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विभा कुमारी
कृषि विशेषयज्ञ
31 July
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तुलसी की खेती (Cultivation of basil)


तुलसी में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। तुलसी की पत्तियों का सेवन करने से खांसी, जुकाम, बुखार आदि रोगों में राहत मिलती है। इससे कई आयुर्वेदिक दवाएं तैयार की जाती हैं। आयुर्वेदिक दवाओं की बढ़ती मांग के कारण कई बड़ी फार्मा कंपनियां तुलसी की अनुबंध खेती (कान्ट्रेक्ट फार्मिंग) करा रही हैं। बात करें किसानों के मुनाफे की तो तुलसी की व्यावसायिक खेती करने वाले किसान कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। तुलसी के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यक नहीं होती है और पौधों में कीटों का प्रकोप भी बहुत कम होता है। इसलिए इसकी खेती में लागत कम होती है। तुलसी की खेती से पहले इससे जुड़ी कुछ आवश्यक जानकारियां होना जरूरी है। यदि आप तुलसी की खेती करना चाहते हैं तो इससे जुड़ी जानकारियां यहां से प्राप्त करें।

कैसे करें तुलसी की खेती? (How to cultivate basil?)

  • मिट्टी: इसकी खेती, कम उपजाऊ जमीन में पानी की निकासी का उचित प्रबंध हो, अच्छी होती है। बलुई दोमट जमीन इसके लिए बहुत उपयुक्त होती है।
  • जलवायु: इसके लिए उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्ण कटिबंधीय दोनों तरह की जलवायु उपयुक्त होती है।
  • बुवाई का समय: बीज की बुवाई के लिए अप्रैल-मई का महीना सबसे उपयुक्त है। बुवाई के बाद 1 से 2 सप्ताह में बीज अंकुरित होने लगते हैं। वर्षा का मौसम पौधों की वृद्धि के लिए सर्वोत्तम है। नर्सरी में तैयार किए गए पौधों की जून-जुलाई महीने में मुख्य खेत में रोपाई करें। इसके अलावा अक्टूबर-नवंबर महीने में भी पौधों की रोपाई कर सकते हैं।
  • बीजदर: प्रति एकड़ भूमि में खेती करने के लिए 80 से 120 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
  • किस्में: तुलसी की कई प्रमुख किस्में हैं। बेसिल तुलसी (फ्रेंच बेसिल) और स्वीट फ्रेंच बेसिल (बॉम्बे तुलसी) मसाले और औषधीय गुणों के लिए उगाई जाती हैं। कर्पूर तुलसी अपनी विशिष्ट खुशबू के लिए प्रसिद्ध है, जबकि काली तुलसी के औषधीय गुणों के लिए जानी जाती है। वन तुलसी (राम तुलसी) धार्मिक और पारंपरिक अनुष्ठानों में उपयोगी होती है। जंगली तुलसी जंगलों में प्राकृतिक रूप से पाई जाती है और आयुर्वेदिक उपचारों में उपयोग होती है। होली बेसिल के अंतर्गत श्री तुलसी पूजा में अधिक प्रयोग होती है, जबकि श्यामा तुलसी विशेष औषधीय गुणों के लिए जानी जाती है।
  • पौधरोपण: बुवाई के बाद 1 से 2 सप्ताह में बीज अंकुरित होने लगते हैं। वर्षा का मौसम पौधों की वृद्धि के लिए सर्वोत्तम है। नर्सरी में तैयार किए गए पौधों की जून-जुलाई महीने में मुख्य खेत में रोपाई करें। इसके अलावा, अक्टूबर-नवंबर महीने में भी पौधों की रोपाई कर सकते हैं। पौधों की रोपाई लाइन में करें। सभी लाइनों के बीच 60 सेंटीमीटर की दूरी रखें और पौधों से पौधों के बीच 30 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए।
  • खाद एवं उर्वरक: तुलसी में कई औषधीय गुण होते हैं। उच्च गुणवत्ता की फसल प्राप्त करने के लिए रासायनिक खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग करने से बचें। उर्वरकों की आवश्यकता हो तो जैविक उर्वरकों का प्रयोग करें। प्रति एकड़ खेत में 10 से 15 टन अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद या 5 टन कम्पोस्ट खाद का प्रयोग करें। अधिक गर्म मौसम एवं अधिक ठंड के मौसम में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • सिंचाई: गर्मी के मौसम में 1 महीने में 2 से 3 बार सिंचाई करें। वर्षा होने पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। ठंड के मौसम में आवश्यकता होने पर ही सिंचाई करें। फसलों की कटाई से 10 दिन पहले सिंचाई का कार्य बंद कर दें। गर्मियों में, एक महीने में 3 सिंचाई करें और बरसात के मौसम में, सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। एक साल में 12-15 सिंचाई करनी चाहिए। पहली सिंचाई रोपण के बाद करें और दूसरी सिंचाई नए पौधों के स्थिर होने पर करें। 2 सिंचाई करनी आवश्यक है और बाकी की सिंचाई मौसम के आधार पर करें। बारिश के मौसम में जलभराव की समस्या जहां होती है उस क्षेत्र में पानी निकलना जरुरी होता है।
  • खरपतवार प्रबंधन: इसकी पहली निराई-गुड़ाई रोपाई के एक माह बाद करनी चाहिए। दूसरी निराई-गुड़ाई पहली निराई के 3-4 सप्ताह बाद करनी चाहिए। बड़े क्षेत्र में गुड़ाई ट्रैक्टर से की जा सकती है। इसकी पहली निराई गुड़ाई रोपाई के एक माह  बाद करनी चाहिए। दूसरी
  • निराई - गुड़ाई पहली निराई के 3-4 सप्ताह बाद करनी चाहिए। बड़े क्षेत्रों
  • में गुड़ाई ट्रैक्टर से की जा सकती है।
  • रोग एवं कीट प्रबंधन (Disease and Pest Management): तुलसी की खेती में कुछ प्रमुख रोग और कीट होते हैं जो फसलों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। पत्ता लपेट सुंडी , पत्ती धब्बा रोग , झुलसा रोग और जड़ गलन जैसे रोगों और कीटों का प्रकोप होता है इससे बचाव के लिए उचित प्रबंधन और देखभाल आवश्यक है, जैसे कि अच्छी जल निकासी, फसल चक्र, और जैविक कीटनाशकों का उपयोग। नियमित निरीक्षण और त्वरित उपचार से इन समस्याओं को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • कटाई: पौधों की रोपाई के 3 महीने बाद पहली कटाई की जा सकती है। यदि आप तुलसी की खेती तेल निकालने के लिए कर रहे हैं तो पौधों के ऊपरी हिस्सों यानी ऊपर से 25 से 30 सेंटीमीटर की कटाई करें। पौधों में फूल आने के बाद तेल की मात्रा कम हो जाती है। इसलिए कटाई में देर न करें।
  • पैदावार: तुलसी की फसल की औसत पैदावार 10 से 15 टन प्रति एकड़ तथा तेल की पैदावार 32-40 कि. ग्रा. एकड़ तक होता है।

