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तरबूज: रोग, लक्षण, बचाव एवं उपचार | Watermelon: Diseases, Symptoms, Prevention and Treatment

तरबूज: रोग, लक्षण, बचाव एवं उपचार | Watermelon: Diseases, Symptoms, Prevention and Treatment

तरबूज के फलों में पानी की मात्रा अधिक होने के कारण गर्मी के मौसम में सभी की पसंदीदा फलों में शामिल हो जाता है। लेकिन कई बार कुछ रोगों के कारण इसकी उपज में कमी आती है। जिससे किसानों को भी नुकसान उठाना पड़ता है। इस पोस्ट में हम तरबूज की फसल को प्रभावित करने वाले कुछ मुख्य रोगों के बारे में, उनके लक्षण, बचाव, और उपचार के तरीकों की जानकारी प्राप्त करेंगे। इससे किसानों को अपनी फसलों की सुरक्षा के लिए जागरूक होने में मदद मिलेगी।


तरबूज की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग | Some major diseases affecting the Watermelon plants
पाउडरी मिल्ड्यू रोग

  • पाउडरी मिल्ड्यू रोग को विभिन्न क्षेत्रों में चूर्णिल आसिता रोग, खर्रा रोग एवं दहिया रोग के नाम से भी जाना जाता है। तरबूज के अलावा खरबूज, पपीता, टमाटर, बैंगन, खीरा, कद्दू, करेला, नींबू, जैसी कई अन्य फसलें भी प्रभावित होती हैं।

पाउडरी मिल्ड्यू रोग से होने वाले नुकसान

  • इस रोग के लक्षण सबसे पहले पौधों की पत्तियों एवं तने पर नजर आते हैं।
  • रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियां एवं तने पर सफेद रंग के पाउडर की तरह पदार्थ उभरने लगते हैं।
  • इस रोग से प्रभावित पत्तियां पीली होने लगती हैं।
  • पौधों में फूल-पलों की संख्या में कमी आती है।
  • तरबूज के पौधों के विकास में बाधा आती है।

पाउडरी मिल्ड्यू रोग पर नियंत्रण के तरीके

  • इस रोग से बचने के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 2.5 ग्राम कार्बेन्डाज़िम 50 डब्लू.पी (धानुका- धानुस्टिन, हाईफील्ड- कार्बोस्टिन) से उपचारित करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 300-600 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू.पी (देहात- साबू, यूपीएल- साफ) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 300 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एस.सी. (देहात एजीटॉप) का प्रयोग करें।
  • रोग के लक्षण नजर आने पर प्रति एकड़ जमीन में 10 किलोग्राम गंधक के चूर्ण का छिड़काव करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 150 मिलीलीटर एज़ॉक्सीस्ट्रोबिन 23% एससी ((सिंजेन्टा- एमीस्टार) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 80-100 फ्लक्सापायरोक्सैड 250 जी/एल + पायराक्लोस्ट्रोबिन 250 जी/एल एससी (बीएसएफ- मेरिवोन) का प्रयोग करें।
  • आवश्यकता होने पर 10 से 15 दिनों के अंतराल पर दोबारा छिड़काव करें।

डाउनी मिल्ड्यू रोग

  • डाउनी मिल्ड्यू यानी मृदुरोमिल आसिता रोग एक फफूंद जनित रोग है। मौसम के बदलने पर इस रोग के होने का खतरा अधिक बढ़ जाता है। इस रोग के होने पर 30 से 40 प्रतिशत तक फसल नष्ट हो सकती है।

डाउनी मिल्ड्यू रोग से होने वाले नुकसान

  • डाउनी मिल्ड्यू रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे उभरने लगते हैं।
  • कभी-कभी इन धब्बों पर सफेद रंग की परत भी देखी जा सकती है।
  • रोग बढ़ने के साथ इन धब्बों के आकार में भी वृद्धि होती है।
  • कुछ ही दिनों बाद तने पर भी धब्बे फैलने लगते हैं।

