गन्ने में खरपतवार प्रबंधन | Weed Management for Sugarcane Crop
गन्ना, भारतीय कृषि उद्योग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसकी खेती मुख्य रूप से गुड़ और शक्कर उत्पन्न करने के लिए की जाती है। गन्ने का उत्पादन समृद्धि, रोजगार और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है, लेकिन इसमें खरपतवार होने पर इसका प्रभाव सीधे रूप से किसानों की आर्थिक स्थिति पर पड़ता है। गन्ने की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए खरपतवारों की समस्या से छुटकारा पाना बहुत जरूरी है। आइए इस पोस्ट के माध्यम से हम गन्ने में खरपतवार प्रबंधन पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।
गन्ने की फसल में खरपतवारों से होने वाले नुकसान | Damage from weeds in sugarcane cultivation
- बढ़वार में कमी: गन्ने की फसल में खरपतवारों के प्रकोप से फसल की बढ़वार धीमी हो जाती है, जिससे किसानों को उच्च उत्पादन की कमी हो सकती है।
- मिठास में कमी: खरपतवारों के कारण गन्ने की मिठास में कमी हो सकती है, जिससे गुड़ और शक्कर का उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
- उपज में कमी: गन्ने की फसल में खरपतवारों से होने वाले नुकसान के कारण उपज में 40 प्रतिशत तक कमी हो सकती है।
- रोग और कीट प्रकोप: खरपतवारों के कारण गन्ने की फसल में विभिन्न प्रकार के रोग और कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है, जिससे फसल की सुरक्षा में कठिनाई हो सकती है।
- आर्थिक नुकसान: फसल की उपज एवं गुणवत्ता में कमी होने के कारण किसानों को आर्थिक हानि हो सकती है।
- लागत में वृद्धि: खरपतवार नाशक का उपयोग करने पर कृषि में होने वाली लागत में बढ़ोतरी होती है। इसके साथ कीट एवं रोगों पर नियंत्रण के लिए भी विभिन्न दवाओं का के प्रयोग से लागत बढ़ती है।
गन्ने की फसल में खरपतवारों पर नियंत्रण के विभिन्न तरीके | Various methods of weed control in sugarcane
निराई-गुड़ाई:
- खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए फसलों की बुवाई के 20 से 25 दिनों के बाद पहली निराई-गुड़ाई की जा सकती है।
- बुवाई के 40 से 45 दिनों बाद या आवश्यकता के अनुसार दूसरी बार निराई की जा सकती है।
- निराई-गुड़ाई करने से फसल को अच्छी तरह से पोषण मिलता है और खरपतवारों की समस्या से भी छुटकारा मिलता है।
रासायनिक नियंत्रण:
- गन्ने के अंकुरण से पहले प्रति एकड़ खेत में 400-1,600 ग्राम एट्राजिन 50% डब्ल्यूपी (टाटा रैलिस एट्राटाफ, धानुका धानुजीन) का प्रयोग करें।
- खरपतवारों के पनपने से पहले प्रति एकड़ खेत में 1 किलोग्राम क्लोमाज़ोन 22.5% + मेट्रिब्यूज़िन 21% डब्ल्यूपी (एफएमसी ऑस्ट्रल) का प्रयोग करें।
- बुवाई के 25 दिनों बाद प्रति एकड़ खेत में 36 ग्राम हेलोसल्फ्यूरॉन मिथाइल 75% डब्ल्यूजी (धानुका सेम्परा) का प्रयोग करें।
- बुवाई के 25 दिनों बाद प्रति एकड़ खेत में 1 किलोग्राम एमेट्रिन 80% डब्ल्यूडीजी (अदामा तमर) का प्रयोग करें।
- गन्ने की फसल में चौड़ी पत्ती के खरपतवारों की समस्या होने पर बुवाई के 25 दिनों बाद प्रति एकड़ खेत में 600 ग्राम 2,4-डी सोडियम साल्ट 80% डब्ल्यूपी (धानुका वीडमार) का प्रयोग करें।
दवाओं के छिड़काव के समय रखें इन बातों का ध्यान | Things to keep in mind while applying weedicides
खरपतवार नाशक दवाओं के छिड़काव के समय कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है।
- एक ही शाकनासी को बार-बार प्रयोग करने से बचें। बार-बार एक ही दवा इस्तेमाल करने से खरपतवार इसके प्रति सहनशील/प्रतिरोधी हो सकते हैं।
- एक फसल में एक बार ही रासायनिक खरपतवार नाशक का प्रयोग करें।
