि में भी आसानी से की जा सकती है। अन्य फसलों की तरह ही तरबूज में खेत की तैयारी एवं पोषक तत्व प्रबंधन का भी एक समान महत्व है जिसे बुवाई के साथ अपनाया जाना चाहिए। तरबूज के बीजों को सामान्य धूप में सुखाकर बोया जाता है। किसानों को किसी भी प्रकार से गीले बीज बोने से बचना चाहिए, यह प्रथा तरबूज जैसी फसल के लिए फफूंद युक्त रोगों और पैदावार में कमी का एक बड़ा कारण बन सकती है। तरबूज की बीज बुवाई के लिए कई प्रणालियां मौजूद हैं जिनसे जुड़ी अधिक जानकारी आप आगे देख सकते हैं।

बीज बुवाई

खेत को अच्छी तरह से तैयार करने के बाद गोबर खाद एवं पोषक तत्व की पूर्ति की आवश्यकता होती है। बुवाई के लिए प्रति एकड़ खेत के लिए 1.5-2 किलोग्राम बीज की आवश्यकता  होती हैं। प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करने के लिए ट्राइकोडर्मा विरडी की 4 ग्राम मात्रा पर्याप्त होती है। किसान बीज बुवाई करते समय ध्यान दें कि बीज को अधिक गहराई में नहीं बोना चाहिए, ऐसा करना फसल में बीज अंकुरण को एक बड़े स्तर तक प्रभावित कर सकता है।

बुवाई विधियां

नाली प्रणाली- इस विधि में मेड़ के दोनों ओर बुवाई की जाती है और 3-4 बीज को एक साथ 60 से 90 सेंटीमीटर की दूरी पर बोया जाता है।

गड्ढे में बुवाई- इस विधि में 60 x 60 x 60 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे 2 से 3.5 x 0.6 से 1.2 मीटर की दूरी पर खोदे जाते हैं। प्रति गड्ढा 3 से 4 बीज और गोबर की खाद का प्रयोग किया जाता है।

पहाड़ी विधि- मैदानी इलाकों में रोपाई के लिए 30 x 30 x 30 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे 1 से 1.5 मीटर की दूरी पर बनाए जाते हैं। गड्ढों को मिट्टी और गोबर की खाद से समान मात्रा में गड्ढे के ऊपर एक छोटी पहाड़ी बनने तक भरा जाता है। मिट्टी एवं गोबर से बने इस टीले पर 2 बीज प्रति पहाड़ी लगाए जाते हैं।

पोषक प्रबंधन

तरबूज के लिए उर्वरक की अनुशंसित दर, मिट्टी के प्रकार, उत्पादन की प्रणाली, रोपण, पिछले प्रबंधन और मिट्टी के पोषक तत्वों के परिणामों के आधार पर भिन्न होती है। सामान्य तौर पर, तरबूजों को प्रति एकड़ 36 से 54 किलोग्राम यूरिया की आवश्यकता होती है, जो कि फसल में बुवाई से कटाई तक सही समय अंतराल पर फसल में डाली जाती है। इसके अलावा 100 किलो सिंगल सुपर फास्फेट और 25 किलो पोटाश की कुल मात्रा भी फसल में डाली जाती है। उर्वरक की इस मात्रा के लिए फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और यूरिया का एक तिहाई हिस्सा (1/3) बिजाई से पहले डालें, वहीं यूरिया की बची हुई मात्रा शुरुआती विकास के समय मिट्टी में अच्छी तरह मिलाकर डालने का प्रावधान है। किसान उर्वरक छिड़काव के समय पर ध्यान दें कि उत्पाद का संपर्क किसी भी प्रकार से पत्तियों पर नहीं होना चाहिए।

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ऊपर दी गयी जानकारी पर अपने विचार और कृषि संबंधित सवाल आप हमें नीचे कमेंट बॉक्स में लिखकर भेज सकते हैं। यदि आपको आज के पोस्ट में दी गई जानकारी पसंद आई हो तो इसे लाइक करें और अन्य किसान मित्रों के साथ शेयर करें। जिससे अधिक से अधिक किसान इस जानकारी का लाभ उठा कर तरबूज में आवश्यक एवं सही पोषण प्रबंधन कर सकें। कृषि संबंधित ज्ञानवर्धक और रोचक जानकारियों के लिए जुड़े रहें देहात से।


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