विलुप्ति की कगार पर खड़ी हैं ये 5 औषधीय जड़ी बूटियां

भारत में कई प्रकार के औषधीय फसलों का संसाधन तेजी से गायब होता जा रहा है। बीते दशकों में कुछ प्रजातियां अति-शोषण का शिकार हुई हैं, वहीं कुछ प्रजातियों पर बदलती जलवायु का गहरा प्रभाव देखने को मिला है। इसके अलावा अवैध रूप से व़क्षों का दोहन भी जंगलों में पर्याप्त मात्रा में पाई जाने वाली इन औषधियों पर एक बड़ा संकट रहा है। नतीजा यह है कि हजारों प्रजातियों को हम पूर्ण रूप से खो चुके हैं वहीं कुछ प्रजातियों को बचाने के लिए सरकार द्वारा कई योजनाओं के तहत बचाने के प्रयास किए जा रहे हैं और उन्हें नर्सरी में उगाया जा रहा है।
तो आइए जानते हैं ऐसी ही 5 प्रजातियां जिन्हें हम खो चुके हैं या खोने के कगार पर हैं।
सर्पगंधा- मुख्य और नामी औषधि में प्रमुख सर्पगंधा को वर्तमान में विलुप्त हो रही औषधि की सूची में रखा गया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में इसका क्षेत्र हिमाचल से अरुणाचल प्रदेश के साथ पश्चिमी और पूर्वी घाट की पहाड़ियों के साथ-साथ पूर्वी और मध्य भारत में भी दर्ज किया गया है। हालांकि कई क्षेत्रों में यह औषधी पूरी तरह से विलुप्त हो चुकी है। सर्पगंधा में जीवाणुरोधी गुण पाए जाते हैं और पेट संबंधी रोगों की दवाओं में इसकी विस्तृत रूप से प्रयोग किया जाता है।
मैदा छाल- सुगंधित खुशबू वाली यह औषधी मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के वनों की एक प्रमुख औषधि रही है। मैदा छाल का प्रयोग अगरबत्ती निर्माण में किया जाता है। इसके अलावा औषधीय रूप से साइटिका, कमर दर्द, अर्थराइटिस और शरीर में सूजन जैसी समस्याओं को ठीक करने के लिए किया जाता है।
अर्जुन- यह वृक्ष आमतौर पर दलदल के पास पाया जाता है। यह एक कॉम्ब्रेटेसी परिवार का सदस्य है और 55-80 फीट की ऊंचाई प्राप्त कर सकता है। सतपुड़ा पर्वत क्षेत्रों में यह प्रजाति पूरी तरह से विलुप्त हो चुकी है। चिकित्सा क्षेत्र में इसका प्रयोग दिल की बीमारियों के इलाज में किया जाता है।
चित्रक- चित्रक एक सदाबहार झाड़ी के रूप में पाई जाने वाली एक औषधि है और हमेशा ही हरी भरी रहती है। हालांकि यह औषधि भी तेजी से विलुप्ति की ओर बढ़ रही है। यह जड़ी बूटी सफेद दाग एवं त्वचा से जुड़े रोगों के लिए कारगर मानी जाती है।
वच- वच एक अर्ध-जलीय बारहमासी पौधा है। यह जल निकायों जैसे धाराओं और नदियों के पास बढ़ता देखा जाता है। वच के फूल सफेद रंग के और छोटे होते हैं इसके साथ ही पौधों की पत्तियां और जड़ें एक सुगंध का उत्सर्जन करती हैं,जिससे पौधे की गुणवत्ता बेहतर होती है। वच का प्रयोग कमजोर याददाश्त, गले की खराश और तनाव जैसी समस्याओं के लिए लाभदायक होता है।
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समय के साथ किसानों के बीच औषधीय फसलों का चलन तेजी से बढ़ रहा है और किसान पारंपरिक खेती के मुकाबले इन फसलों से अधिक आय भी कमा रहे हैं। ऐसे में तेजी से हो विलुप्त हो रही इन औषधियों से जुड़ी यह जानकारी आप किसानों के लिए फायदेमंद हो सकती है। यदि आप भी औषधीय फसलों की खेती कर अधिक आय कमाना चाहते हैं, तो अपने क्षेत्र के अनुसार बेहतरीन औषधीय फसलों की जानकारी के लिए अभी कॉल करें टोल फ्री नंबर 1800-1036-110 पर और चुने अपने खेत के अनुसार एक मुनाफेदार औषधीय फसल। आप अन्य औषधीय फसलों की खेती से जुड़ी जानकारी देहात ऐप में औषधीय फसलें नामक टैग को सर्च कर भी देख सकते हैं।
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