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18 Oct
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हल्दी में कंद गलन रोग का कारण, लक्षण और उपचार | Rhizome Rot Disease in Turmeric: Causes, Symptoms and Treatment

हल्दी एक महत्वपूर्ण औषधीय और मसालेदार फसल है, जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों और औषधीय उत्पादों में किया जाता है। लेकिन इसकी खेती में कई प्रकार के रोग और समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं, जिनमें से एक प्रमुख रोग है कंद गलन। इन दिनों यह रोग किसानों के लिए एक बड़ी समस्या बनती जा रही है, जिससे उनकी फसलों को काफी नुकसान होता है। यह एक कवक जनित रोग कवक है, जो पौधे की जड़ों और कंदों पर हमला करता है। रोग के लक्षण पौधे की जड़ों और कंदों को प्रभावित करते हैं। यह रोग हल्दी की गुणवत्ता और उत्पादन को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। फसल को इस रोग से बचाने के लिए फसल चक्र अपनाना और प्रकंदों की रोपाई से पहले उन्हें उपचारित करना सबसे अच्छा तरीका है। आज के इस पोस्ट के माध्यम से हम हल्दी की फसल में कंद गलन रोग का कारण, इसके लक्षण, इससे बचाव एवं इस रोग पर नियंत्रण की विस्तार में जानकारी प्राप्त करेंगे, जिससे किसान हल्दी की फसल को इस रोग से बचा कर बेहतर मुनाफा प्राप्त कर सकें।

हल्दी की फसल में कंद गलन रोग का कारण | Reasons of Rhizome Rot Disease

  • हल्दी में कंद गलन रोग पायथियम ग्रैमिनीकोलम नामक कवक के कारण होता है।
  • यह कवक गर्म और आर्द्र परिस्थितियों में पनपता है, जिससे ऐसी स्थितियों में हल्दी की फसल इस रोग के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती है।
  • यह कवक कई वर्षों तक मिट्टी में जीवित रह सकता है।
  • नेमाटोड, कुरमुला कीट,मैगेट्स जैसे कीट इस फफूंद जनित रोग को फैलाने का काम करते हैं।

हल्दी की फसल में कंद गलन रोग के लक्षण | Symptoms of Rhizome Rot Disease

  • हल्दी में कंद गलन रोग के लक्षण पौधों की जड़ों और कंदों में दिखाई देते हैं।
  • इस रोग की शुरुआत में पौधों की पत्तियां पीली होने लगती हैं।
  • धीरे-धीरे पत्तियां सूखने लगती हैं।
  • इस रोग से प्रभावित पौधे कमजोर हो जाते हैं।
  • भूमि की सतह के पास से सटे हुए तने भूरे रंग के होने लगते हैं।
  • पौधों की जड़ें और हल्दी के कंद सड़ने लगते हैं।
  • कंदों का ऊपरी भाग या उसका छिलका रोग रहित नजर आता है, लेकिन उसके अंदर का का भाग सड़ा हुआ रहता है।

हल्दी की फसल में कंद गलन रोग से होने वाले नुकसान | Damage Caused due to Rhizome Rot

  • उपज में कमी: इस रोग के कारण हल्दी की उपज में भारी कमी आती है।
  • गुणवत्ता में कमी: हल्दी के कंदों की गुणवत्ता में कमी के लिए ये रोग एक बड़ा कारण हो सकता है।
  • कृषि लागत में वृद्धि: इस रोग पर नियंत्रण के लिए दवाओं का प्रयोग करने से कृषि लागत में वृद्धि हो सकती है।
  • आर्थिक नुकसान: इस रोग के कारण किसानों को भारी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।

हल्दी की फसल को कंद गलन रोग से बचाने के तरीके | Methods to Avoid Rhizome Rot Disease

  • गहरी जुताई: हल्दी की खेती से पहले खेत की गहरी जुताई करें।
  • फसल चक्र: हल्दी की फसल को इस रोग से बचाने के लिए एक ही खेत में लगातार कई वर्षों तक हल्दी की खेती करने से बचें। उचित फसल चक्र अपनाएं।
  • उचित सिंचाई: इस रोग को रोकने के लिए उचित सिंचाई प्रथाओं को अपनाएं। अधिक पानी देने से रोग का विकास हो सकता है, क्योंकि कवक गर्म और आर्द्र परिस्थितियों में पनपता है।
  • खेत में स्वच्छता बनाए रखें: इस रोग के कवक पौधे के अवशेषों पर जीवित रह सकते हैं। इसलिए इस घातक रोग को रोकने के लिए खेत में स्वच्छता बनाए रखना बहुत जरूरी है। खेत को खरपतवारों एवं फसलों के अवशेष से मुक्त रखना चाहिए।
  • कंद उपचार: बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम प्रकंदों को 2 ग्राम कार्बोक्सिन 37.5% + थिरम 37.5% डब्ल्यूएस (धानुका विटावैक्स पावर) से उपचारित करें।
  • प्रभावित पौधों का प्रबंधन: इस रोग से बुरी तरह प्रभावित पौधों को सावधानी से निकाल कर खेत से बाहर ले जा कर नष्ट कर दें।