- शाकनाशक दवाओं के पैकेट पर दिए गए निर्देशों को पढ़ें और उनका पालन करें।
- खरपतवार नाशक दवा का प्रयोग करते समय, मिट्टी में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए, जिससे दवा सही रूप से फसल तक पहुंच सके।
- छिड़काव करते समय, खरपतवार नाशक दवा का सही मात्रा में छिड़काव करना चाहिए, जिससे फसल पर किसी तरह का बुरा प्रभाव ना हो।
- खरपतवार नाशक दवा के साथ किसी भी तरह के कीटनाशक या फफूंदनाशक को मिलाना नहीं चाहिए। इससे खरपतवार नाशक दवा का असर कम हो सकता है।
- शाकनाशक दवाओं में कई तरह के हानिकारक रसायन होते हैं। इसका अधिक प्रयोग खेत की मिट्टी एवं पर्यावरण के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
- खरपतवार नाशक दवाओं के साथ सिलिकॉन आधारित स्टिकर का इस्तेमाल करें।
- सिलिकॉन आधारित स्टिकर यांनी चिपकू की मात्रा क्षेत्र, वर्षा, पौधों की उम्र और फसल के प्रकार पर निर्भर करती है।
- प्रति एकड़ खेत में 40 मिलीलीटर सिलिकॉन आधारित स्टिकर (आईएफसी सुपर स्टिकर) का प्रयोग करें।
गन्ने की फसल में खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए आप क्या तरीका अपनाते हैं? अपने जवाब हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। खरपतवारों पर नियंत्रण की अधिक जानकारी के लिए 'खरपतवार जुगाड़' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक एवं अन्य किसानों के साथ शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Question (FAQs)
Q: गन्ने में खरपतवार नियंत्रण कैसे करें?
A: गन्ने की फसल में खरपतवारों को रोकने के लिए गन्ने की सहफसली खेती करना किसानों के लिए लाभदायक साबित हो सकता है। सहफसली खेती में खेत में खाली जगह कम होने के कारण खरपतवारों की समस्या कम होती है। निराई के द्वारा भी खरपतवारों से निजात मिलता है। खरपतवारों की अधिकता होने पर सायनिक दवाओं का प्रयोग करें।
Q: खरपतवारनाशी का छिड़काव करते समय क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?
A: खरपतवारनाशी में कई तरह के हानिकारक रसायन मौजूद होते हैं, जो मनुष्यों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर डालते हैं। इसलिए खरपतवारनाशी का छिड़काव करते समय अपने चेहरे को किसी कपड़े से अच्छी तरह ढकें। हाथों में भी दस्ताने पहन कर छिड़काव करें। दवाओं के छिड़काव के बाद हाथों को अच्छी तरह साफ करें। शाकनाशक के खाली पैकेट पशुओं के हानिकारक हो सकते हैं। इसलिए दवाओं के पैकेट को इधर-उधर न फेकें।
Q: चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार कौन कौन से हैं?
A: बथुआ, सेंजी, दूधी, हिरनखुरी, कंडाई, जंगली पालक, जंगली मटर, कृष्ण नील, आदि कुछ प्रमुख चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार हैं। भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में इनका प्रकोप होता है।
Q: निराई कैसे की जाती है?
A: खेत में पनपने वाले खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए निराई की जाती है। निराई के लिए खुरपी, कुदाल या हैरो का इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रक्रिया में खरपतवारों को जड़ से उखाड़ कर या भूमि की ऊपरी सतह के पास से काट कर निकाला जाता है। इस प्रक्रिया में समय एवं श्रम की आवश्यकता अधिक होती है। इसलिए बड़े खेतों की तुलना में छोटे खेतों में इस विधि का प्रयोग अधिक किया जाता है।
Q: खरपतवार नाशक का छिड़काव कब करना चाहिए?
A: खरपतवारों का छिड़काव सुबह या शाम के समय करना चाहिए। शाकनाशकों के छिड़काव के समय मिट्टी में उपयुक्त नमी होनी चाहिए।
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