तुलसी के औषधीय गुण और लाभ (Medicinal Properties and Benefits of Tulsi):

  1. कफ और खांसी : तुलसी की पत्तियों का सेवन कफ और खांसी में राहत देता है। तुलसी में प्राकृतिक रूप से एंटीबायोटिक और एंटीसेप्टिक गुण होते हैं, जो श्वसन तंत्र की सफाई में मदद करते हैं।
  2. हिचकी और उल्टी : तुलसी की पत्तियों का रस हिचकी और उल्टी को कम करने में सहायक होता है। यह पाचन तंत्र को संतुलित करने में मदद करता है।
  3. दुर्गंध : तुलसी की पत्तियां दुर्गंध को दूर करने में प्रभावी होती हैं। यह प्राकृतिक माउथ फ्रेशनर का काम करती है।
  4. हर तरह का दर्द : तुलसी का सेवन विभिन्न प्रकार के दर्द जैसे सिरदर्द, पेट दर्द, और मांसपेशियों के दर्द को कम करने में सहायक होता है।
  5. कोढ़ : तुलसी की पत्तियों का उपयोग कोढ़ जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज में भी किया जाता है। यह त्वचा की बीमारियों को ठीक करने में मदद करता है।
  6. आंखों की बीमारी : तुलसी की पत्तियों का रस आंखों की बीमारियों में लाभकारी होता है। यह आंखों की दृष्टि को सुधारने में सहायक होता है।
  7. धार्मिक महत्व (Religious Significance) : तुलसी को भगवान के प्रसाद में रखकर ग्रहण करने की परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि तुलसी को प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से यह अपने प्राकृतिक स्वरूप में ही शरीर के अंदर पहुंचती है और शरीर में किसी भी तरह की आंतरिक समस्या को खत्म करती है। यह शरीर में किसी भी प्रकार के दूषित तत्वों को निकालने में मदद करती है।
  8. रिएक्शन न होना : तुलसी का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसे खाने से कोई रिएक्शन नहीं होता है। यह पूरी तरह से सुरक्षित और प्राकृतिक औषधि है।
  9. प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना : तुलसी का नियमित सेवन प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और शरीर को बीमारियों से लड़ने में सक्षम बनाता है।
  10. तनाव कम करना : तुलसी का सेवन मानसिक तनाव और चिंता को कम करने में मदद करता है। यह मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है।
  11. रक्त शुद्धिकरण : तुलसी रक्त को शुद्ध करने में सहायक होती है। यह रक्त में मौजूद दूषित तत्वों को निकालती है और स्वस्थ रक्त परिसंचरण को बढ़ावा देती है।
  12. एंटीऑक्सीडेंट गुण : तुलसी में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो शरीर को फ्री रेडिकल्स से बचाते हैं और सेलुलर डैमेज को रोकते हैं।

क्या आप तुलसी की खेती करना चाहते हैं? अगर हाँ तो हमें कमेंट करके बताएं। ऐसी ही रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'बागवानी फसलें' चैनल को अभी फॉलो करें। अगर आपको यह पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान मित्रों के साथ साझा करें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (Frequently Asked Questions - FAQs)

Q: तुलसी की खेती कौन से महीने में होती है?

A: तुलसी की बुवाई अप्रैल-मई में और रोपाई जून-जुलाई में होती है।

Q: तुलसी की खेती के लिए कौन सी मिट्टी उपयुक्त है?

A: बलुई दोमट मिट्टी तुलसी की खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है।

Q: तुलसी के पौधों को कितनी सिंचाई की आवश्यकता होती है?

A: गर्मी में 2-3 बार और ठंड में आवश्यकता अनुसार सिंचाई करनी चाहिए।

Q: तुलसी की खेती के लिए कितना बीज चाहिए?

A: प्रति एकड़ 80 से 120 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

Q: तुलसी की कटाई कब करनी चाहिए?

A: पौधों की रोपाई के 3 महीने बाद और फूल आने से पहले कटाई करनी चाहिए।

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