हल्दी की फसल में कंद गलन रोग पर नियंत्रण के रासायनिक तरीके | Controlling Rhizome Rot Disease through Chemical Inputs

  • प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% + डिफ़ेनोकोनाज़ोल 11.4% एससी (कात्यायनी एज़ोज़ोल, बीएसीएफ एड्रोन, सिंजेंटा अमिस्टार टॉप) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 300-400 मिलीलीटर मेटालैक्सिल-एम 3.3% + क्लोरोथलोनिल 33.1% एससी (कात्यायनी डॉ. ब्लाइट, सिंजेंटा फोलियो गोल्ड) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 300 ग्राम कासुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% डब्ल्यूपी (धानुका कोनिका) की ड्रेंचिंग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 800-1,200 ग्राम मेटालैक्सिल 8% + मैन्कोज़ेब 64% डब्ल्यूपी (देहात जोटिक गोल्ड,
  • टाटा रैलिस मास्टर, सिंजेंटा रिडोमिल गोल्ड) का प्रयोग करें। प्रति एकड़ खेत में 500 ग्राम थियोफैनेट मिथाइल 70% डब्ल्यू.पी  (बायोस्टैड रोको) की ड्रेनचिंग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 400 मिलीलीटर थियोफैनेट मिथाइल 38% + कासुगामाइसिन 2.21% एससी (धानुका ज़ेनेट) की ड्रेनचिंग करें।

हल्दी की फसल में कंद गलन रोग पर नियंत्रण के लिए आप किन दवाओं का उपयोग करते हैं? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। कृषि संबंधी जानकारियों के लिए देहात के टोल फ्री नंबर 1800-1036-110 पर सम्पर्क करके विशेषज्ञों से परामर्श भी कर सकते हैं। इसके अलावा, 'किसान डॉक्टर' चैनल को फॉलो करके आप फसलों के सही देखभाल और सुरक्षा के लिए और भी अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही इस पोस्ट में दी गई जानकारी को अधिक से अधिक व्यक्तियों तक पहुंचाने के लिए इस पोस्ट को लाइक एवं अन्य किसान मित्रों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: हल्दी की फसल का प्रमुख रोग कौन सा है?

A: हल्दी की फसल में कई तरह के रोगों का प्रकोप होता है। इनमें कंद गलन रोग सबसे घातक माना जाता है। यह रोग पौधे की जड़ों और प्रकंदों को प्रभावित करता है, जिससे विकास में बाधा आती है, पत्तियां पीली हो जाती हैं और अंत में पौधे की मृत्यु हो जाती है।

Q: मेरी हल्दी के पत्ते पीले क्यों हो रहे हैं?

A: हल्दी के पत्तों का पीलापन विभिन्न कारकों जैसे अधिक पानी देने, पोषक तत्वों की कमी, कीट संक्रमण या बीमारी के कारण हो सकता है।

Q: हल्दी की फसल कितने दिन में तैयार होती है?

A: हल्दी की फसल को तैयार होने में लगने वाला समय इसकी किस्मों और जलवायु पर निर्भर करता है। आमतौर पर फसल को परिपक्व होने में लगभग 7-10 महीने लगते हैं। जब पत्तियां पीली होने लगती हैं और सूखने लगती हैं इसके साथ ही प्रकंद अपने पूर्ण आकार तक पहुंच जाता है तब फसल की खुदाई कर लेनी चाहिए।

Q: हल्दी किस महीने में बोई जाती है?

A: भारत के ज्यादातर क्षेत्रों में हल्दी के कंदों की रोपाई मार्च से अप्रैल महीने के दौरान की जाती है। फसल को अंकुरण और विकास के लिए गर्म और आर्द्र परिस्थितियों की आवश्यकता होती है। हालांकि, बुवाई का समय स्थान और जलवायु परिस्थितियों के आधार पर भिन्न हो सकता है।

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