डाउनी मिल्ड्यू पर नियंत्रण के तरीके

  • इस रोग से बचने के लिए खेत में खरपतवार पर नियंत्रण रखें।
  • पौधों को उचित दूरी पर लगाएं।
  • रोग को फैलने से रोकने के लिए रोग से प्रभावित पौधों को नष्ट कर दें।
  • बुवाई से पहले बीज उपचारित करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 300 ग्राम मेटालैक्सिल 8% + मैनकोजेब 64% डब्ल्यूपी (सिंजेंटा- रिडोमिल गोल्ड) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 450-600 ग्राम मेटिरम 55% + पायराक्लोस्ट्रोबिन 5% डब्लूजी (बीएएसएफ कैब्रियो टॉप, पीआई इंडस्ट्रीज क्लच) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 350-400 ग्राम बेनालैक्सिल 8% + मैंकोजेब 65% डब्लूपी (फैंटिक एम) का प्रयोग करें।

बड नेक्रोसिस रोग

  • तरबूज की फसल में बड नेक्रोसिस यानी कली तरिगलन रोग का प्रकोप अधिक होता है। इस रोग के होने का मुख्य कारण थ्रिप्स है।

बड नेक्रोसिस रोग से होने वाले नुकसान

  • पत्तियां सिकुड़ने लगती हैं।
  • पत्तियों पर काले रंग के धब्बे उभरने लगते हैं।
  • पौधों में यदि फल आ गए हैं तो फलों का आकार विकृत हो जाता है।
  • इस रोग के कारण तरबूज की उपज में भारी कमी आती है।

बड नेक्रोसिस रोग पर नियंत्रण के तरीके

  • रस चूसक कीटों पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 40 ग्राम थियामेथोक्सम 25% डब्लूजी (धानुका- अरेवा) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 100 मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रिड 17.80% एसएल (बायर- कॉन्फिडोर) का प्रयोग करें।

जड़ गलन रोग

  • जड़ गलन एक फफूंद जनित रोग है। तरबूज के छोटे पौधे इस रोग से अधिक प्रभावित होते हैं।

जड़ गलन रोग से होने वाले नुकसान

  • पौधों की जड़ें गलने लगती हैं।
  • जमीन की सतह के पास से तने भी सड़ने लगते हैं।
  • तने का रंग भूरा होने लगता है।
  • पौधों की पत्तियां पीले रंग की नजर आने लगती है।
  • कुछ समय बाद पौधा सूखने लगता है।

जड़ गलन रोग पर नियंत्रण के तरीके

  • प्रति एकड़ खेत में 300 ग्राम मेटालैक्सिल 8% + मैनकोजेब 64% डब्ल्यूपी (सिंजेंटा- रिडोमिल गोल्ड) का प्रयोग करें।

आपके तरबूज की फसल में किस रोग या कीट का प्रकोप अधिक होता है? अपने जवाब हमें कमेंट के द्वारा बताएं। कृषि संबंधी जानकारियों के लिए देहात के टोल फ्री नंबर 1800-1036-110 पर सम्पर्क करके विशेषज्ञों से परामर्श भी कर सकते हैं। इसके अलावा, 'किसान डॉक्टर' चैनल को फॉलो करके आप फसलों के सही देखभाल और सुरक्षा के लिए और भी अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक एवं शेयर करके आप इस जानकारी को अन्य किसानों तक पहुंचा सकते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Question

Q1: तरबूज में कौन कौन से रोग लगते हैं?

A1: तरबूज की फसल में कई तरह के रोग होते हैं। जिमनें चूर्णिल आसिता रोग, मृदुरोमिल आसिता रोग, बड नेक्रोसिस, लीफ कर्ल वायरस, जड़ गलन रोग, झुलसा रोग, मोजैक वायरस रोग आदि प्रमुख हैं।

Q2: तरबूज के रोगों को कैसे रोका जा सकता है?

A2: तरबूज की फसल को विभिन्न रोगों से बचाने के लिए रोगों के प्रति सहनशील किस्मों का चयन करें। बुवाई से पहले बीज उपचारित करना बहुत जरूरी है। खेत में खरपतवारों पर नियंत्रण रखें। जल निकासी की उचित व्यवस्था करें। समय-समय पर फसलों का निरीक्षण करें और किसी भी रोग के लक्षण नजर आने पर जैविक एवं रासायनिक दवाओं का प्रयोग करें।

Q3: तरबूज फल सड़ने का क्या कारण है?

A3: तरबूज के फलों के सड़ने के कई कारण हो सकते हैं। कई बार फफूंद जनित रोगों के प्रकोप के कारण फलों पर घब्बे उभरने लगते हैं और फल सड़ने लगते हैं। इसके अलावा फल मक्खी जैसे कीटों का प्रकोप भी तरबूज के फलों में सड़न का मुख्य कारण है।

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